मायावती के भ्रष्टाचार की दलित राजनीति पर काली छाया
-एस. आर. दारापुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स
फ्रंट
आज लगभग सभी
समाचार पत्रों में मायावती के विरुद्ध आय से ज्यादा संपत्ति के मामले को लेकर
समाचार छपे हैं. इस में यह बताया गया है कि लखनऊ के एक व्यक्ति कमलेश कुमार वर्मा
की सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका जिस में यह कहा गया है कि मायावती के
खिलाफ आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में सी.बी.आई. को मायावती के विरुद्ध नयी
प्रथम सूचना दर्ज करने का आदेश दिया जाये. इस पर कोर्ट ने मायावती को जवाब दाखिल
करने के लिए ततीन सप्ताह का समय दिया है.
पूर्व में
सी.बी.आई. द्वारा ताज कोरिडोर के मामले की जांच के दौरान मायावती के विरुद्ध मामला
दर्ज करके विवेचना उपरांत सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल करने पर कोर्ट द्वारा इसे
तकनीकि आधार पर रद्द कर दिया गया था. 2012 में कोर्ट ने ताज कोरिडोर मामले में सम्बंधित
अधिकारियों की संपत्तियों की जांच करने के आदेश दिए थे. इसी आदेश के अंतर्गत मायावती की संपत्तियों की जांच भी की गयी थी.
जांच से मायावती की संपत्तियां उस की ज्ञात आय से बहुत अधिक पायी गयी थीं. इस पर
सी.बी.आई. ने अपनी तरफ से प्रथम सूचना दर्ज न करके ताज कोरिडोर के मामले में
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आधार बना कर प्रथम सूचना दर्ज की थी जिसे सुप्रीम कोर्ट
ने यह कह कर रद्द कर दिया था कि उस ने सी.बी.आई. को ऐसा आदेश नहीं दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने यह ज़रूर कहा था कि अगर सी.बी.आई. चाहे तो अपनी तरफ से प्रथम
सूचना दर्ज करके अग्रिम कार्रवाही कर सकती है परन्तु अज्ञात कारणों से सी.बी.आई.
ने ऐसा नहीं किया. कुछ लोगों का कहना है कि सी.बी.आई. ने ऐसा तत्कालीन सत्तारूढ़
पार्टी (कांग्रेस) के राजनीतिक दबावव के कारण नहीं किया था क्योंकि मायावती यूपीए
की सरकार को समर्थन दे रही थी. वर्तमान जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने
सी.बी.आई. से भी प्रथम सूचना दर्ज न करने का कारण पूछा है. जनहित याचिका की पैरवी
कर रहे वकील शांति भूषण का कहना है कि इस मामले में सी.बी.आई. पहले ही पर्याप्त
सबूत इकठ्ठा कर चुकी है और मायावती के विरुद्ध चार्ज शीट भी तैयार कर चुकी है.
इस जनहित याचिका
के सम्बन्ध में कानून जानने वालों का कहना है अब मायावती के लिए बचना शायद उतना
आसान नहीं होगा जितना कि पहले था. अब क्योंकि सी.बी.आई पहले ही मायावती की आय से
अधिक संपत्ति के बारे में सारे सुबूत इकट्ठे कर के आरोप पत्र तक तैयार कर चुकी है
अतः अब उस के लिए प्रथम सूचना दर्ज न करने का कोई बहाना नहीं चलेगा. इस समय
मायावती के लिए भी अपने निर्दोष होने के बारे में कोई सफाई देना संभव नहीं होगा.
परिणामस्वरूप अगर सुप्रीम कोर्ट सी.बी.आई. को मायावती के विरुद्ध प्रथम सूचना दर्ज
करके विवेचना करने का आदेश दे देती है तो यह मायावती के लिए काफी भारी पड़ सकता है.
यह भी उल्लेखनीय है कि मायावती के विरुद्ध उक्त मामला 1995 से 2003 तक का है परन्तु
अगर सी.बी.आई. चाहे तो वह इस के बाद की
अवधि की संपत्ति की जांच भी कर सकती है क्योंक इस दौर में भी मायावती की संपत्ति
में अप्रत्याशित वृद्धि हुयी है. कानून में “लगातार अपराध” की विवेचना का भी
प्रावधान है.
मायावती के आय से
अधिक संपत्ति के मामले में अंतिम परिणाम क्या होगा यह तो समय ही बताएगा परन्तु
मायावती के भ्रष्टाचार का दलित राजनीति पर बहुत बुरा असर हुआ है. इस पार्टी के
संस्थापक कांशी राम ने बाबा साहेब का मिशन पूरा करने के नारे के साथ राजनीति में
कदम रखा था. अतः इस पार्टी के खास करके इस की कर्ताधर्ता मायावती के कार्य कलापों
को बाबा साहेब की विचारधारा पर ही जांचना उचित होगा.
