शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

यू.एन.ओ. द्वारा सूरीनाम में दलितों के साथ जातिभेद की निंदा




 यू.एन.ओ. द्वारा  सूरीनाम में दलितों के साथ जातिभेद की निंदा
-एस.आर.दारापुरी
हाल में यू.एन.ओ की रंगभेद सम्बन्धी कमेटी (CERD) द्वारा सूरीनाम देश में रंगभेद की रोकथाम हेतु की गयी कार्रवाही की समीक्षा की गयी तो पाया गया कि सूरीनाम में बसे भारतीयों द्वारा वहां पर बसे दलितों के साथ जातिभेद का व्यवहार किया जाता है. कमेटी ने उसे ख़त्म करने के लिए प्रभावी कदम उठाने की हिदायत की है.
यह विदित है कि सूरीनाम में भारी संख्या में भारतीय हिन्दू रहते हैं जो कि उन्नीसवीं सदी में अनुबंधित मजदूरों के रूप में खेती करने के लिए अंग्रेजों द्वारा लाये गए थे. बाद में अंग्रेजों ने उन्हें वहीँ पर थोड़ी थोड़ी ज़मीन दे कर बसा लिया था. इन में से अधिकतर पूर्वी उत्तर प्रदेश और पच्छिमी बिहार के निवासी हैं. इस समय वहां पर 27.1 % लोग भारतीय मूल के हिन्दू हैं. कुछ वर्ष पहले वहां पर शिवसागर रामगुलाम भारतीय मूल का व्यक्ति ही राष्ट्रपति था. वर्तमान में भी उप राष्ट्रपति आश्विन आधीन भारतीय मूल का ही है.  सूरीनाम में बसे भारतीय हिन्दू बहुत थोडा बदले हैं और आज भी पुरानी हिन्दू संस्कृति को ही मानते हैं. वे वहां पर बसे दलितों के साथ जातिभेद का व्यवहार करते हैं.
यह सही है कि हिन्दू दुनियां के जिस हिस्से में भी गए हैं वे हिन्दू धर्म द्वारा स्थापित जाति व्यवस्था भी साथ लेकर गए हैं और उस का धार्मिक कर्तव्य के रूप में अनुपालन करते हैं. उनके इस व्यवहार की दुनिया भर में निंदा होती है पर वे बदलते नहीं हैं क्योंकि जाति के बिना कोई हिन्दू हो ही नहीं सकता. इंग्लैण्ड में तो इस के खिलाफ एक कानून भी बना है. गाँधी जी ने जातिभेद को हिन्दू धर्म पर एक कलंक माना था. क्या हिन्दू कभी इस कलंक को धोने के बारे में सोचेंगे?    

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