डॉ. अम्बेडकर एवं श्रमिक वर्ग
एस. आर. दारापुरी(आई. पी. एस. से0 नि0)
बाबा साहब डॉ.भीम राव अम्बेडकर न केवल महान कानूनविद, प्रख्यात समाज शास्त्री एवं अर्थशास्त्री ही थे वरन वे दलित वर्ग के साथ-साथ श्रमिक वर्ग के भी उद्धारक थे। बाबा साहब स्वयं एक मजदूर नेता भी थे। अनेक सालों तक वे मजदूरों की बस्ती में रहे थे। इसलिये उन्हें श्रमिकों की समस्याओं की पूर्ण जानकारी थी। साथ ही वे स्वयं एक माने हुए अर्थशास्त्री होने के कारण उन स्थितियों के सुलझाने के तरीके भी जानते थे। इसी लिये उनके द्वारा सन 1942 से 1946 तक वायसराय की कार्यकारिणी में श्रम मंत्री के समय में श्रमिकों के लिये जो कानून बने और जो सुधार किये गये वे बहुत ही महत्वपूर्ण एवं मूलभूत स्वरुप के है।
डॉ. भीम राव अम्बेडकर की श्रमिक वर्ग के अधिकारों एवं कल्याण के प्रति चिन्ता उन शब्दों से परिलक्षित होती है जो उन्होंने 9 सितम्बर, 1943 को प्लेनरी, लेबर परिषद के सामने उद्योगीकरण पर भाषण देते हुए कहे थे, "पूंजीवादी संसदीय प्रजातंत्र व्यवस्था में दो बातें अवश्य होती हैं। जो काम करते हैं उन्हें गरीबी से रहना पड़ता है और जो काम नही करते उनके पास अथाह दौलत जमा हो जाती है। एक ओर राजनीतिक समता और दूसरी ओर आर्थिक विषमता । जब तक मजदूरों को रोटी कपड़ा और मकान, निरोगी जीवन नहीं मिलता एवं विशेष रुप से जब तक के सम्मान के साथ अपना जीवन यापन नहीं कर सकते, तब तक स्वाधीनता कोई मायने नहीं रखती। हर मजदूर को सुरक्षा और राष्ट्रीय सम्पत्ति में सहभागी होने का आश्वाशन मिलना आवश्यक है।"
उनका ध्यान इस बात पर था कि श्रम का मूल्य बढ़े। इसके अतिरिक्त बाबा साहब ने दिसम्बर 1945 के प्रथम सप्ताह में श्रम अधिकारियों की एक विभागीय बैठक जो बम्बई सचिवालय में सम्पन्न हुई थी, का उदघाटन करते हुए कहा, "कि औद्योगिक झगड़े टालने के लिये तीन बातें आवश्यक है। १-समुचित संगठन, 2. कानून में आवश्यक सुधार, और 3. श्रमिकों के न्यूनतम वेतन का निर्धारण। औद्योगिक शांति सत्ता के बल पर नहीं वरन न्याय नीति के तत्वों पर आधारित होनी चाहिये। श्रमिकों को अपने कर्तव्यों की पहचान होनी चाहिए। मालिकों को भी मजदूरों को उचित वेतन देना चाहिये। साथ ही, सरकार और श्रमिक समाज को भी अपने आपसी संबंध सौहार्दपूर्ण बनाए रखने की लगन से कोशिश चाहिए ।
उपरोक्त संक्षिप्त उद्धरणों से स्पष्ट हैं कि बाबा साहब को मजदूर वर्ग की समस्याओं की कितनी गहरी जानकारी थी। इन समस्याओं के निराकरण के लिए उन्होंने अपने श्रम मंत्री के चार वर्ष के संक्षिप्त काल में कई एतिहासिक श्रम कानून बनाए जिनका मुख्य उद्देश्य मजदूरों को कानूनी अधिकार दिलाना, उनका कल्याण सुनिश्चत करना तथा औद्योगिक झगड़ों के निपटारे हेतु स्थाई व्यवस्था करना था।
