गेस्ट हाउस काण्ड का सच्च और मायावती की राजनीति
-एस. आर.
दारापुरी
दरअसल दो जून, 1995
की घटना वैसी नहीं थी जैसा कि प्रचारित किया गया है. इस की असली कहानी यह थी कि
कांशी राम मुलायम सिंह से पैसे की अपेक्षा कर रहे थे क्योंकि उन को मालूम था कि
हरेक मुख्य मंत्री को काफी अच्छी आमदनी होती है. यह कहा जाता है कि मुख्य मंत्री
को कुछ विभागों जैसे पी.डव्लयू.डी. सिंचाई, ऊर्जा और कुछ अन्य विभागों से बंधी बंधाई रकम मिलती है. 1993 में सपा और बसपा
की मिलीजुली सरकार थी. अतः कांशी राम मुलायम सिंह से इस में हिस्सेदारी चाहते थे.
कांशी राम मुलायम सिंह से सीधे पैसे न मांग कर बाहर उस की आलोचना करते थे. जब
मुलायम सिंह उन्हें कुछ दे देते थे तो वह यह कह कर दिल्ली चले जाते थे कि अब
मुलायम सिंह समझ गए हैं और वह ठीक काम करेंगें. यह सिलसिला कई महीनों तक चलता रहा
परन्तु कांशी राम के ब्लैकमेल करने के तौर तरीके में कोई अंतर नहीं आया. वैसे
अकलमंदी की बात तो यह थी कि गठबंधन की सरकार में उन्हें मुलायम सिंह से अन्दर बैठ
कर हिस्सा पत्ती तै कर लेनी चाहिए थी परन्तु तजुर्बे की कमी की वजह से उन्होंने
ऐसा नहीं किया. मुलायम सिंह जो कि राजनीति के पुराने खिलाड़ी थे ने सोचा कि क्यों न
कांशी राम का "खाने और गुर्राने" का खेल ही खत्म कर दिया जाये. उस ने
बसपा के विधायकों को तोड़ना और खरीदना शुरू कर दिया और बसपा के 69 विधायकों में से
लगभग 40 विधायकों को तोड़ लिया.
29 मई, 1995 को
कांशी राम लखनऊ आये तो उन्होंने अपनी पार्टी के विधायकों की मीरा बाई मार्ग स्थित
अतिथि गृह में मीटिंग बुलायी पर उस में बड़ी संख्या में विधायक हाज़िर नहीं हुए. जांच
पड़ताल करने पर कांशी राम को पता चला कि मुलायम सिंह ने उन की पार्टी के लगभग 40
विधायकों को तोड़ लिया है और वह सरकार गिरा कर नयी सरकार बना लेंगे.
इस पर कांशी राम
तुरंत दिल्ली वापस गए और उन्होंने भाजपा के नेताओं से बातचीत की कि अगर वह बसपा को
समर्थन देने को तैयार हों तो वह मुलायम सिंह की सरकार गिरा देंगे और मायावती को
मुख्य मंत्री बनाया जायेगा. उस समय भाजपा मुलायम सिंह से बहुत त्रस्त थी और वह
किसी भी तरह से दलित-मुस्लिम-पिछड़ा गठबंधन को तोड़ना चाहती थी. यह ज्ञातव्य है कि
1993 में जिस शाम गवर्नर हाउस में सपा-बसपा सरकार का शपथ ग्रहण हुआ था उस रात वहां
पर “मिले मुलायम कांशी राम, हवा में उड़ गया जय श्रीराम” के नारे लगे थे और राजनीती
में दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों के गठबंधन की नयी शुरआत हुयी थी. इस से इन वर्गों
में एक नए उत्साह का सृजन हुआ था और सवर्ण जातियों के लिए एक बड़ी चुनौती पैदा हुयी
थी. पूरे देश में इस गठबंधन की ओर बड़ी आशा से देखा जा रहा था. परन्तु पैसे के झगडे
ने इस समीकरण को तहस नहस कर दिया. भाजपा ने कांशी राम का प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार
कर लिया.
भाजपा से समर्थन
मिल जाने पर पहली जून को मायावती लखनऊ पहुंची और दो जून को उस ने बसपा के विधायकों
की मीराबाई मार्ग स्थित अतिथि गृह के कामन हाल में मीटिंग बुलाई और सभी विधायकों
को अपने अपने इस्तीफे पर हस्ताक्षर करके देने को कहा. इसी बीच मुलायम सिंह के खेमे
में यह खबर पहुँच गयी कि बसपा समर्थन वापस लेकर सरकार गिराने जा रही है और
अहमदाबाद जहाँ उस समय भाजपा की सरकार थी, से एक हवाई जहाज़ लखनऊ आ रहा है जो बसपा
के विधायकों को अहमदाबाद ले जायेगा. इस पर मुलायम सिंह के समर्थकों ने मुलायम सिंह
को समझाया कि चिंता करने की कोई बात नहीं क्योंकि हम बसपा के विधायकों जिन के साथ
पहले ही सौदा पट चुका था को गेस्ट हाउस से उठा ले आयेंगे. इस पर वे गाड़ियाँ ले कर
मीराबाई मार्ग गेस्ट हाउस पहुंचे और कामन हाल में से उन विधायकों को उठा कर
गाड़ियों में बैठाने लगे. उस समय मायावती गेस्ट हाउस के कमरा नंबर एक में कुछ
विधायकों के साथ बैठी थी और बाहर हल्ला गुल्ला सुनकर उस ने अपने कमरे का दरवाज़ा
बंद कर लिया. उस समय वहां पर आई.टी.बी.पी. की सुरक्षा गार्द लगी हुयी थी. बाद में जब
मैं ने उस समय वहां पर तैनात पुलिस अधिकारियों से घटना के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि
वहां पर एकत्र हुयी भीड़ ने मायावती के बारे में कुछ अपशब्द तो ज़रूर कहे थे परन्तु
उन पर किसी प्रकार का कोई हमला नहीं किया गया था जैसा कि मायावती द्वारा प्रचारित
किया गया. उन्होंने मुझे बताया था कि वहां पर तैनात गार्ड ने किसी को भी मायावती
के कमरे तक नहीं जाने दिया था.
