शनिवार, 10 दिसंबर 2011

मायावती का आरक्षण खेल
उत्तर प्रदेश में जैसे जैसे विधान सभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे वैसे राजनीतक पार्टियाँ लोगों को लुभावने के लिए तरह तरह के नारे उछाल रही हैं. मायावती इस में सब से आगे दिखाई दे रही है. पिछले हफ्ते मायावती ने दो घोषणाएं की हैं जिस दुआरा उसने सभी मुसलमानों तथा आर्थिक तौर पर कमज़ोर सवर्णों को आरक्षण देने हेतु खुद कुछ न करके केवल प्रधान मंत्री को चिट्ठी लिख कर यह दिखाने कि कोशिश कीहै वह इन वर्गों की बहुत शुभ चिन्तिक है. अब अगर मायावती की इस कारगुजारी को देखा जाये तो यह स्पष्ट है की यह केवल चुनावी पैंतरेबाजी है और लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश है. इस के माध्यम से वह यह भी दिखाना चाहती है कि वह तो इन वर्गों को आरक्षण देना चाहती है परन्तु केंद्र की कांग्रेस सरकार इसे नहीं दे रही है.

अब अगर मायवाती के मुस्लिम आरक्षण के मामले को देखा जय तो यह प्रशन उठता है कि मायावती को साढ़े चार साल पहिले इस की याद क्यों नहीं आई और अब जब चुनाव में केवल छे महीने ही रह गए हैं तो इस मामले को क्यों उठाया है. इस से स्पष्ट है कि यह केवल चुनावी पैंतरेबाजी है. इस के साथ ही यह भी देखना जरुरी है कि क्या मायावती दुआरा सभी मुसलमानों को आरक्षण देने की बात तो यह देखना ज़रूरी है की क्या यह औचित्यपूर्ण और संभव भी है. संविधान में आरक्षण सम्बन्धी प्राविधानों को जानने वाले सभी लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि इन प्राविधानों के अंतर्गत सभी मुसलमानों को आरक्षण देना संभव नहीं है. संविधान की धारा १५(४) और १६(४) के अनुसार पिछड़ी जातियों में से केवल उन जातियों को आरक्षण दिया जा सकता है जो (१) सामाजिक और शैक्षिक तौर पर पिछड़ी हैं और (२) उनका सरकारी सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है. अब इस माप दंड से सभी मुस्लिम बिरादरियों को आरक्षण देना संभव ही नहीं हैं. हाँ उनमे से केवल उन पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जा सकता है जो इस संविधानिक माप दंड को पूरा करती हैं. यह भी सर्व विदित है कि इन पिछड़ी जातियों को पहले ही पिछड़े वर्ग के २७% आरक्षण के अंतर्गत आरक्षण मिला हुआ है. यह बात अलग है कि वास्तव में यह उन्हें नहीं मिल पा रहा है क्यों कि पिछड़ी जातियों में हिन्दू जातियों के अगड़े तबके इस को हजम कर जाते हैं. पिछड़े वर्ग की अति पिछड़ी जातियों को उनका हक़ दिलाने के उद्देश्य से बिहार में कर्पूरी ठाकुर ने इसे पिछड़ी जातियों के अंतर्गत पिछड़ी जातियों तथा अति पिछड़ी जातियों के बीच में उनकी आबादी के अनुपात में बाँट दिया था. उत्तर प्रदेश में भी इस के निर्धारण हेतु डॉ. छेदी लाल साथी की अध्यक्षता में सर्वाधिक पिछड़ा आयोग गठित किया गया था जिन ने वर्ष १९७७ में अपनी रिपोर्ट में यह संस्तुति की थी कि प्रदेश में पिछड़ी जातियों के आरक्षण को (१) पिछड़ी जातियों में अगड़ी जातियों, (२) हिन्दू अति पिछड़ी जातियों तथा (३) मुस्लिम अति पिछड़ी जातियों की आबादी के अनुपात में तीन हिस्सों में बाँट दिया जाये ताकि सभी जातियों को अपना अपना हिस्सा मिल सके. मंडल आयोग ने भी अति पिछड़ी जातियों को ८% आरक्षण देने की संस्तुति की थी. इस आयोग कि सिफ़ारिशो को लागू करने के लिए काफी समय से मांग की जाती रही है और पिछले दो साल से तो जन संघर्ष मोर्चा इसे लागू करने कि मांग करता आ रहा है परन्तु मायायती ने कभी भी इस पर विचार करने की ज़रूरत नहीं समझी. अब भी इस पर कोई विचार न करके सारे मुसलमानों को आरक्षण देने की बात उछाल दी गयी है. अब भी अगर मायावती इन सिफारिशों को लागू कर दे तो मुसलमानों का कुछ भला हो सकता है.