अब अगर मायावती के
भ्रष्टाचार की बात की जाये तो इस सम्बन्ध में डॉ. आंबेडकर की टिप्पणी बहुत
प्रासंगिक है. इस में बाबा साहेब ने एक बार किसी सन्दर्भ में कहा था, “मेरे विरोधी
मेरे ऊपर तमाम आरोप लगाते रहे हैं परन्तु आज तक मेरे ऊपर कोई भी दो आरोप नहीं लगा
सका. एक मेरे चरित्र के बारे में और दूसरा मेरी ईमानदारी के बारे में.” क्या मायावती
इस प्रकार का दावा कर सकती है? बाबा साहेब की ईमानदारी की दूसरीं मिसाल यह है कि
जब बाबा साहेब नेहरु मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री थे तो कुछ उद्योगपति दिल्ली में
उनके बेटे यशवंत राव से आ कर मिले और उन्होंने उसे अपने पिता जी से अपना काम करा
देने के लिए कहा. इस के बारे में जब बाबा साहेब को पता चला तो उन्होंने तुरंत उस
का बोरिया बिस्तर बंधवा कर दिल्ली से बम्बई भिजवा दिया.
मायावती के
भ्रष्टाचार के बारे प्रो. तुलसी राम ने “दलित-जातिवादी राजनीती और हिंदुत्व” लेख में
जो लिखा है वह बहुत स्टिक है. उन्होंने लिखा है, “उन्हें आम सभाओं
में चांदी-सोने के ताज पहनाए जाते थे और उनके हर जन्म दिवस पर लाखों
रुपए की भारी-भरकम माला भी पहनाई जाती थी। 1951 में मुंबई के दलितों ने बड़ी मुश्किल से दो सौ चौवन रुपए की एक थैली डॉ. आंबेडकर को उनके जन्मदिन पर भेंट की थी, जिस पर नाराज होकर उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर कहीं भी ऐसा दोबारा किया तो वे ऐसे समारोहों का बहिष्कार करेंगे।
पिछली दफा राज्यसभा का
परचा दाखिल करते हुए मायावती ने आमदनी वाले कॉलम में एक सौ तेईस करोड़ रुपए
की संपत्ति दिखाई थी। हकीकत यह थी कि मायावती के गैर-जनतांत्रिक
व्यवहार के चलते बसपा में भ्रष्ट और अपराधी तत्त्वों की भरमार हो गई थी,
जिसके कारण पूरा
दलित समाज न सिर्फ बदनाम हुआ, बल्कि इस से दलित विरोधी
भावनाएं भी समाज में खूब विकसित हुर्इं। एक तरह से मायावती दलित वोटों का
व्यापार करने लगी थीं। पिछले अनेक वर्षों में चमार और जाटव समाज के लोग उत्तर
प्रदेश में भेड़ की तरह मायावती के पीछे चलने लगे थे। इसलिए वे
भ्रष्टाचारियों और अपराधियों को चुन कर विधानसभा और संसद में
भेजने लगे थे। “ इस से स्पष्ट है
मायावती के भ्रष्टाचार का दलित राजनीति पर कितना दुष्प्रभाव पड़ा है.
मायावती के
भ्रष्टाचार का सब से बुरा असर बसपा काडर के आचरण पर पड़ा है जिस के कारण बहुत से
नेता और कार्यकर्त्ता भी भ्रष्ट हो गए जिन में से काफी जेल में हैं और बाकियों के
खिलाफ जांचें चल रही हैं. जब मायावती ऊँचे दामों पर विधान सभा, लोक सभा और जिला
परिषद के टिकट बेचने लगी तो टिकट खरीद कर चुनाव लड़ने वाले पूंजीपति, माफिया और
दबंग लोग चुनाव में कार्यकर्ताओं को पैसा बाँट कर वोट खरीदने लगे. इस से राजनीतिक
क्षेत्र में भ्रष्टाचार बहुत व्यापक हो गया. मायावती का दलित वोटों के बारे में यह
कहना कि यह हस्तान्तरणीय है पूरे दलित समाज के लिए अपमानजनक था. जब मायावती ने
ट्रांसफर पोस्टिंग में पैसा लेना शुरू किया तो इस का सब से बुरा प्रभाव समाज के
कमज़ोर तबकों खास कर दलितों पर पड़ा. यह स्वाभाविक है जो अधिकारी पैसा देकर पोस्टिंग
पाते थे वे फील्ड में जा कर भ्रष्टाचार करते थे. इस का नतीजा यह था कि वे विभिन्न
कल्याणकारी योजनाओं जैसे मनरेगा, राशन वितरण, पेंशन तथा अन्य योजनाओं में
भ्रष्टाचार करते थे और लाभार्थी अधिकतर दलित उन के लाभ से वंचित रह जाते थे. और तो
और मायावती ने दलित महापुरुषों की मूर्तियों में जो पत्थर लगवाये उन में भी बड़े
स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ. वैसे भी यह सर्वविदित है कि भ्रष्टाचार गरीब विरोधी होता
है. अतः मायावती के भ्रष्टाचार का सब से बड़ा खामियाजा दलितों को ही भुगतना पड़ा.
