गुरु रविदास जन्मस्थान सीर गोवर्धनपुर बनारस मुक्ति संग्राम
- एस आर दारापुरी, आईपीएस (से. नि.)
सभी लोग जानते हैं कि गुरु रविदास (रैदास) का जन्म काशी में हुआ था। कुछ विद्वानों के अनुसार गुरु रविदास का जन्म मंडवाडीह में हुआ था क्योंकि वहाँ पर उनका एक पुराना मंदिर भी है। संत कबीर का जन्म भी लहरतारा में हुआ था और वे गुरु रविदास के पड़ोसी थे परंतु पंजाब के लोगों का निश्चित मत है कि गुरु रविदास का जन्म बीएचयू के पास सीर गोवर्धनपुर में हुआ था। पंजाब में संत सरवन दास, डेरा सचखन्ड बललां (जालंधर) द्वारा सीर गोवर्धनपुर को गुरु रविदास का जन्मस्थान मानते हुए एक भव्य मंदिर का निर्माण करने का निर्णय लिया गया था। इसका नींव पत्थर संत हरी दास द्वारा रखा गया था और इसका निर्माण कार्य 1965 में शुरू हुआ था।
1979 में जब मेरी पोस्टिंग बनारस में हुई तो उस समय मंदिर का मामला झगड़े में पड़ा हुआ था। उस समय मंदिर का एक हाल तथा एक मुख्य कमरा जिसमें गुरु रविदास की मूर्ति रखी हुई थी का ही निर्माण हुआ था। झगड़े का मुख्य कारण यह था कि बंता राम घेढ़ा, अध्यक्ष आल इंडिया आदिधर्म मिशन (पंजाब) ने इस मंदिर पर इस आधार पर कब्जा कर लिया था कि संत सरवन दास ने उन्हें 1972 में एक अधिकार पत्र दे दिया था जिसमें यह लिखा था कि इस मंदिर के पूरे प्रबंध की जिम्मेदारी बंता राम घेढ़ा को दी जाती है। इसके आधार पर उन्होंने मंदिर पर कब्जा करके प्रबंध का पूरा काम स्थानीय निवासी शंकर दास तथा मेवा लाल आदि को दे दिया था। वे लोग मंदिर के मूर्ति वाले कमरे पर कब्जा करके बैठे थे और वहाँ पर दान पात्र में जो भी दान आता था निकाल कर खा जाते थे। बनारस में रविदास जयंती आदि मनाने की अनुमति लेने तथा उसमें मंदिर में चढ़ावा आदि पर भी उनका ही कब्जा था। एक दिन जब मैं सीर गोवर्धनपुर गया तो वहाँ पर मुझे डेरा की तरफ से भोला राम तथा संत सुरेन्द्र दास मिले। उन्होंने मुझे बताया कि शंकर दास वगैरा ने मंदिर के मुख्य कमरे पर कब्जा कर रखा है और वे उन्हें कोई काम नहीं करने नहीं दे रहे। उन्होंने मुझे उस पत्र की प्रतिलिपि दिखाई जिसके आधार पर बंता राम घेढ़ा ने मंदिर पर कब्जा कर रखा था। जब मैंने उस पत्र को पढ़ा तो पाया कि उसमें लिखा हुआ था कि रविदास मंदिर का निर्माण डेरा बललां द्वारा करवाया जा रहा है और यह पूरी रविदासिया कौम की मलकीयत होगी। इसका पूरा प्रबंध आल इंडिया आदिधर्म मिशन द्वारा किया जाएगा और इसमें किसी का कोई दखल नहीं होगा। इस पर संत सरवन दास, भोला राम और बंता राम घेढ़ा के हस्ताक्षर थे और यह आल इंडिया आदिधर्म मिशन के पैड पर था। मैंने इसके बारे में भोला राम से पूछा तो उसने बताया कि यह कागज तो सही है। संत सरवन दास ने यह लिख कर दिया था। इस पर मैंने भोला राम को कहा कि मंदिर बचाने के लिए आपको थोड़ा झूठ बोलना होगा। आपको यह कहना होगा कि उक्त पत्र पर मेरे हस्ताक्षर फर्जी हैं और संत सरवन दास जो उस समय तक वह ब्रह्मलीन हो चुके थे, के हस्ताक्षर भी फर्जी हैं। इस आधार पर हम लोग बंता राम के मंदिर पर कब्जे को चुनौती दे सकते हैं। इस पर भोला राम जो बललां के पास अहिमा काजी के रहने वाले थे, मेरे प्रस्ताव पर सहमत हो गए। इस के बाद मैंने भोला राम की तरफ से बंता राम के विरुद्ध अवैध ढंग से मंदिर पर कब्जा करने का शिकायती पत्र जिला प्रशासन को भिजवाया।
इस झगड़े के कारण निर्माण कार्य रुका हुआ था क्योंकि बंता राम का कहना था कि इसके निर्माण के लिए जो भी पैसा लगाना है वह हमें दिया जाए, निर्माण कार्य हम करवाएंगे, इसी लिए उन्होंने मंदिर में डेरा बललां के नाम से लगा हुआ पत्थर भी उखड़वा कर अपना पत्थर लगवा दिया था। शंकर दास वहाँ पर डेरे के रह रहे लोगों के साथ गाली गलौच करते थे और उन्हें नल से पानी नहीं लेने देते थे। एक बार तो मैंने औरतों को गाली देते हुए स्वयं सुना था। वास्तव में वे चाहते थे कि वहाँ पर पंजाब का कोई आदमी नहीं रुके। एक बार जब पंजाब के कुछ लोग वहाँ गए तो शंकर दास ने यह दरखास्त दे दी कि यह खालिस्तानी लोग हैं जो मंदिर पर कब्जा करने के लिए आए हैं। इस पर मैंने जिला प्रशासन को
बताया कि ये सब डेरा के लोग हैं। एक बार शंकर दास ने जिला प्रशासन से मिल कर मंदिर में पुलिस चौकी खुलवा दी थी जिसका मैंने विरोध करवाया और पुलिस चौकी हटवाई गई।
एक बार शंकर दास के आदमी मंदिर के हाल जिसमें भोला राम वगैरह रुकते थे, से काफी सामान दरी, बर्तन, पंखा आदि उठा कर ले गए। इस पर मैंने उनके विरुद्ध थाना लंका पर चोरी का केस दर्ज करवाया। शंकर दास ने मेरे विरुद्ध भी मुख्य मंत्री को शिकायत भेजी थी कि मैं मंदिर के मामले में दखल दे रहा हूँ। इस दौर में पैरवी का पूरा काम भोला राम देखते थे और उनके साथ संत सुरेन्द्र दास लगातार रहते थे। मेरा यह निश्चित मत है कि यदि भोला राम ने मंदिर को मुक्त कराने की इतनी पैरवी न की होती और उस समय मेरी वहाँ पर पोस्टिंग नहीं होती तो शायद मंदिर को मुक्त कराना संभव नहीं होता। बंता राम द्वारा मंदिर में लगाए गए झगड़े के कारण मंदिर निर्माण का काम बहुत सालों तक रुका रहा। यह काम 1991 जब मेरा बनारस से लखनऊ स्थानांतरण हुआ, तक भी शुरू नहीं हो सका था परंतु मंदिर डेरे के कब्जे में आ गया था। मेंरे विचार में डेरे से जुड़े सभी लोगों को श्री गुरु रविदास जन्मस्थान सीर गोवर्धनपुरा की मुक्ति के इस इतिहास को जरूर जानना चाहिए।
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