रामासामी नायकर पेरियार का उत्तर प्रदेश संबंध
एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट
उपलब्ध विवरण के अनुसार रामासामी ई वी नायकर पेरियार उत्तर प्रदेश में 1944, 1959 तथा 1968 में आए थे। 1944 व 1959 में वे उत्तर प्रदेश बैकवर्ड एवं अछूतों के समेकन को संबोधित करने के लिए लखनऊ आए थे। उनके 1944 के कार्यक्रम का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। उनके 1959 में लखनऊ आगमन के संबंध में रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया के तत्कालीन उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष डा. छेदी लाल साथी का एक चित्र उपलब्ध है जो उनकी पुस्तक “भारत की आम जनता शोषण मुक्त व अधिकार युक्त कैसे बने” पुस्तक में छपा है। इसके अतिरिक्त इसका कोई अन्य विवरण उपलब्ध नहीं है।
लखनऊ व कानपुर में पेरियार जी की सभा
1968 में पेरियार जी 12-13 अक्तूबर को लखनऊ आए थे। इस पर उन्होंने अल्प-संख्यक एवं पिछड़ा वर्ग सम्मेलन को लखनऊ में 12 अक्तूबर को तथा अछूत-बैकवर्ड सम्मेलन को कानपुर में 13 अक्तूबर को संबोधित किया था। लखनऊ में यह सम्मेलन बारहदरी, कैसरबाग में हुआ था। लखनऊ सम्मेलन के बारे में डा छेदी लाल साथी ने बताया था कि वे पेरियार जी को जुलूस की शक्ल में सभा स्थल पर ले जाना चाहते थे परंतु कुछ सवर्ण गुंडों ने इस पर आपत्ति की तथा उस पर हमले की धमकी दी थी। इस पर छेदी लाल साथी ने अपने कुछ लोगों को नंगी तलवारें तथा लाठियाँ लेकर जुलूस के साथ चलने के लिए कहा। इस प्रकार जुलूस सभा स्थल पर सुरक्षित पहुँच गया। साथी जी ने मुझे बताया था कि उस दौरान पेरियार जी ने लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों को भी संबोधित किया था। इस आयोजन में उनके सहयोगी दाऊजी गुप्त, डा. गया प्रसाद प्रशांत, डा. अँगने लाल तथा शिव दयाल सिंह चौरसिया आदि थे। पेरियार जी के तमिल में भाषण का अनुवाद दाऊजी गुप्त ने किया था।
लखनऊ की सभा को संबोधित करते हुए पेरियार जी ने कहा-
“हमारे कर्णधार पुरानी धार्मिक व सामाजिक व्यवस्था रखना चाहते हैं, जैसी धार्मिक व सामाजिक व्यवस्था पहले थी। वही अब भी जबरन थोपी जा रही है। मानवता इससे बहुत दूर है। समतामूलक समाज की स्थापना असंभव है।“
“ईश्वर, वेद, धर्म-शास्त्र, आत्मा, स्वर्ग, नरक, पाप, पुण्य, भाग्य, पुनर्जन्म, देवी देवताओं के नाम पर ऊंची जाति के हिंदुओं ने लाभ उठाया है। ईश्वर को जिसने गढ़ा , वह मूर्ख था! वह महाधूर्त है! जो ईश्वर की पूजा करता है, वह असभ्य है! ईश्वर नहीं है! ईश्वर नहीं है!! ईश्वर नहीं है!!!”