वैसे तो बसपा में
पैसा लेकर टिकट देने का धंधा काफी पहले ही शुरू हो गया था. 1994 में जब बसपा ने
राज्य सभा में एक सांसद भेजा था वह कोई दलित नहीं था. बल्कि वह एक उद्योगपति जयंत
मल्होत्रा था जिस को लेकर दलितों में काफी
प्रतिक्रिया और नाराज़गी थी. इस नाराज़गी के सम्बन्ध में मैंने जब कांशी राम से
चर्चा की तो उन्होंने मुझे स्पष्ट बताया कि “पार्टी को चलाने के लिए पैसे की ज़रुरत
होती है और मल्होत्रा ने हमारी पार्टी को पैसा दिया है.” इस पर मैंने उन्हें कहा
था कि अगर पैसा ही सब कुछ हो जायेगा तो फिर आप की पार्टी के गरीब मिशनरी कार्यकर्ताओं
का नंबर कब आएगा. पैसे देकर विधान सभा का टिकट पाने वालों में मेरे अपने सगे समधी छोटे लाल भी थे. वह जहाँ
से टिकट चाहते थे उन्हें वहां का टिकट न देकर दूसरी जगह का टिकट दे दिया गया और वह
चुनाव हार गए तथा बर्बाद हो गए. बाद में तो विधान सभा और लोकसभा के टिकट बोली लगा
कर बिकने लगे जिस से गुंडों, माफियाओं और पूँजीपतियों की पार्टी में भरमार हो गयी
और पार्टी के समर्पित कार्यकर्त्ता हाशिये पर चले गए.
वैसे तो आज कल राजनीतिक
क्षेत्र में ईमानदारी एक दुर्लभ वस्तु है. फिर भी यह आशा की जाती है कि जो वर्ग
भ्रष्टाचार का सब से अधिक शिकार रहा हो अगर वह सत्ता में आता है तो वह भ्रष्टाचार
को रोकने और कम करने की कोशिश ज़रूर करेगा. मायावती जो भ्रष्टाचार के सब से बड़े
शिकार लोग दलितों की प्रतिनिधि के तौर पर सत्ता में आई थी, इस अपेक्षा पर सही नहीं
उतरी इस के विपरीत उस ने उसी भ्रष्ट व्यवस्था को अपनाया और उसे मज़बूत किया जिस का
खामियाजा उत्तर प्रदेश के दलितों को भुगतना पड़ा. केवल इतना ही नहीं मायावती ने
अपने अनुयायियों की सोच को भी भ्रष्ट कर दिया है. मायावती के भ्रष्टाचार को वह यह
कह कर उचित ठहरा देते हैं कि जब अधिकतर नेता भ्रष्ट हैं तो मायावती के भी भ्रष्ट
होने में क्या बुरा है. कुछ तो यह भी कहते हैं कि चूँकि कि मायावती दलित है इस लिए
उस के भ्रष्टाचार की आलोचना की जाती है. पता नहीं कि ऐसा कह कर वे दलित नेतायों के
लिए भ्रष्टाचार में आरक्षण या छूट की वकालत कर रहे हैं या कुछ और. वैसे तो दलितों
के और नेता भी दूध के धुले नहीं हैं परन्तु अब तक उन के भ्रष्टाचार का सीमित असर
है परन्तु मायावती के भ्रष्टाचार का एक व्यापक असर हुआ है जिस ने दलित राजनीति को
बिकायू और भ्रष्ट बना दिया है. मायावती का यह कहना कि हमारा वोट बैंक हस्तान्तरणीय
है पूरे दलित समाज के लिए बहुत अपमानजनक रहा है. दरअसल मायावती ने दलित राजनीति को
उन्हीं गुंडों, बदमाशों, माफिययों और पूंजीपतियों के हाथों बेच दिया जिन से उनकी लडाई
थी और जिन के चंगुल से उन्हें मुक्त होना था. इस से सारा दलित आन्दोलन और दलित राजनीति वर्षों पीछे चली गई है और इसे फिर आगे बढ़ाने
में काफी समय और मेहनत लगेगी.
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