क्या डॉ.
आंबेडकर भी देशद्रोही थे?
-एस.आर.दारापुरी आइ.पी.एस(से.नि.)तथा राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया
पीपुल्स फ्रंट
आज कल पूरे देश में देशभक्ति की सुनामी आई हुयी है. कभी वह JNU में देशद्रोहियों को बहा ले जाती
है और अब वह महाराष्ट्र के असेम्बली हाल तक पहुँच गयी है जो MIM पार्टी के विधान सभा सदस्य वारिस
पठान को बहा ले गयी है क्योंकि उस ने "भारत माता की जय" का नारा लगाने से
मना कर दिया था. परिणामस्वरूप उसे भाजपा, कांग्रस और एनसीपी ने मिल कर निलंबित कर दिया. अब
सवाल पैदा होता है कि क्या किसी सदस्य द्वारा उक्त नारा लगाना कोई संवैधानिक
बाध्यता है? वर्तमान में तो ऐसी कोई भी बाध्यता
नहीं है पर फिर भी उसे निलंबित कर दिया गया है. दरअसल इस के पीछे बहुसंख्यक हिन्दू
वर्ग की मान्यता को दूसरों पर जबरदस्ती थोपने की कोशिश है जिस में कांग्रेस भी
उतनी ही लिपित है जितनी भाजपा. दरअसल कांग्रेस शुरू से ही भाजपा को हिंदुत्व की
दौड़ में पिछाड़ने में लगी रही है परन्तु वह भाजपा को अब तक पिछाड़ने में सफल नहीं
हुयी है. डॉ. आंबेडकर इसे “बहुसंख्या का आतंकवाद” कहते थे और स्वतंत्र भारत में इस
के अधिक उग्र हो जाने की सम्भावना के बारे में बहुत आशंकित थे जो अब सच्च होता
दिखाई दे रहा है.
इस सम्बन्ध में डॉ. आंबेडकर की गाँधी जी से पहली मुलाकात के दौरान हुआ
वार्तालाप बहुत समीचीन है:
जब गाँधी जी ने डॉ. आंबेडकर से यह कहा कि कांग्रेस दलितों के उत्थान में
लगी है तो डॉ. आंबेडकर ने कहा कि हम इस के लिए न तो हिन्दुओं पर विश्वास करते हैं
और न ही किसी महात्मा पर. हम लोग स्वयं सहायता और आत्मसम्मान में विश्वास रखते
हैं. उन्होंने आगे गाँधी जी से पूछा कि कांग्रेस हमारे आन्दोलन का विरोध क्यों
करती है और मुझे देशद्रोही क्यों कहती है?
इसके आगे डॉ. आंबेडकर ने बहुत गंभीर हो कर कहा, " गाँधी जी, मेरी कोई मातृभूमि नहीं है. इस पर
गाँधी जी ने कहा," आप की मातृभूमि है और मेरे पास
राउंड टेबल कांफ्रेंस की जो रिपोर्ट पहुंची है, आप बहुत बड़े देशभक्त है." इस पर आंबेडकर ने कहा, "आप कहते हैं कि मेरी मातृभूमि है
परन्तु मैं फिर दोहराना चाहता हूँ कि मैं इस देश को अपनी मातृभूमि और इस धर्म को
अपना धर्म कैसे कह सकता हूँ जिस में हमारे साथ कुत्ते बिल्लियों से भी बुरा
व्यवहार किया जाता है और हम पीने के लिए पानी तक नहीं ले सकते............."
इसके अतिरिक्त एक अन्य अवसर पर डॉ. आंबेडकर ने बम्बई विधान सभा में बोलते
हुए कहा था- “मुझे अक्सर गलत समझा गया है. इसमें कोई
संदेह नहीं होना चाहिए कि मैं अपने देश को प्यार करता हूँ. लेकिन मैं इस देश के
लोगों को यह भी साफ़ साफ़ बता देना चाहता हूँ कि मेरी एक और निष्ठां भी है जिस के
लिए मैं प्रतिबद्ध हूँ. यह निष्ठां है अस्पृश्य समुदाय के प्रति जिसमे मैंने जन्म
लिया है. और मैं इस सदन में पुरजोर कहना चाहता हूँ कि जब कभी देश के हित और
अस्पृश्यों के हित के बीच टकराव होगा तो मैं अस्पृश्यों के हित को तरजीह दूंगा.
