गुरुवार, 3 नवंबर 2011
हिन्दुत्व आतंकवाद का पर्दाफाश
अनुवादक: एस. आर . दारापुरी
जब सितम्बर २००६ को मालेगांव (महाराष्ट्र ) में बम्ब धमाका हुआ था, जिस में स्थानीय मस्जिद में जुम्मे की नमाज़ अदा करने के लिए एकत्तर हुए लोगों में से ४० लोग मारे गए थे और उस से अधिक घायल हुए थे, तो सब से पहली की गयी गिरफ्तारियों में मुस्लमान ही थे जिन का सम्बन्ध लश्कर-ए-तयबा से होने का दावा किया गया था. पुलिस ने इस मामले को खोलने का दावा किया था. बाद में एक साल से काम समय मई २००७ में जबी उसी प्रकार का बम्ब विस्फोट मक्का मस्जिद, जिस में ९ लोग मारे गए थे, तो पुलिस ने दावा किया था कि यह एक जटिल बम्ब था जिसमें बंगला देश स्थित सेलफोन से विस्फोट किया गया था और मुख्य आरोपी का सम्बन्ध हुजी से होना बताया गया था. पुलिस ने आनन फानन में शहर के कुछ मुस्लमान लड़कों को गिरफ्तार किया था और उन्हें प्रताड़ित करके अपराध की स्वीकारोक्ति करवाई थी. छ: माह बाद जब राजस्थान में अजमेर शरीफ दरगाह में आखरी शुक्रवार को बम्ब फटा तो इस का आरोप पुन: "जिहादी आतंकवादियों " प़र ही लगाया गया था.
महाराष्ट्र में आतंकवाद विरोधी दस्ता के मुखिया हेमंत करकरे के एक साहसी एवं साधारण कदम ने उपलब्ध साक्ष्यों के आधार प़र मालेगांव बम्ब विस्फोट और हिंदुत्व से जुड़े समूहों के बीच सम्बन्ध स्थापित कर दिए थे. इस अकेले कृत्य के बिना शायद यह सम्बन्ध हमारे सुरक्षा बलों दुआरा घड़े गए झूठ एवं अर्ध सत्य के पीछे छुपे रह जाते. यह अब ज़ाहिर हो चुका है कि इस हमले के पीछे अभिनव भारत संगठन का हाथ था. इस संगठन में कुछ धार्मिक व्यक्ति और कुछ सेवारत सेना अधिकारी शामिल हैं. हिन्दुत्व संगठन का नांदेड, कानपुर , भोपाल और गोया में बम्ब बनाने में स्पष्ट रूप से हाथ रहा है. इस में से अधिक का सम्बन्ध बजरंग दल से है जो कि आर. एस. एस. का मुख्य घटक है . अब आर. एस. एस. और उस के मोहरे व्यक्तियों और बम्ब विस्फोट श्रृंखला में स्पष्ट सम्बन्ध स्थापित हो गया है. ये इस संगठन के विरुद्ध अनेक साम्प्रदायिक हत्याओं और गुजरात के २००२ के पिछले बड़े दंगे से सम्बन्ध के अतिरिक्त मजबूत साक्ष्य हैं.
भारत में धार्मिक रुढ़िवाद आधारित आतंकवाद का मुख्यालय आर. एस. एस. ही है. इसके छोटे भाई इस्लामिक, सिक्ख और ईसाई रुढ़िवाद हैं. यद्यपि वे भी अपने तरह से खतरनाक हैं परन्तु वे आर. एस. एस. और उससे जुड़े व्यक्तिओं के सांगठनिक नेटवर्क, आर्थिक मजबूती और राजनीतिक वैधता का मुकाबला नहीं कर सकते. आखिरकार, भारत की मुख्य विरोधी पार्टी आर.एस. एस. की सौ फी सदी घटक है और इस परिवार की साम्प्रदायिक राजनीति ने ऐसा राजनीतिक माहौल बनाया है की किसी भी आतंकवादी घटना को तमाम सबुतों के बावजूद भी मुसलमानों से ही जोड़ा जाता है.
