शनिवार, 7 जनवरी 2017

कितनी मुस्लिम हितैषी है मायावती?

कितनी मुस्लिम हितैषी है मायावती?
-एस.आर. दारापुरी, भूतपूर्व पुलिस महानिरीक्षक एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
माह फरवरी, 2017 में होने वाले विधान सभा चुनाव में मायावती ने मुसलामानों का वोट प्राप्त करने के लिए उन्हें 97 टिकट दिए हैं. इस वार मायावती दलित-मुस्लिम कार्ड खेलने की कोशिश कर रही है. अतः यह देखना ज़रूरी है कि मायावती ने अपने चार वार के मुख्य मंत्री काल में मुसलमानों का कितना कल्याण किया था. यह भी ज्ञातव्य है कि मायावती इससे पहले तीन वार मुसलमानों की धुरविरोधी पार्टी भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन करके सरकार बना चुकी है. आगे भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि ज़रुरत पड़ने पर वह भाजपा से फिर हाथ नहीं मिलाएगी. इतना ही नहीं 2002 में मायावती ने गुजरात जा कर मोदी के पक्ष मे चुनाव प्रचार किया था और मोदी को 2000 से अधिक मुसलमानों की हत्याएं करवाने के मामले में क्लीन चिट भी दी थी.
 पिछले दिनों आजमगढ़ रैली में मुसलमानों को फुसलाने के लिए मायावती ने कहा था कि “ निर्दोष मुसलमानों को आतंक के मामलों में झूठा फंसाया जाता है.” मायावती के मुसलमानों के बारे में पूर्व रिकार्ड को देखते हुए मायावती का यह कथन केवल चुनावी जुमला ही है. यह सर्वविदित है कि मायावती के 2007 वाले मुख्य मंत्री काल में ही सब से अधिक निर्दोष मुसलमान निम्नलिखित बम बिस्फोटों के मामलों में फंसाए गए थे: (1) तीन बम  विस्फोट, गोरखपुर. 22 मई, 2007, (2) वाराणसी कचेहरी विस्फोट, 23 नवम्बर, 2007,  (3) फैजाबाद कचेहरी विस्फोट, 23 नवम्बर, 2007 तथा (4) लखनऊ कचेहरी विस्फोट, 23 नवम्बर, 2007.
इस तथ्य की पुष्टि इस बात से होती है कि 2008 में जब आतंक के मामलों में इंडियन मुजाहिदीन ग्रुप के कुछ लोग अन्य राज्यों में पकड़े गए थे तो उन्होंने ने यह स्वीकार किया था कि उत्तर प्रदेश में उक्त बम बिस्फोट उन्होंने किये थे. इस की सूचना उत्तर प्रदेश पुलिस को भी प्राप्त हो गयी थी परन्तु उस से पहले उत्तर प्रदेश पुलिस इन मामलों में दूसरे लोगों को पकड़ कर जेल भेज चुकी थी. होना तो यह चाहिए था कि उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा इन निर्दोष लोगों को जमानत पर छुड़वा देना चाहिए था और सही मुजरिमों को पकड़ना चाहिए था. परन्तु ऐसा नहीं किया गया. इन्हीं निर्दोष लोगों में खालिद मुजाहिद भी था जिस की बाद में फैजाबाद से बाराबंकी अदालत में पेशी पर लाते समय हत्या कर दी गयी थी. इन आरोपों में बंद किये गए कुछ लोग हाल में छूट गए हैं और अधिकतर अभी भी जेलों में सड़ रहें हैं. अतः आजमगढ़ रैली में मायावती का कथन अगर सही है तो इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेवार मायावती ही है.
इसी तरह जब 2007 में मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री बनी थी तो उसी काल में दिल्ली में बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ हुयी थी जिस में आजमगढ़ के तीन लड़के मारे गए थे और आजमगढ़ को आतंक की नर्सरी घोषित किया गया था. इस पर जब उत्तर प्रदेश पुलिस के बारे में यह कहा जाने लगा कि दूसरे राज्यों की पुलिस उत्तर प्रदेश से आतंकियों को गिरफ्तार करके ले जा रही है परन्तु उत्तर प्रदेश पुलिस कुछ नहीं कर रही है तो इस पर उत्तर पुलिस ने भी बाटला हाउस जैसी फर्जी मुठभेड़ करने की योजना बनाई. इसमें 4/5 अक्तूबर, 2007 की रात में सेना और पुलिस द्वारा मिल कर सेना के कार्यालय पर लखनऊ छावनी में फर्जी आतंकी हमला दिखाने की योजना बनाई गयी. इस मुठभेड़ में सेना और पुलिस को शामिल होना था और दो कश्मीरी आतंकवादियों को मार गिराया जाना था. किसी तरह इस षड्यंत्र की खबर सामाजिक कार्यकर्त्ता संदीप पांडे को मिल गयी जिस पर उन्होंने एक सेवा निवृत पुलिस महानिदेशक से इसे रुकवाने का अनुरोध किया जिन्होंने  इस बारे में तत्कालीन पुलिस महानिदेशक से बातचीत की और उक्त फर्जी मुठभेड़ को रुकवाने के लिए कहा. इस पर उक्त फर्जी मुठभेड़ रुक गयी क्योंकि संदीप पांडे जी ने इसके बारे में रात में ही प्रेस को भी सूचित कर दिया था. बाद में इस बारे में पूछताछ करने के लिए संदीप पांडे को एटीएस मुख्यालय में बुलाया गया तो मैं भी उनके साथ गया था. इस प्रकार उस समय लखनऊ में भी संदीप पांडे के उद्यम से आतंक के नाम पर दो कश्मीरी लड़कों को फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने की घटना टल गयी और उत्तर प्रदेश का माहौल बिगड़ने से बच गया. यह बहुत खेद की बात है कि जिन दो कश्मीरी लड़कों को लखनऊ में फर्जी मुठभेड़ में मारा जाना था बाद में उन्हे 25 जनवरी, 2008 को दिल्ली गाज़ियाबाद बार्डर पर फर्जी मुठभेड़ कर मार गिराया गया. इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि मुख्य मंत्री के रूप में मायावती ने मुसलमानों को कितनी सुरक्षा और न्याय दिया था. क्या मायावती के सख्त प्रशासन की यही परिभाषा है?
