(इतिहास के झरोखे से)
हमारा गणराज्य कितना धर्म निरपेक्ष?
एस. आर. दारापुरी आई. पी. एस. (से.नि.)
हम लोग अवगत हैं कि हमारे देश के संविधान के अनुसार हमारा गणराज्य
धर्म निरपेक्ष गणराज्य है जिस का अर्थ है कि राज्य का कोई भी धर्म नहीं है. इस
कारण राज्य के काम काज में धर्म का कोई दखल नहीं होगा. इस से अपेक्षा की जाति है कि राज्य का काम करने
वाली विधायका, कार्यपालिका और न्याय पालिका भी धर्म निरपेक्ष होगी और इन में
कार्यरत्त व्यक्ति भी पूर्णतया धर्म निरपेक्ष आचरण करेगे. परन्तु अब तक गणराज्य के व्यवहार से ऐसा होना
नहीं पाया गया है. इस के कुछ ऐतहासिक उदहारण निम्न हैं:-
1.
14 अगस्त, 1947 की रात को 12 बजे जब आज़ादी का
झंडा फहराया गया था उस से तीन घंटा पहले नेहरु और उन के साथी दिल्ली में एक पवित्र
अग्नि के इर्द गिर्द बैठे थे और इस कर्मकांड के लिए तंजौर से खास तौर पर बुलाये गए
पुजारियों ने मन्त्र पढ़े थे और उन के ऊपर पवित्र जल छिड़का था. महिलाओं के माथे पर
संधूर का तिलक लगाया गया था. इस के तीन घंटे बाद हिन्दू ज्योतिशियों द्वारा
निर्धारित दिन और समय पर मध्य रात्रि में नेहरु ने राष्ट्र ध्वज फहरा कर
ब्रोडकास्ट द्वारा देशवासियों को बताया था कि उन की भाग्य के साथ पूर्व निश्चित
भेंट हो गयी है और भारत गणराज्य का जन्म हो गया है. ( सन्दर्भ: दा इंडियन
आइडियोलॉजी – पैरी एंडरसन , पृष्ठ 103)
2.
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
बहुत धर्म भीरु हिन्दू थे. दुर्भाग्य से कायस्थ होने के कारण वे शूद्र वर्ग में
आते थे. इस कारण उन का सामाजिक दर्जा निम्न था जिस के उच्चीकरण के लिए उन्हें काशी
की विद्वत जन सभा से आशीर्वाद प्राप्त करना ज़रूरी था. अतः 1950 में राष्ट्रपति बनने
के तुरंत बाद वे काशी गए. वहां पर उन्होंने विद्वत जनसभा के 200 ब्राह्मण सदस्यों
के चरण धोये और उन्हें दक्षिणा दी.
डॉ. राजेद्र प्रसाद के इस कृत्य से दुखी हो कर डॉ.
राम मनोहर लोहिया ने अपनी पुस्तक “ डा कास्ट सिस्टम “ के प्रारंभ में ही लिखा था, “भारतीय
लोग इस पृथ्वी के सब से अधिक उदास लोग हैं........भारत गणराज्य के राष्ट्रपति ने
बनारस शहर में शरेआम दो सौ ब्राह्मणों के चरण धोये. शरेआम दुसरे के चरण धोना भोंडापन है, इसे केवल ब्राह्मणों तक
ही सीमित रखना एक दंडनीय अपराध होना चाहिए. इस विशेषाधिकार प्राप्त जाति में केवल
ब्राह्मणों को बिना विद्वता और चरित्र का भेदभाव किये शामिल करना पूरी तरह से
विवेकहीनता है और यह जाति व्यवस्था और पागलपन का पोषक है.
राष्ट्रपति का ऐसे भद्दे प्रदर्शन में शामिल होना
मेरे जैसे लोगों के लिए निर्मम अभ्यारोपण है जो केवल दांत पीसने के सिवाय कुछ नहीं
कर सकते.” ( The Caste System- Lohia, page 1 & 2)
3. (क ) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने जब राष्ट्रपति के रूप
में राष्ट्रपति में प्रवेश किया तो उन्होंने सब से पहले राष्ट्रपति भवन में
कार्यरत सभी मुस्लिन खानसामों (रसोईयों) को हटा दिया. नेहरु इस से बहुत नाराज़ हुए.
