डा. अंबेडकर का आगरा का ऐतिहासिक भाषण
नोट: यह डॉ. अम्बेडकर का ऐतिहासिक भाषण है जिसमें उन्होंने अपने अनुभव और भविष्य की रणनीति को सामने रखा था। इस भाषण में उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों को संबोधित किया था। वास्तव में यह भविष्य के दलित आंदोलन के लिए एक दिशानिर्देश था लेकिन यह कहना काफी पीड़ादायक है कि दलित इसे भूल गए हैं। यह बौद्धों की विकास दर में तेज गिरावट में परिलक्षित होता है जैसा कि जनगणना 2011 के जनसंख्या आंकड़ों द्वारा दिखाया गया है। आज दलित समाज डॉ. अम्बेडकर के जाति उन्मूलन और बौद्ध धर्म अपनाने के एजेंडे से दूर हो गया है। गैर-सैद्धांतिक और अवसरवादी दलित राजनीति ने सामाजिक और धार्मिक आंदोलन को पीछे धकेल दिया है। आज दलित समाज जाति विभाजन से ग्रसित है। ऐसा प्रतीत होता है कि बाबासाहेब का कारवां आगे बढ़ने के स्थान पर पीछे की ओर जा रहा है। यह सभी अम्बेडकरवादियों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।) - एसआर दारापुरी आई.पी.एस. (सेवानिवृत्त)
बाबासाहेब ने अपने वक्तव्य और मंतव्य को सात हिस्सों में बाँटा, उस समय उन्होंने कहा कि;
जनसमूह से
मैं पिछले तीस वर्षों से तुम लोगों को राजनैतिक अधिकार के लिए संघर्ष कर रहा हूँ। मैंने तुम्हें संसद और राज्यों की विधान सभाओं में प्रतिनिधित्व दिलवाया। मैंने तुम्हारे बच्चों की शिक्षा के लिए उचित प्रावधान करवाये। आज, हम प्रगति कर सकते हैं। अब यह तुम्हारा कर्तव्य है कि शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी को दूर करने हेतु एक जुट होकर इस संघर्ष को जारी रखें। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए तुम्हें हर प्रकार की कुर्बानियों के लिए तैयार रहना होगा, यहाँ तक कि खून बहाने के लिए भी। आप सब-के-सब एकजुट होकर ऐसे जन-प्रतिनिधियों का चुनाव करें जो अपने वैयक्तिक लोभ और लालच से ऊपर उठकर आम जन के हित में कल्याणकारी कार्यों को आगे बढ़ाएं।
नेताओं से
यदि कोई तुम्हें अपने महल में बुलाता है तो स्वेच्छा से जाओ, लेकिन अपनी झोंपड़ी में आग लगाकर नहीं। यदि वह राजा किसी दिन आपसे झगड़ता है और आपको अपने महल से बाहर धकेल देता है, उस समय तुम कहाँ जाओगे? यदि तुम अपने आपको बेचना चाहते हो तो बेचो, लेकिन किसी भी हालत में अपने संगठन को बर्बाद होने की कीमत पर नहीं । मुझे दूसरों से कोई खतरा नहीं है, लेकिन मैं अपने लोगों से ही खतरा महसूस कर रहा हूँ।
भूमिहीन मजदूरों से
मैं गाँव में रहने वाले भूमिहीन मजदूरों के लिए काफी चिंतित हूँ। मैं उनके लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाया हूँ । मैं उनकी दुख और तकलीफों को नजरअंदाज नहीं कर पा रहा हूँ। उनकी तबाहियों का मुख्य कारण उनका भूमिहीन होना है। इसलिए वे अत्याचार और अपमान के शिकार होते रहते हैं और वे अपना उत्थान नहीं कर पाते। मैं इसके लिए संघर्ष करने की आपसे अपील करूँगा । यदि सरकार इस कार्य में कोई बाधा उत्पन्न करती है तो मैं इन लोगों का नेतृत्व करूँगा और इनकी वैधानिक लड़ाई लडूँगा। लेकिन किसी भी हालात में भूमिहीन लोगों को जमीन दिलवाने का प्रयास करूँगा।
अपने समर्थकों से