मायावती के मुख्य मंत्री काल में ही 6 फरवरी, 2010 को सीमा आज़ाद और उसके पति को इलाहाबाद में माओवादी होने के आरोप में गिरफतार किया गया और उन पर अन्य आरोपों के साथ साथ देश द्रोह का आरोप भी लगाया गया. सीमा आज़ाद एक पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्त्ता भी है. सीमा आज़ाद पीयूसीएल उत्तर प्रदेश की संगठन सचिव भी है. उसने इलाहाबाद में बालू का अवैध खनन करने वाले माफिया के खिलाफ जंग छेड़ रखी थी. सीमा ने मायावती के प्रिय प्रोजेक्ट गंगा-एक्सप्रेस के लिए जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण का भी कड़ा विरोध करवाया था. इस कारण तथा रेत माफिया के इशारे पर सीमा आज़ाद को माओवादी कह कर गिरफ्तार किया गया. उसे कई साल तक जेल में रहना पड़ा और जिला न्यायालय ने सीमा आजाद और उसके पति को उम्र कैद की सजा सुना दी है जिस के विरुद्ध हाई कोर्ट में अपील चल रही है. इस घटना से भी आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि मायावती ने मुसलामानों के साथ साथ खनन माफिया के इशारे पर किस तरह सामाजिक कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया है. सीमा आज़ाद के मामले में जब पीयूसीएल के एक प्रतिनिधि मंडल जिस में मैं भी शामिल था ने मायावती के उस समय के चहेते अपर पुलिस महानिदेशक (अपराध) जो अब उसे छोड़ कर दूसरे खेमे में चले गए हैं, से मिलने के लिए समय माँगा तो उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि आप लोग तो माओवादियों की हिमायत करते हैं.
आतंकवाद के मामले में मायावती की हिन्दू आतंकवादियों से सहानुभूति की सब से बड़ी मिसाल कानपुर में बम विस्फोट की घटना है. इस घटना में बजरंग दल के दो कार्यकर्त्ता बम बनाते समय मारे गए थे.  यह घटना 23 अगस्त, 2008 की है जब पियूष मिश्रा और भूपिंदर सिंह कानपुर के कल्यानपुर क्षेत्र स्थित एक होस्टल में बम्ब बनाते समय मारे गए थे. मौके से बम बनाने का बहुत सा सामान भी मिला था. इस मामले में पुलिस ने इसे केवल एकल घटना मान कर इस के पीछे के गिरोह का पता लगाने का कोई प्रयास नहीं किया. बाद में जब मैं ने संदीप पांडे के साथ कानपुर जाकर इस मामले की जांच की तो पाया कि उक्त विस्फोट के एक दो दिन बाद ही जन्माष्टमी का त्यौहार था और मृतकों का इरादा उक्त अवसर पर कानपुर के सबसे बड़े हिन्दू मंदिर में बम विस्फोट करके मुसलामानों के विरुद्ध माहौल पैदा करना था. यह सर्वविदित है कि कानपुर हिन्दू आतंकवादियों का गढ़ रहा है. कानपुर के ही दयानंद पांडे मालेगांव बम ब्लास्ट के मुख्य आरोपी हैं. इस घटना से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि जहाँ एक तरफ मायावती के मुख्य मंत्री काल में बहुत बड़ी संख्या में निर्दोष मुसलामानों को आतंकी घटनाओं में फर्जी फंसाया गया वहीँ उसी काल में हिन्दू आतंकवादियों के प्रति कितनी नरमी दिखाई गयी.
अतः उपरोक्त संक्षिप्त विवरण से स्पष्ट है कि अब जो मायावती यह कह रही है कि निर्दोष मुसलमानों को आतंक के मामलों में झूठा फंसाया जाता है उसके लिए वह स्वयं सब से अधिक दोषी है क्योंकि उस के समय में ही उत्तर प्रदेश में सब से अधिक निर्दोष मुसलमान युवक आतंक के मामलों में फंसाए गए थे. उन में से खालिद मुजाहिद की तो पुलिस कस्टडी में हत्या भी कर दी गयी थी. मायावती के शासन काल में केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि जनता के हित में लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी मायोवादी कह कर जेलों में डाला गया था. इस समय मायावती जो कह रही है है अगर वह सही है तो मायावती को इसका अपने समय का हिसाब भी देना होगा.    


1 टिप्पणी:

  1. Unfortunate I believe that SCs and STs must get power with support of anti-Manuvad people of other castes and communities. But the person who represents Scs and STs has done what Manuvadi Congress and BJP does. Similarly Akhilesh is doing what Manuvadis do.

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