श्रीलंका की स्थिति :
रामायण की प्रमाणिकता को चुनौती
अंग्रेजी में मूल लेखक: भगवान दास
अनुवादक: एस आर. दारापुरी
अधिकतर इतिहासकार रामायण को
एक काल्पनिक कृति मानते हैं. फिर भी बहुत पढ़े लिखे, अनपढ़ और अज्ञानी हिन्दू इसे इतिहास की पुस्तक मानते हैं जो कि यह
बिलकुल नहीं है. भारत में रामायण के पांच रूपांतर प्रचलित हैं और वे सभी श्लोकों
और कांडों की संख्या एवं वृतांत में भिन्न भिन्न हैं. अयोध्या के उत्तर प्रदेश में
स्थित होने का विश्वास किया जाता है. अयोध्या में पुरातत्व विभाग द्वारा की गयी
खुदाई में ऐसा कुछ भी नहीं मिला है जिस का राम या रामायण से दूर दूर तक का कोई
सम्बन्ध हो. खोज करने वालों को बौद्धों से जुडी कुछ वस्तुएं तो ज़रूर मिलीं थीं.
उन्नीसवी सदी से रावण की राजधानी श्रीलंका की स्थिति के बारे में वाद विवाद चल रहा
है. हिन्दू मानते हैं कि आज की श्रीलंका रावण की राजधानी थी जिस पर राम ने हमला
किया था. श्रीलंका के विदवान खास करके बौद्ध विद्वान् इस पर बिलकुल विश्वास नहीं करते क्योंकि
उनके इतिहास में हिन्दुओं के विशवास और ब्राह्मणों विद्वानों के बार बार किये गए
दावों को सिद्ध करने के लिए कुछ भी नहीं है. इतिहास और पुरातत्व अन्वेषी भी
ब्राह्मण विद्वानों के दावों को झुठलाते हैं. एक विद्वान् जिस ने कर्नाटक में बीसवीं
सदी के प्रारंभ में अन्वेषण किये थे के अनुसार ऐसे कोई भी प्रमाण नहीं हैं जिन से
यह कहा जा सके कि राम नर्मदा नदी के उस पार कभी गए भी थे. अन्वेषक विद्वानों के
अनुसार लंका विन्ध्याचल या उड़ीसा के बीच कहीं स्थित रही है.
प्रसिद्ध अन्वेषक विदवान
डॉ. एच डी सांकलिया के अनुसार लंका कन्या कुमारी के उस पार न हो कर उड़ीसा में कहीं
स्थित थी. 8 मार्च,
1980 को
भंज नगर ( उड़ीसा) में “उड़ीसा इतिहास कांग्रेस” के अधिवेशन में विद्वानों और इतिहासकारों ने लंका के उड़ीसा में स्थित
होने के प्रश्न पर विचार विमर्श किया था. प्रो. आर पी दास ने डॉ. सांकलिया के
निष्कर्षों के सन्दर्भ में कहा था कि रामायण का लेखन पांचवी सदी ईसा पूर्व से पहले
का नहीं है. सांकलिया का निष्कर्ष था रामायण के लेखक या लेखकों ने कभी दक्षिण भारत
या लंका (श्रीलंका) को नहीं देखा था और उन्होंने काल्पनिक शहर बनाये थे. डॉ. नवीन
कुमार साहू, एक प्रसिद्ध विदवान और
संबलपुर विश्वविद्याल्याके कुलपति ने दावा किया कि रामायण में कहीं भी श्रीलंका
(लंका) के द्वीप को सही रूप से चिन्हित नहीं किया गया है. इस द्वीप का नाम तो
मुश्किल से 500 वर्ष पूर्व जब यह चोला राजाओं के अधीन आया “लंका” रखा गया था. डॉ. साहू ने यह
भी इंगित किया कि एतिहासिक अभिलेखों और
यात्रा वृतांतों (चीनी यात्री ह्युन्सांग जो इस द्वीप पर आया था) में कहीं भी लंका
का नाम अंकित नहीं है. तब इसे सिंहल द्वीप कहा जाता था. सभी इतिहासकार सहमत हैं कि
वाल्मीकि को चाहे वह ब्राह्मण या अस्पृश्य (अछूत) रहा हो, नर्मदा के परे दक्षिण भारत
के भूगोल, फूल व पेड़ पौदों के बारे
में बहुत कम जानकारी थी.
लंका का ब्राह्मण विद्वानों
की गालियों और निंदा का निशाना बनने का एक कारण भारत में बौद्ध धम्म का लोप हो
जाने पर भी बौद्ध धम्म का मज़बूत गढ़ बना रहना था. ब्राह्मणवाद और चातुरवर्ण के
रक्षक राम को देवता बनाने, अवतारवाद को लोकप्रिय बनाने और उसकी मानवीय कमियों को छुपाने के लिए
रामायण में बहुत से शलोक क्षेपक के रूप में जोड़ दिए गए हैं. रामायण के एक शलोक में
बुद्ध की तुलना एक चोर से की गयी है जिस की बात नहीं सुननी चाहिए क्योंकि वह वेदों
में विश्वास नहीं करते.
जर्मन विद्वान् जाकोबी जिस
ने रामायण का गहन अध्ययन किया था से लेकर फादर कामिल बुल्के जिन का शोध ग्रन्थ “रामकथा” जो इस विषय के सभी ग्रंथों
में अगरगणी है, कोई भी यह सिद्ध नहीं करता
कि रामायण एक एतहासिक पुस्तक है. फिर भी यह विवाद बना रहेगा क्योंकि यह कहानी दूर
दूर तक पहुँच चुकी है. बेशक भारत को छोड़ कर किसी भी देश में राम को देवता नहीं
माना जाता जिसे इस दुनिया में ब्राह्मणों के चातुरवर्ण को बचाने और रामायण को एक
धार्मिक ग्रन्थ के रूप में मनवाने के लिए भेजा गया था.
नोट: पिछले कुछ समय से राम सेतु
को लेकर उठाये गए विवाद की सत्यता भी रामायण की प्रमाणिकता से ही आंकी जा सकती है.
श्रीलंका का पूर्व नाम सिंहल द्वीप था जिसे चोला राजा ने बदल कर श्रीलंका रखा था.
मध्य प्रदेश में आज भी कोरकू जनजाति के लोग हैं जो अपने आप को रावण और मेघनाथ के वंशज
होने का दावा करते हैं और त्योहार मना कर उनकी पूजा करते हैं. आप इस सम्बन्ध में
मध्य प्रदेश के कोरकू आदिवासियों के इस दावे को YouTube के इस लिंक http://www.youtube.com/watch?v=7j4pOCXfi14 पर सुन भी सकते हैं.
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