बहुत जल्दी ही मैं तथागत बुद्ध के धर्म को अंगीकार कर लूँगा । यह प्रगतिवादी धर्म है। यह समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व पर आधारित है। मैं इस धर्म को बहुत सालों के प्रयासों के बाद खोज पाया हूँ। अब मैं जल्दी ही बुद्धिस्ट बन जाऊँगा। तब एक अछूत के रूप में मैं आपके बीच नहीं रह पाऊँगा, लेकिन एक सच्चे बुद्धिस्ट के रूप में तुम लोगों के कल्याण के लिए संघर्ष जारी रखूँगा। मैं तुम्हें अपने साथ बुद्धिस्ट बनने के लिए नहीं कहूँगा, क्योंकि मैं आपको अंधभक्त नहीं बनाना चाहता हूँ। किंतु, जिन्हें इस महान धर्म की शरण में आने की तमन्ना है, वे बौद्ध धर्म अंगीकार कर सकते हैं जिससे वे इस धर्म में दृढ़ विश्वास के साथ रहें और बौद्धाचरण का अनुसरण करें।
बौद्ध भिक्षुओं से
बौद्ध धम्म महान धर्म है। इस धर्म के संस्थापक तथागत बुद्ध ने इस धर्म का प्रसार किया और अपनी अच्छाइयों के कारण यह धर्म भारत में दूर-दूर तक गली-कूचों और विदेशों में पहुँच सका। लेकिन महान उत्कर्ष पर पहुँचने के बाद यह धर्म 1213 ई. में भारत से विलुप्त हो गया जिसके कई कारण हो सकते हैं। एक प्रमुख कारण यह भी है कि हिंदुवादी प्रचारकों के कई षडयंत्रों और लालच की वजह से बौद्ध भिक्षु विलासतापूर्ण एवं आराम-तलब जिंदगी जीने के आदी हो गये थे । धर्म प्रचार हेतु स्थान-स्थान पर जाने की बजाय उन्होंने विहारों में आराम करना शुरू कर दिया तथा रजवाड़ों की प्रशंसा में पुस्तकें लिखना शुरू कर दिया । अब इस धर्म की पुनर्स्थापना हेतु उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी । इसलिए जन साधारण में से अच्छे लोगों को भी इस धर्म प्रसार हेतु आगे आना चाहिये और इनके संस्कारों को ग्रहण करना चाहिये।
शासकीय कर्मचारियों से
हमारे समाज की शिक्षा में कुछ प्रगति हुई है। शिक्षा प्राप्त करके कुछ लोग उच्च पदों पर पहुँच गये हैं परन्तु इन पढ़े लिखे लोगों ने मुझे धोखा दिया है। मैं आशा कर रहा था कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे समाज की सेवा करेंगे, किंतु मैं देख रहा हूँ कि छोटे और बड़े क्लर्कों की एक भीड़ एकत्रित हो गयी है, जो अपनी तोंदें (पेट) भरने में व्यस्त हैं। मेरा आग्रह है कि जो लोग शासकीय सेवाओं में नियोजित हैं, उनका कर्तव्य है कि वे अपने वेतन का 20वां भाग (5%) स्वेच्छा से समाज सेवा के कार्य हेतु दें। तभी समग्र समाज प्रगति कर सकेगा अन्यथा केवल चन्द लोगों का ही सुधार होता रहेगा। कोई भी होनहार बालक जब किसी गाँव में शिक्षा प्राप्त करने जाता है तो संपूर्ण समाज की आशाएँ उस पर टिक जाती हैं। एक शिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता समाज के लिए वरदान साबित हो सकता है।
छात्र-छात्राओं से
मेरी छात्रों से अपील है की शिक्षा प्राप्त करने के बाद किसी प्रकार कि क्लर्की करने के बजाय उसे अपने गाँव की अथवा आस-पास के लोगों की सेवा करना चाहिये, जिससे अज्ञानता से उत्पन्न शोषण एवं अन्याय को रोका जा सके। आपका उत्थान समाज के उत्थान में ही निहित है।
भविष्य की चिंता
बाबासाहेब ने यह भी कहा कि “आज मेरी स्थिति एक बड़े खंभे की तरह है, जो विशाल टेंट को संभाल रही है। मैं उस समय के लिए चिंतित हूँ कि जब यह खंभा अपनी जगह पर नहीं रहेगा। मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। मैं नहीं जानता कि मैं कब आप लोगों के बीच से चला जाऊँ। मैं किसी एक ऐसे नवयुवक को नहीं ढूँढ पा रहा हूँ, जो इन करोड़ों असहाय और निराश लोगों के हितों की रक्षा करने की जिम्मेदारी ले सके। यदि कोई नौजवान इस जिम्मेदारी को लेने के लिए आगे आता है, तो मैं चैन से मर सकूँगा।”
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