इस पर उन्होंने आदेश दिया कि सभी मुस्लिम
खानसामों को हिन्दू खानसामों की जगह प्रधान मंत्री के निवास पर लगा दिया जाये जब
कि इस से सुरक्षा अधिकारी नाखुश थे.
3.(ख) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की एक अन्य हरकत से
नेहरु बहुत नाराज़ थे जब वह राष्ट्रपति के रूप में सोमनाथ मंदिर जिस का जीर्णोद्धार
किया गया था में शिवलिंग की स्थापना समारोह में भाग लेने गए थे. नेहरु को यह पता
चला था कि खाद्य और कृषि मंत्री ने सरदार पटेल से मिल कर चीनी का मूल्य बढाया था
और उस बढ़ी कीमत में से आधा पैसा चीनी मिल वालों ने रख लिया था और आधा पैसा सोमनाथ
मंदिर के जीर्णोद्धार में लगाया गया था. नेहरु को यह सूचना काफी देर से मिली थी
जबकि इस सम्बन्ध में कुछ भी करना संभव नहीं था. यह भी ज्ञातव्य है कि नेहरु ने
राजेन्द्र प्रसाद जी को वहां पर जाने से लिखित रूप में जाने से मना किया था परन्तु
वह नहीं माने. (सन्दर्भ: Reminiscences of the Nehru
Age – M.O.Mathai , p- 71))
4.डॉ. राजेन्द्र प्रसाद हनुमान भक्त थे. इसी लिए
जब वे राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो उन्होंने राष्ट्रपति भवन में कई लंगूर रख लिए जिन्हें
वे अपने हाथ से खिलाते थे. जल्दी ही इन लंगूरों की जन संख्या में काफी वृद्धि हो
गयी. ये लंगूर आस पास के रिहाइशी इलाकों के घरों में घुस कर सामान उठा लाते थे और
नार्थ ब्लाक तथा सायूथ बलाक में घुस कर
पत्रावलियां तथा टिफिन आदि उठा लाते थे
परन्तु इन के उत्पात के विरुद्ध कुछ भी करना संभव नहीं था. राष्ट्रपति भवन के पास
रहने वाले लोगों तथा सचिवालय के कर्मचारियों को तब राहत मिली जब राजेन्द्र प्रसाद
जी राष्ट्रपति के पद से मुक्त हो गए और वे सभी लंगूर पकड़ कर दिल्ली के चिड़िया घर
में पहुंचा दिए गए.
5. पंडित मदन मोहन मालवीय एक कट्टर सनातनी
हिन्दू थे जो मुसलमानों, ईसाईयों और विदेशियों को अछूत मानते थे. वह जब भी इंगलैंड
जाते थे तो अपने गंगा जल के कई लोटे ले जाते थे. वहां पर जब भी कोई अँगरेज़ या
निम्न जाति का हिन्दू उन के कमरे में मिलने के लिए आता था तो वह उस के जाने के बाद
कमरे को गंगा जल छिड़क कर पवित्र करते थे. कट्टर हिन्दू आज भी पञ्च गव्या; गाय का
पेशाब, गोबर, मक्खन और दूध का मिश्रण बना कर मंदिर और तालाब का शुद्धिकरण करते
हैं. (सन्दर्भ: Thus Spoke Ambedkar Vol. IV pages 101 & 102)
6. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद कट्टर सनातनी हिन्दू
थे. जब डॉ. आंबेडकर ने कानून मंत्री के रूप में नेहरु जी की सहमती से लोक सभा हिन्दू
कोड बिल पेश किया था तो डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने हिन्दू कोड बिल का विरोध किया था
जैसा कि अन्य कट्टर हिन्दू सदस्य और संगठन कर रहे थे. परिणाम स्वरूप हिन्दू कोड
बिल पास नहीं हो सका और इस से नाराज़ हो कर डॉ. आंबेडकर ने नेहरु मंत्रिमंडल से
इस्तीफा दे दिया था.
...........जारी है
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