अगर कोई “आततायी बहुमत” देश के नाम पर बोलता है तो मैं उसका समर्थन नहीं करूँगा.
मैं किसी पार्टी का समर्थन सिर्फ इसी लिए नहीं करूँगा कि वह पार्टी देश के नाम पर
बोल रही है. जो यहाँ हों और जो यहाँ नहीं हैं, सब मेरी भूमिका को समझ लें. मेरे
अपने हित और देश के हित के साथ टकराव होगा तो मैं देश के हित को तरजीह दूंगा.
लेकिन अगर देश के हित और दलित वर्गों के हित के साथ टकराव होगा तो मैं दलितों के
हित को तरजीह दूंगा.”
इस पर तत्कालीन
प्रधान मंत्री बी.जी.खेर ने इसके उत्तर में कहा, “मैं आंबेडकर की इस बात का समर्थन
करता हूँ कि उनके निजी हित और देश के हित के बीच टकराव होगा तो वे देश के हित को तरजीह
देंगे और मैं इनके प्रत्येक शब्द को दुहराऊंगा. माननीय सदस्य के जीवन और कार्यों
से मैं निकटतया परिचित रहा हूँ और कहूँगा कि उनकी यह बात बिलकुल सही है. उन्होंने
हमेशा देश की भलाई की तुलना में अपने व्यक्तिगत उत्कर्ष को गौण माना है. वे आगे
कहते हैं कि दलितों के हितों और देश के हित में टकराव होगा तो वे दलितों को
प्रधानता देंगे.” इस पर आंबेडकर ने कहा, ”बिलकुल ठीक.” बी.जी. खेर ने आगे कहा,”देखिये,
वे इस बात से मुकर नहीं रहे हैं. मेरा एतराज़ उनके इस वक्तव्य से है. अंश समग्र से
बड़ा नहीं हो सकता. समग्र में अंश का समावेश होना चाहिए.” इस पर डॉ. आंबेडकर ने
बहुत दृढ़ता से कहा,” मैं आप के समग्र का अंश नहीं हूँ. मैं एक अलग अंश हूँ.”
क्या
राष्ट्रवादी भाजपा और कांग्रेस डॉ. आंबेडकर को उक्त कथन के लिए देशद्रोही कहने की
हिम्मत कर सकते हैं?
भगवान दास जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “बाबा
साहेब भीमराव आंबेडकर, एक परिचय एक सन्देश” में लिखा है- ”बाबा साहेब आंबेडकर स्वतंत्रता
के उतने ही इच्छुक थे, जितना कोई और देशभक्त. परन्तु उन्हें शिकायत थी तो केवल
इतनी थी कि वे हिन्दुओं के इतिहास तथा अछूतों के प्रति अमानवीय व्यवहार, उनके धर्म
की पैदा की हुयी घृणा और असमानता को सामने रखते हुए जानना चाहते थे कि स्वतंत्र
भारत में सत्ता किस वर्ग तथा किन जातियों के हाथ में होगी और अछूतों का उसमें क्या
स्थान होगा? वे अछूतों को हिन्दुओं के रहम पर नहीं छोड़ना चाहते थे. वे यह भी जानना
चाहते थे कि शोषित वर्ग की रक्षा तथा सुरक्षा का क्या प्रबंध या गारंटी होगी. और
समय ने सिद्ध कर दिया है कि उनका ऐसा सोचना गलत नहीं था.” वर्तमान में दलितों,
आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर निरंतर बढ़
रहे अमानवीय अत्याचारों के सम्मुख यदि इन वर्गों के मन में भी यह सवाल उठ खड़ा हो
कि क्या यह देश सचमुच में उनकी मातृभूमि है तो इस में हैरान होने की कोई बात नहीं
है.