तथापि मुसलमानों में इस्लामिक रुढ़िवाद एक गंभीर मुद्दा है. इस के खतरनाक परिणाम हैं .इस के न केवल मुसलमानों पर ही प्रतिगामी सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव हैं बल्कि इस से ज़ोरदार ढंग से लड़ने की ज़रूरत है. इस्लामिक रूढ़ीवाद ने भी आतंकवादी संगठनों को जन्म दिया है और हिंसक कार्रवाईयां की हैं, केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनियां में. इसे झुठलाया नहीं जा सकता और न ही इस्लामिक रूढ़ीवाद और आतंकवाद के विरुद्ध चौकसी को ही कम किया जा सकता है.
फिर भी यह काफी स्पष्ट हो चुका है कि हमारी सुरक्षा एजंसीयां , सरकारी संस्थान और मंत्रालय, खास करके गृह मंत्रालय साम्प्रदायिक पूर्वाग्रहों से बुरी तरह प्रभावित हैं. उपरोक्त वर्णित एवं अन्य कई मामलों में फोरेंसिक एवं प्रस्थितिजन्य साक्ष्य से हिंदुत्व संगठनों का हाथ होना सिद्ध हुआ है. फिर भी हिंदुत्व संगठनों के खिलाफ खुले औ़र संकेत देने वाले सबूतों के होते हुए भी उन प़र आगे बढ़ने की बजाए इस्लामिक आतंकवाद के इर्द गिर्द किस्से कहानियां गढ़ते रहे और कुछ मुस्लमान मर्दों और कुछ औरतों को उठा कर उन्हें प्रताड़ित कर स्वीकारोक्तियां करवा कर मामलों को हल करने का दावा करते रहे. आखिरकार इस साल पिछली जनवरी में मालेगांव बम्ब विस्फोट से हिन्दुत्व आतंकवाद का पूरी तरह से सम्बन्ध स्थापित हो गया और जब राजस्थान पुलिस अजमेर शरीफ विस्फोट से मक्का मस्जिद विस्फोट से सम्बन्ध के बारे में अभियुक्तों से पूछताछ कर रही थी, तो हैदराबाद पुलिस आराम से मुसलमानों को ग्रिफ्तार क़र रही थी जिनका सम्बन्ध मक्का मस्जिद से होना बताया जा रहा था. गुजरात, राजस्थान, और आंध्र पुलिस का हाथ सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी तथा इशरत जहाँ और उसके दोस्तों के कतल में होना पूरी तरह से सिद्ध हो चुका है . बाटला हाउस मुठभेड़ में भी दिल्ली पुलिस का सांप्रदायिक पूर्वाग्रह खुल कर सामने आ चुका है. यह खेदजनक है कि पुलिस और एजंसीयों के साम्प्रदायिक पूर्वाग्रह वाले मामलों की सूची इतनी लम्बी है कि कई खंड भरे जा सकते हैं.
जबकि जाति और लिंग सम्बन्धी पूर्वाग्रहों को पहचानने और दूर करने के सम्बन्ध में कुछ कदम उठाए गए हैं परन्तु अल्प संख्यकों खास करके मुसलमानों के विरुद्ध सांप्रदायिक पूर्वाग्रह और भेदभावों को स्वीकार करने और उन्हें दूर करने के बारे में एक हठीलापन दिखाया जाता रहा है. वर्तमान यू. पी. ए. सरकार ने सच्चर कमिटी और रंगनाथ मिश्र कमीशन रिपोर्ट दुआरा इस मुद्दे प़र कुछ सराहनीय कार्रवाई की है. इस से मुसलमानों के विरुद्ध संरचनात्मक भेदभाव और पूर्वाग्रह और उन्हें दूर करने और क्षतिपूर्ति करने के सम्बन्ध में चर्चा के लिए कुछ जगह बनी है. इसी सरकार के कार्यकाल में ही हिन्दुत्व संगठनों और बम्ब विस्फोटों के अपराधिक कृत्यों के बीच सम्बन्ध भी उजागर हुए हैं. तथापि यह पर्याप्त नहीं है. हमारे सुरक्षा संस्थानों में व्याप्त सांप्रदायिक पूर्वाग्रह को दूर करने के लिए तुरंत कदम उठाए जाने क़ी जरुरत है. यह खुला प्रशन है कि क्या वर्तमान गृह मंत्री पी. चिदम्बरम इस कार्य को करा पायंगे. क्या कांग्रेस पार्टी प्रशासन और राज्य संगठनों में व्यापत हिन्दुत्व को बाहर निकालने हेतु वांछित इच्छा शक्ति जुटा पायेगी ?
साभार: ई. पी. डवलयू आफ इंडिया
S.R.Darapuri I.P.S.(Retd)
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