“कुछ लोग नाजायज फायदा उठाने के लिए जाति-पाँति बनाए रखना चाहते हैं। मगर ज्यादा लोग जाति-पाँति खत्म करना चाहते हैं क्योंकि इनकी बेइज्ज़ती जाति-पाँति के आधार पर ही हो रही है।“
“जब तक हिन्दू-धर्म रहेगा तब तक अछूत मानसिकता और भेदभाव का समाज रहेगा।“
“यही बातें हमने प्रदेशीय बैकवर्ड व अछूतों के सम्मेलन के इसी मैदान में सन 1944 और सन 1959 ई. को भी कहीं थी।‘
पेरियार जी ने 13 अक्तूबर को कानपुर के परेड मैदान में अछूत-बैकवर्ड सम्मेलन को संबोधित किया था। इस सम्मेलन में पेरियार जी ने कहा था:
“अगर ईश्वर, वेद, शास्त्र,, हिन्दू धर्म व उनके देवी देवताओं में इतना विश्वास न करते तो हमारा इतना सामाजिक अपमान व धार्मिक शोषण नहीं होता।“
“पुराने व नए जमाने की सरकार इस हिन्दू धर्म को प्रोत्साहित करती है। हमारा सामाजिक ढांचा धार्मिक जीवन का अंग बन गया है।“
“एक ब्राह्मण की थाली में कुत्ता खाना खा सकता है। मगर मनुष्य थाली के पास भी नहीं फटक सकता, खाना खाने की बात तो बहुत दूर है। मैं स्पष्ट शब्दों में कहना चाहता हूँ कि मनुष्य जानवर से नि:संदेह गरिमापूर्ण है।“
“राष्ट्र किसी कौम अर्थात वर्ण-जाति विशेष का नहीं।“
“जिन लोगों ने ईश्वर के अस्तित्व की वकालत की है, उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए तथा दूसरों का शोषण करने के अपने ढंग पर स्वत: कहानियाँ गढ़ी हैं जो सरासर झूठ हैं।“
मायावती सरकार और पेरियार मेला तथा पेरियार की मूर्ति लगाने पर रोक
मई, 1995 में उत्तर प्रदेश में भाजपा के समर्थन से बसपा वाली मायावती की सरकार बनी थी। सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही मायावती ने लखनऊ में पेरियार मेला लगाने तथा परिवर्तन चौक पर पेरियार की मूर्ति लगाने की घोषणा की थी। इस पर भाजपा ने सख्त आपत्ति की जिसके फलस्वरूप मायावती न तो पेरियार मेला लगा सकी और न ही पेरियार की मूर्ति ही लग सकी। इतना ही नहीं चार बार सरकार में रहते मायावती ने कभी भी किसी मेले, सभा अथवा प्रदर्शनी में पेरियार की फ़ोटो तक नहीं लगाई। इतना डर रहा है भाजपा का और शायद आज भी है।
सच्ची रामायण की जब्ती
उपरोक्त सम्मेलनों में भागीदारी के अतिरिक्त पेरियार जी का उत्तर प्रदेश से संबंध उनकी बहुचर्चित पुस्तक “रामायण : ए ट्रू रीडिंग ” के हिन्दी अनुवाद “सच्ची रामायण” को लेकर छपने पर हुआ था। उत्तर प्रदेश के पेरियार कहे जाने वाले ललई सिंह यादव ने इस का हिन्दी अनुवाद अक्तूबर 1968 में छापा था जिसको लेकर पूरे प्रदेश में हंगामा खड़ा हो गया था। इस पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस किताब पर प्रतिबंध लगा दिया तथा किताब को 1969 में जबत कर लिया था। इसके विरुद्ध ललाई सिंह जी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में केस किया जिस में वह जीत गए। हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि सरकारी पक्ष ऐसा कोई सुबूत पेश नहीं कर सका कि इस पुस्तक में विभिन्न संप्रदायों के बीच वैमनस्यता फैलाने वाली कोई बात नहीं है। इस फैसले के विरुद्ध उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 1970 में अपील दायर की थी परंतु वहाँ पर भी सरकार हार गई और सच्ची रामायण आम जनता तक पहुँच गई।
सच्ची रामायण की बिक्री पर मायावती सरकार की रोक
उत्तर प्रदेश में 2007 में मायावती की बसपा सरकार थी और बसपा उस समय बहुजन से सर्वजन में बदल चुकी थी और” हाथी नहीं गणेश है” में रूपांतरण स्वीकार कर चुकी थी। उसी दौरान कुछ सावर्णों ने सच्ची रामायण पुस्तक को हिन्दू विरोधी कह कर उसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। मायावती सरकार ने इस शिकायत पर तुरंत कार्रवाही करते हुए सच्ची रामायण की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया जो आज तक लगा हुआ है। इस प्रकार मायावती की यह कार्रवाही कांग्रेस सरकार की दलित विरोधी कार्रवाही की ही पुनरावृति थी। इतना ही नहीं इसी दौरान मायावती ने बामसेफ द्वारा बनवाई गई “तीसरी आजादी” नामक फिल्म पर भी प्रतिबंध लगा दिया था जो आज तक चल रहा है। ऐसा है मायावती का पेरियार एवं दलित प्रेम!
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है की पेरियार जी का उत्तर प्रदेश से काफी निकट संबंध रहा है तथा यहाँ पर भी उनकी विचारधारा का काफी असर है।
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