उनकी यह भी स्पष्ट मान्यता थी- " भारत में वे लोग राष्ट्रवादी और
देशभक्त माने जाते हैं जो अपने भाईयों के साथ अमानुषिक व्यवहार होते देखते हैं किन्तु इस पर उनकी
मानवीय संवेदना आंदोलित नहीं होती। उन्हें मालूम है कि इन निरपराध लोगों को मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया है परन्तु
इस से उनके मन में कोई क्षोभ नहीं पैदा होता. वे एक वर्ग के सारे लोगों को नौकरियों से वंचित देखते हैं परन्तु इस से उनके मन में न्याय और
ईमानदारी के भाव नहीं उठते. वे मनुष्य और समाज को कुप्रभावित करने वाली सैंकड़ों
कुप्रथायों को देख कर भी मर्माहत नहीं होते. इन देशभक्तों का तो एक ही
नारा है- उनको तथा उनके वर्ग के लिए अधिक से अधिक सत्ता. मैं प्रसन्न हूँ
कि मैं इस प्रकार के देशभक्तों की श्रेणी में नहीं हूँ. मैं उस श्रेणी से सम्बन्ध
रखता हूँ जो लोकतंत्र की पक्षधर है और हर प्रकार के एकाधिकार को समाप्त
करने के लिए संघर्षरत है. हमारा उद्देश्य जीवन के सभी क्षेत्रों- राजनीतिक, आर्थिक एवं समाज में एक व्यक्ति, एक मूल्य के आदर्श को व्यव्हार में
उतारना है. क्या हमारे तथाकथित राष्ट्रवादी इस
प्रकार की नैतिकता अथवा आचरण का दावा कर सकते हैं?
उपरोक्त
विवरण से स्पष्ट है कि डॉ. आंबेडकर की देशभक्ति की अवधारणा वर्तमान देशभक्तों से
बिलकुल भिन्न थी. वास्तव में यह देशभक्ति नहीं बल्कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को
दूसरों पर जबरदस्ती थोपने और हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए बौखलाहट और छटपटाहट
है. उनके इस प्रयास के रास्ते में सब से बड़ा रोड़ा हमारा संविधान और लोकतंत्र है
जिसे वे नकारने का लगातार प्रयास कर रहे हैं. वे शायद भूल रहे हैं कि यह देश बहुलवादी
संस्कृतियों और अस्मितायों का संगम है.
यहाँ पर अधिनायकवाद की स्थापना करना बहुत कठिन है. डॉ. आंबेडकर और अनेक स्वतंत्रता
संग्राम सेनानियों ने इसे सभी धर्मों और सम्प्रदायों के लिए आज़ाद कराया था न कि
किसी एक वर्ग के लिए. इसी लिए किसी भी वर्ग को चाहे वह कितना भी बलशाली क्यों न हो
किसी दूसरे वर्ग को देशद्रोही कहने का अधिकार अथवा छूट नहीं है. यहाँ के सभी
नागरिकों को कानून के समक्ष समानता, अभिव्यक्ति की स्वंतन्त्रता, अंतःकरण की और
धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार
है. जब तक देश में संविधान लागू है तथा लोकतंत्र कायम है तब तक देशप्रेम के नाम पर
कोई भी वर्ग, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, किसी दूसरे वर्ग को इन
अधिकारों से वंचित नहीं कर सकता.
अच्छा लेख है सर! बाबा साहेब इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण भुमिका निभाई। उस समय कांग्रेस और अन्य हिन्दू अतिवादियों ने बहुत रोड़े अटकाये। अगर बाबासाहेब न होते तो दलित-पिछड़े हिन्दू अतिवादियों की दया पर निर्भर रहते हुये सामाजिक उत्पीड़न बहिष्कार का ही शिकार हो रहे होते। आज उनकी बहुत ही दयनीय हालत होती।
जवाब देंहटाएंआप सबको जय भीम जय भारत में पहले दलित सब्द जो असवैधानिक है उसका विरोध करूँगा।
जवाब देंहटाएं2,अगर पढे लिखे इंसान ही इस सब्द का प्रोयोग बंध नहीं करेगे तो बाकि की तो बात ही रहने दो।
3,और बाबासाहेब ने बार बार रोये और कहा है। की मुझे मेरे पढ़े लिखे लोगो ने ही धोखा दिया।अब आगे में क्या कहु आप खुद ही समजदार हो।
4,अपने आपको फेमस और पड़े लिखे होने के कारण आज कल कोईभी बाबासाहेब और काशीराम जी या किसीभी पे कोई भी टिप्पणी करसकता है।
जय भीम
कल्पित मकवाना
संकल्प भूमि बरोडा । kalpit.makwana@yahoo.com