भारत के गाँव : वर्तमान और भविष्य
एस. आर. दारापुरी
साक्षात्कार: शाह नवाज़
25 Sep,2011
1.क्या देश को गांवों की जररूत है?
हाँ, भारत को गावों की जरुरत है क्योकि भारत की 80% आबादी गावों में ही रहती है. भारत को गाँव का देश भी कहा जाता है. यह बात अलग है कि भारत के गाँव अति पिछड़े हुए हैं. डॉ. आंबेडकर ने इन्हें अज्ञानता के गढ़ कहा था . उनका यह भी सुझाव था कि गाँव को उजाड़ क़र इनके स्थान पर नगर बसाए जाने चाहिए. उनकी यह बात बहुत क्रन्तिकारी थी परन्तु यह व्यवहारिक नहीं थी.
2.भूमंडलीकृत भारत का गांव कैसा होगा ?
भूमंडलीकृत भारत में गाँव अति पिछड़े हुए होंगे क्योंकि भूमंडलीकृत विकास में गाँव के विकास की कोई भी योजना नहीं है. इसमें तो बड़े शहरों और नगरों के विकास की ही अवधारणा है. गाँव से विस्थापन होगा और लोग गाँव से शहर की ओर पलायन करेंगे. किसान अपनी ज़मीन बेचकर भूमिहीन मजदूर की श्रेणी में आ जायेंगे क्योंकि खेती को जानबूझ क़र अलाभकारी बनाया जा रहा ह. किसानों की खेती की जगह कारपोरेट खेती ले लेगी.ै. किसानों की ज़मीन सेज या विकास की योजनाओ के नाम पर हडप ली जाएँगी. कृषि मजदूर भी बेरोजगार हो जायेंगे. ग्रामीण कारीगरों के धंधे भी छिन जायेंगे. इस का दलितों और समाज के अन्य कमज़ोर तबकों पर बहुत बुरा असर पड़ेगा.
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3.केंद्रीकृत विकास में गांवों की मृत्यु अनिवार्य नहीं है ?
हाँ केंद्रीकृत विकास में गाँव की मृत्यु अनिवार्य है क्योंकि गाँव का स्थान नए नगर और नए शहर ले लेंगें. गाँव से शहरों कि ओर पलायन होगा. खेती का नष्ट होना स्वाभाविक है क्योंकि सरकार किसानी ख़तम करके कारपोरेट खेती को बढावा दे रही है. सरकार जiन बुझ कर गाँव में बुनियादी सुविधाएँ नहीं दे रही है ताकि लोग शहरों कि ओर भागें. पूरी विकास कि प्रकिर्या में एक शहरी पूर्वाग्रह है जिस कारण गाँव के विकास में अनुपातिक संसाधन उपलब्ध नहीं कराए जाते. परिणाम स्वरूप विकास कि दौड में गाँव पिछड़ रहे हैं.
4.क्या गांव को बचाने का स्वप्न कहीं शेष है ?
हाँ केवल कुछ लोगों में ही गांव को बचाने का स्वप्न शेष है . अधिकतार गाँव वाले भी गाँव के विनाश से बेखबर हैं. दरअसल उन्हें जीवित रहने कि लड़ाई में इस के बारे में सोचने कि फुर्सत ही नहीं है. वे गाँव के साथ किये जा धोखे और लूट से बेखबर हैं. उन्हें अपनी बदहाली शहर कि चकाचौंध कि ओर आकर्षित कर रही है और वे मन्त्र मुग्ध हो कर शहर कि खींचे चले जा रहे हैं.
5.आपकी नजरों का गांव कैसा है ?
मेरे विचार में गाँव का वैसा ही विकास होना चाहिए जैसा कि शहरों का किया जा रहा है. खेती को उन्नत करके इसे लाभकारी बनाया जाए. गाँव में ही खेती आधारित उद्योग तथा ग्रामीण उद्योगों को बढावा दिया जाए.गाँव में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराई जाएँ. गाँव से शहरों कि ओर पलायन रोकने हेतु गाँव में ही रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ जैसा कि चीन आदि में किया गया है. गाँव के लोगों के धार्मिक अंध विश्वास ख़तम करने हेतु शिक्षा और वैज्ञानिक सोच को बढावा दिया जाए. गाँव में सामाजिक बुराइयों जैसे छुआछुत आदि को समाप्त करने हेते समाज सुधार आन्दोलन चलाये जाएँ तथा इस सम्बन्धी कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए. गाँव के संसाधनों पर गर्म पंचायत का अधिकार होना चाहिए. गाँव का समग्र विकास किया जाए.
शनिवार, 10 दिसंबर 2011
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