अब अगर मायावती के सवर्णों में आर्थिक तौर पर गरीब लोगों को आरक्षण देने के शगूफे को देखा जाये तो यह भी महज चुनावी पैंतरेबाजी ही है क्यों कि मायवाती और उसके सलाहकार अच्छी तरह से जानते हैं कि वर्तमान संवैधानिक व्यस्था के अंतर्गत आर्थिक आधार पर आरक्षण देना संभव ही नहीं है. फिर भी अगर मायावती देना चाहती है तो उसे कौन रोक रहा है.

यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि उत्तर परदेश में तो दलितों का आरक्षण भी खतरे में पड़ा हुआ है और इलाहाबद उच्च न्यायालय के आदेश से पदौन्नति तथा परिणामी जयेष्टता पर रोक लगी हुई है और अब मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. यह सब मायावती सरकार दुआरा हाई कोर्ट में उचित पैरवी न करने का ही परिणाम है . दलित इस स्थिति से काफी नाराज़ तथा चिंतित हैं.

इस के साथ ही यह भी ज्ञातव्य है कि मायावती इस के पूर्व पिछड़ी जातियों का वोट लेने के चक्कर में १३ पिछड़ी जातियों को दलित जातियों की सूची में शामिल करने की केंद्र सरकार को संस्तुति भेज चुकी है जब कि वह जानती है कि ऐसा होना संभव नहीं है. फिर भी इन पिछड़ी जातियों को बेवकूफ बनाने के इरादे से उसने संस्तुति भेज दी जैसा कि मुलायम सिंह ने किया था और उस समय मायावती ने इस का विरोध किया था. बाद में यह मामला उच्च न्यायालय के आदेश से निरस्त हो गया था. इस से एक तरफ तो मायावती का पिछड़ी जातियों को यह दिखाने का प्रयास है कि वह तो उन्हें दलित सूची में डलवा कर दलित आरक्षण का लाभ देना चाहती है परन्तु केंद्रीय सरकार नहीं दे रही है. दूसरी ओर मायावती का यह कदम दलित हित पर कुठाराघात है जिससे उसके दलित प्रेम का सच भी उजागर हो जाता है. मायावती के इस कदम से दलित काफी आक्रोशित हैं.

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि मायवाती सभी मुसलमानों और आर्थिक तौर पर गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के नाम पर केवल चुनावी पैंतरेबाजी कर रही है. इसे मुसलमान और सवर्ण भी अच्छी तरह से समझ रहे हैं और वे मायावती कि इस झांसे में आने वाले नहीं हैं. अब शायद मायावती इस दिशा में बहुत पिछड़ चुकी हैं.
एस. आर. दारापुरी आई .पी. एस. (से. नि. )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

क्या डेटा कोटा के विभाजन को उचित ठहराता है?

  क्या डेटा कोटा के विभाजन को उचित ठहराता है ? हाल ही में हुई बहसों में सवाल उठाया गया है कि क्या अनुसूचित जाति के उपसमूहों में सकारात्म...