एस. आर. दारापुरी(आई. पी. एस. से0 नि0)
बाबा साहब डॉ.भीम राव अम्बेडकर न केवल महान कानूनविद, प्रख्यात समाज शास्त्री एवं अर्थशास्त्री ही थे वरन वे दलित वर्ग के साथ-साथ श्रमिक वर्ग के भी उद्धारक थे। बाबा साहब स्वयं एक मजदूर नेता भी थे। अनेक सालों तक वे मजदूरों की बस्ती में रहे थे। इसलिये उन्हें श्रमिकों की समस्याओं की पूर्ण जानकारी थी। साथ ही वे स्वयं एक माने हुए अर्थशास्त्री होने के कारण उन स्थितियों के सुलझाने के तरीके भी जानते थे। इसी लिये उनके द्वारा सन 1942 से 1946 तक वायसराय की कार्यकारिणी में श्रम मंत्री के समय में श्रमिकों के लिये जो कानून बने और जो सुधार किये गये वे बहुत ही महत्वपूर्ण एवं मूलभूत स्वरुप के है।
डॉ. भीम राव अम्बेडकर की श्रमिक वर्ग के अधिकारों एवं कल्याण के प्रति चिन्ता उन शब्दों से परिलक्षित होती है जो उन्होंने 9 सितम्बर, 1943 को प्लेनरी, लेबर परिषद के सामने उद्योगीकरण पर भाषण देते हुए कहे थे, "पूंजीवादी संसदीय प्रजातंत्र व्यवस्था में दो बातें अवश्य होती हैं। जो काम करते हैं उन्हें गरीबी से रहना पड़ता है और जो काम नही करते उनके पास अथाह दौलत जमा हो जाती है। एक ओर राजनीतिक समता और दूसरी ओर आर्थिक विषमता । जब तक मजदूरों को रोटी कपड़ा और मकान, निरोगी जीवन नहीं मिलता एवं विशेष रुप से जब तक के सम्मान के साथ अपना जीवन यापन नहीं कर सकते, तब तक स्वाधीनता कोई मायने नहीं रखती। हर मजदूर को सुरक्षा और राष्ट्रीय सम्पत्ति में सहभागी होने का आश्वाशन मिलना आवश्यक है।"
उनका ध्यान इस बात पर था कि श्रम का मूल्य बढ़े। इसके अतिरिक्त बाबा साहब ने दिसम्बर 1945 के प्रथम सप्ताह में श्रम अधिकारियों की एक विभागीय बैठक जो बम्बई सचिवालय में सम्पन्न हुई थी, का उदघाटन करते हुए कहा, "कि औद्योगिक झगड़े टालने के लिये तीन बातें आवश्यक है। १-समुचित संगठन, 2. कानून में आवश्यक सुधार, और 3. श्रमिकों के न्यूनतम वेतन का निर्धारण। औद्योगिक शांति सत्ता के बल पर नहीं वरन न्याय नीति के तत्वों पर आधारित होनी चाहिये। श्रमिकों को अपने कर्तव्यों की पहचान होनी चाहिए। मालिकों को भी मजदूरों को उचित वेतन देना चाहिये। साथ ही, सरकार और श्रमिक समाज को भी अपने आपसी संबंध सौहार्दपूर्ण बनाए रखने की लगन से कोशिश चाहिए ।
उपरोक्त संक्षिप्त उद्धरणों से स्पष्ट हैं कि बाबा साहब को मजदूर वर्ग की समस्याओं की कितनी गहरी जानकारी थी। इन समस्याओं के निराकरण के लिए उन्होंने अपने श्रम मंत्री के चार वर्ष के संक्षिप्त काल में कई एतिहासिक श्रम कानून बनाए जिनका मुख्य उद्देश्य मजदूरों को कानूनी अधिकार दिलाना, उनका कल्याण सुनिश्चत करना तथा औद्योगिक झगड़ों के निपटारे हेतु स्थाई व्यवस्था करना था।
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