गुरुवार, 3 नवंबर 2011
डॉ. अंगने लाल मेरी नज़र में
डॉ. अंगने लाल जी से मेरी पहली मुलाकात आज से लगभग २५ वर्ष पहले हुई थी जब मेरी नियुक्ति लखनऊ में हुई. उनसे बातचीत करके मैं उनकी विद्वता से बहुत परभावित हुआ था. उस समय वे शायद लखनऊ विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेस्सर के पद पर अध्यापन कार्य कर रहे थे. मैंने पाया कि उनका बौद्ध धर्म और उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म की धरोहर और उसके इतिहास का बहुत विस्तृत और गहरा ज्ञान था. क्योंकि वे इतिहास शास्त्र के ज्ञाता थे अत: उनका ज्ञान विस्तृत होना स्वाभाविक था. मैंने यह भी पाया कि डॉ. अंगने लाल एक कट्टर बौद्ध तथा अच्छे अम्बेडकरवादी थे.
डॉ. अंगने लाल बौद्ध धर्म के केवल ज्ञाता ही नहीं थे बल्कि वे बौद्ध धर्म और अम्बेडकरवाद के कर्मठ प्रचारक भी थे. वे मेरे साथ भी कई मीटिंगों में रहे थे . मैंने पाया था कि अंगने लाल जी बौद्ध धर्म की व्याख्या बौद्ध गाथा सहित बहुत रोचक शब्दों में करते थे. वे डॉ. आंबेडकर के जीवन संघर्ष और उनकी शिक्षाओं को भी बहुत अच्छे ढंग से बताते थे. क्योंकि वे स्थानीय भाषा को बहुत अच्छी तरह से जानते थे अत: वे अपनी बात जनभाषा में बहुत सरल ढंग से रखते थे.
डॉ. अंगने लाल ने बुद्ध, बौद्ध धर्म , डॉ. आंबेडकर और उत्त्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म क़ी धरोहर और उसके इतिहास के बारे में बहुत ज्ञानपूर्ण पुस्तकें लिखीं जो कि उस समय पर बौद्ध साहित्य और डॉ. आंबेडकर के बारे में पुस्तकों की कमी को दूर करने में बहुत सहायक रहीं . उन्होंने बौद्ध धर्म के उत्तर प्रदेश में विस्तार, बौद्ध स्मारकों तथा इतिहासिक बौद्ध स्थलों के बारे में बहुत खोज करके बौद्धों के ज्ञान और रूचि को बढाया.उन्होंने छोटी छोटी पुस्तकों का प्रकाशन करवाकर उन्हें जनसाधारण तक पहुँचाया. इस प्रकार उनका बौद्ध एवं अम्बेडकरी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान रहा है.
डॉ. अंगने लाल बहुत सी संस्थाओं जैसे भारतीय बौद्ध महासभा, डॉ. आंबेडकर महासभा आदि से जुड़े हुए थे. इनके माध्यम से उन्होंने बौद्ध धर्म तथा अम्बेडकरवाद के प्रचार का अदुतीय काम किया. वे इस विचारधारा को गाँव गाँव तक लेकर गए. अतः: यह निसंकोच कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश और उसके बहार भी बौद्ध धर्म और डॉ. आंबेडकर के सन्देश को पहुचाने में उनका इतिहासिक योगदान रहा है. डॉ. आंबेडकर पर उनकी पुस्तक का प्रकाशन डॉ. आंबेडकर शताब्दी वर्ष में उत्तर प्रदेश सरकार दुआरा कराया गया. उत्तर प्रदेश में बौद्ध स्थल नामिक पुस्तक का प्रकाशन उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान दुआरा कराया गया. उनकी ये तथा अन्य पुस्तकें इन विषयों पर शोधार्थियों के लिए बहुत उपयोगी पुस्तकें हैं. बौद्ध साहित्य और अम्बेडकरी तथा दलित साहित्य में उनका बहुत भारी योगदान रहा है.
डॉ. अंगने लाल जी ने बौद्ध, आंबेडकर तथा दलित आन्दोलन में एक इतिहासिक योगदान दिया है जिस के लिए उन्हें हमेशा याद किया जायेगा. उनका यह योगदान न केवल पुस्तक रूप में ही था बल्कि वे इसके समर्पित प्रचारक भी थे . मुझे पूरा विश्वास है कि उनका परिवार उनकी इस परम्परा को और आगे बढायेगा. आइये हम सब लोग उनके इस कारवां को लगन तथा निष्ठा से आगे बढ़ाने का संकल्प लें और उनकी कमी को पूरा करने का प्रयास करें. --
S.R.Darapuri I.P.S.(Retd)
www.dalitliberation.blogspot.com
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