उसी समय पूर्व
योजना के अंतर्गत भाजपा ने गेस्ट हाउस की घटना को लेकर राज्यपाल के कार्यालय पर
धरना दे दिया जिस के फलस्वरूप मुलायम सिंह की सरकार बर्खास्त कर दी गयी और भाजपा के समर्थन से मायावती मुख्य मंत्री बन गयी. इन
तथ्यों से स्पष्ट है कि मायावती पर गेस्ट हाउस पर उस पर जानलेवा हमला किये जाने की
बात बिलकुल गलत है और यह केवल मामले को तूल देने के लिए कही गयी थी.
इस घटना से लाभ
उठा कर मायावती मुख्य मंत्री तो बन गयी परन्तु देश की राजनीती में पहली बार
दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों का उभरा गठबंधन हमेशा हमेशा के लिए टूट गया. मायावती
ने इस घटना को खूब प्रचारित किया और दलितों और पिछड़ों के बीच एक ऐसी खाई पैदा कर
दी जिसे पाटना बहुत मुश्किल हो रहा है. भाजपा ने इस मौके का पूरा फायदा उठाया और
मायावती की कुर्सी और पैसे की भूख के कारण तीन बार गठबंधन कर के उत्तर प्रदेश में
अपने को पुनर जीवित कर लिया. यदि देखा जाये तो उत्तर प्रदेश में भाजपा को पुनर
जीवित करने का सारा श्रेय बसपा को ही जाता है. मायावती ने तो 2001 में गुजरात जा
कर मोदी के पक्ष में चुनाव प्रचार भी किया था. अब भी मायावायी भाजपा सरकार को
समर्थन दे रही है.
1995 में दलितों,
पिछड़ों और मुसलामानों का गठबंधन टूटने से इन वर्गों का बहुत नुक्सान हुआ. 1996 के
लोकसभा चुनाव में कुछ लोगों ने सपा और बसपा को पुनः एक साथ लाने की कोशिश की.
मुलायम सिंह ने कुछ दलित विधायकों और सांसदों को यह कह कर दिल्ली भेजा कि अगर
कांशी राम तैयार हों तो वह उन से पुनः हाथ मिलाने को तैयार हैं. जब उन लोगों ने
दिल्ली जा कर कांशी राम से बात की तो वह इस के लिए तैयार हो गए और उन्होंने इस
सम्बन्ध में शाम को दिल्ली में बयान भी दे दिया. उस दिन मायावती लखनऊ में ही थी.
इस ब्यान के आने पर मायावती ने अगले दिन ही “इसका सवाल ही पैदा नहीं होता” कह कर
कांशी राम के बयान को काट दिया और यह गठबंधन होते होते रह गया. उस समय तक मायावती
बीजेपी के चंगुल में पूरी तरह फंस चुकी थी. अटल बिहारी वाजपयी ने उसे अपनी दत्तक
पुत्री और लालजी टंडन और मुरलीमनोहर जोशी ने उसे अपनी राखीबंध बहन बना लिया था.
गठबंधन टूटने के
बाद माया-मुलायम की व्यक्तिगत दुश्मनी इस हद तक बढ़ी कि उस ने दलितों और पिछड़ों को
दो दुश्मन जातियों के खेमों में बाँट दिया. मुलायम सिंह ने भी दूरदर्शाता का परिचय
नहीं दिया. उस ने भी सभी दलितों को मायावती का बंधुया मान कर उन के साथ शत्रुता का
व्यवहार किया और पदोन्नति में आरक्षण तक के विरोध की सीमा तक चले गए.
सपा-बसपा के झगड़े
में दो बंदरों की रोटी की लडाई और बिल्ली वाली कहानी बिलकुल सही चरितार्थ हुयी है.
अब बिल्ली गद्दी पर बैठी है और बन्दर मन मसोस कर एक दूसरे को कोस रहे हैं.
माया-मुलायम दोनों ने ही जातिवादी राजनीति और जातियों की शत्रुता का सहारा लेकर कई
बार गद्दी तो हथियाई परन्तु इस से दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों का कोई भला नहीं
हुआ. मायावती और मुलायम सिंह ने सत्ता में रह कर काफी धन दौलत कमा ली है और दोनों
ही सी.बी.आई. के चंगुल में फंसे हैं. अतः अब ज़रुरत है कि दलित, पिछड़े और मुसलमान
माया-मुलायम की जातिवादी और जाति दुश्मनी की राजनीति से मुक्त हो कर अपने हित के
मुद्दों पर एकजुट हों और देश में उभरती हिंदुत्व की कार्पोरेटी राजनीति का सामना
करने के लिए लामबंद होकर जनवादी और प्रगतिशील राजनीति करने वाली पार्टियों का साथ
दें.
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