क्या देश आजाद है?
-अदम गोंडवी
सौ में सत्तर आदमी
फिलहाल जब नाशादहैं
दिल पे रखकर हाथ कहिये
देश क्या आजाद है? सौ में सत्तर …
कोठियों से मुल्क के
मेयार को मत आंकिये
असली हिंदुस्तान तो
फुटपाथ पर आबाद है । सौ में सत्तर आदमी ….
सत्ताधारी लड़ पड़े हैं
आज कुत्तों की तरह
सूखी रोटी देखकर
हम मुफ्लिसों के हाथ में! सौ में सत्तर आदमी …
जो मिटा पाया न अब तक
भूख के अवसाद को
दफन कर दो आज उस
मफ्लूक पूंजीवाद को । सौ में सत्तर आदमी…
बूढ़ा बरगद साक्षी है
गांव की चौपाल पर
रमसुदी की झोंपड़ी भी
ढह गई चौपाल में । सौ में सत्तर आदमी…
जिस शहर के मुन्तजिम
अंधे हों जलवागाह के
उस शहर में रोशनी की
बात बेबुनियाद है । सौ में सत्तर आदमी…
जो उलझ कर रह गई है
फाइलों के जाल में
रोशनी वो गांव तक
पहुँचेगी कितने साल में । सौ में सत्तर आदमी…
I earnestly wish that PM Mr. Modi goes through this painful word picture and honestly does something positive, which is in his power, at his earliest convenience in order to change the prevailing pattern of the life of the deprived people, in our shining India. Everyone who matters must recognize that bulk of Indian humanity has been experiencing virtual hell, in its own abode, for ages.
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