(25 मई को बौद्ध
पूर्णिमा पर विशेष )
वर्तमान में बौद्ध धम्म की प्रासंगिकता
एस आर. दारापुरी
आज संसार में हिंसा, धर्मिक
उन्माद और नस्लीय टकराव जैसी गंभीर समस्यायों का बोलबाला है. चारों तरफ मानव
अस्तित्व को गंभीर खतरे दिखाई दे रहे हैं. एक ओर मानव ने विज्ञान, तकनीकि और
यांत्रिकी में विकास एवं उसका उपयोग करके
अपार समृद्धि प्राप्त की है, वहीँ दूसरी ओर मानव ने स्वार्थ, लोभ, हिंसा आदि
भावनाओं के वशीभूत होकर आपसी कलह, लूट खसूट, अतिक्रमण आदि का अकल्याणकारी और
विनाशकारी मार्ग भी अपनाया है. अतः आज की दुनिया में भौतिक सम्पदा के साथ साथ मानव
अस्तित्व को भी बचाना आवश्यक हो गया है.
वैसे तो कहा जाता है कि
हरेक आदमी अपना कल्याण चाहता है परन्तु व्यवहार में यह पूर्णतया सही नहीं है. यह
यथार्थ है कि आदमी अपने कल्याण के साथ साथ अपना नुक्सान भी स्वयं ही करता है जैसा
कि आज तक की हुयी तमाम लड़ाईयों, विश्व युद्धों तथा वर्तमान में व्यापत हिन्सा व आपसी टकराहट से प्रमाणित है. अतः आदमी के
विनाशकारी विचारों को बदलना और उन पर नियंत्रण रखना बहुत ज़रूरी है. आज से लगभग 2558
वर्ष पहले बुद्ध ने मानवीय प्रवृतियों का विश्लेषण करते हुए कहा था कि मनुष्य का
मन ही सभी कर्मों का नियंता है. अतः मानव की गलत प्रवृतियों को नियंत्रित करने के
लिए उस के मन में सद विचारों का प्रवाह करके उसे सदमार्ग पर ले जाना आवश्यक है.
उन्होंने यह सदमार्ग बौद्ध धम्म के रूप
में दिया था. अतः आज मानव-मात्र की कुप्रवृतियों जैसे हिंसा, शत्रुता, द्वेष, लोभ
आदि से मुक्ति पाने के लिए बौद्ध धम्म व् बौद्ध दर्शन को अपनाने कि बहुत ज़रुरत है.
आपसी शत्रुआ के बारे में
बुद्ध ने कहा था कि ,” वैर से वैर शांत नहीं होता. अवैर से ही वैर शांत होआ है.”
यह सुनहरी सूत्र हमेशा से सार्थक रहा है. डॉ. आंबेडकर ने भी कहा था कि हिंसा
द्वारा प्राप्त की गयी जीत स्थायी नहीं होती क्योंकि कि उसे प्रतिहिंसा द्वारा
हमेशा पलटे जाने का डर रहता है. अतः वैर को जन्म देने वाले कारकों को बुद्ध ने पहचान
कर उनको दूर करने का मार्ग बहुत पहले ही प्रशस्त किया था. उन्होंने मानवमात्र के
दुखों को कम करने के लिए पंचशील और अष्टांगिक मार्ग के नैतिक एवं कल्याणकारी जीवन
दर्शन का प्रतिपादन किया था. यह ऐतिहासिक तौर पर प्रमाणित है कि बौद्ध काल में जब
“बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय” के बौद्ध मार्ग का शासकों और आम जन द्वारा अनुसरण गया
तो वह काल सुख एवं समृधि के कारण भारत के इतिहास का “स्वर्ण युग” कहलाया. उस समय
शांति और समृधि फैली. इसके साथ ही दुनिया के जिन देशों में बौद्ध धम्म फैला, उन देशों में
भी सुख, शांति तथा समृधि फैली. अतः बौद्ध धम्म का पंचशील और अष्टांगिक मार्ग आज भी
विश्व में शांति और कल्याण हेतु बहुत
सार्थक है.
यह कहा जाता है कि धर्म
आदमी का कल्याण करता है परन्तु व्यवहार में यह देखा गया है यह पूर्णतया सही नहीं
है. इतिहास इस बात का गवाह है कि संसार मे जितनी मारकाट धर्म के नाम पर हुयी है
उतनी मारकाट अब तक की सभी लड़ाईयों और विश्व युद्धों में नहीं हुयी है. यह सब
धार्मिक उन्माद, कट्टरपंथी एवं अपने धर्म को दूसरों पर जबरदस्ती थोपने के कारण हुआ है.
धर्म के नाम पर तलवार का इस्तेमाल करने से मानव-मात्र का बहुत नुक्सान हुआ है. यह
केवल बौद्ध धम्म ही है जो कि तलवार के बूते पर नहीं बल्कि करुना-मैत्री जैसे सद्गुणों के
कर्ण संसार के बड़े भूभाग में फैला और आज
भी बड़ी तेजी से फ़ैल रहा है. जहाँ एक ओर दूसरे धर्मों को मानने वालों की संख्या
लगातार घट रही है और वे अपने अनुयायिओं क बाँध कर रखने के लिए तरह तरह के हथकंडे व
आधुनिक प्रचार तकनीक को अपनाने के लिए बाध्य हो रहे हैं, वहीँ बौद्ध धम्म अपनी
नैतिकता एवं सर्व कल्याणकारी शिक्षाओं के कारण स्वतः प्रसारित हो रहा है.
यह सर्वविदित है कि हमारा
देश एक जाति प्रधान देश है जिस के कारण हमारी आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा सदियों से
सभी मानव अधिकारों से वंचित रहा है और आज भी काफी हद तक वंचित है. यह बुद्ध ही थे
जिन्होंने जाति-भेद को समाप्त करने के लिए अपने भिक्खु संघ में पहल की. उन्होंने
सुनीत भंगी, उपली नाई तहत अन्य कई तथाकथित निचली जातियों के लोगों को संघ में राजा
और राजकुमारों की बराबरी का स्थान दिया जिनमे से कई अर्हत बने. बुद्धा ने ही
महिलायों को भिक्खुनी संघ में स्थान देकर नारी पुरुष समानता के सिधांत को मज़बूत
किया. यद्यपि दास प्रथा तथा
जाति भेद पूर्ण रूप से समाप्त नहीं
हुआ परन्तु बुद्ध द्वारा वर्ण व्यवस्था तथा उसके धार्मिक आधार पर किया गया प्रहार बहुत कारगर सिद्ध हुआ. डॉ. आंबेडकर ने
अपने लेखन में कहा है कि भारत में बौद्ध धम्म का उदय एक क्रांति थी और बाद में ब्राह्मण धर्म कि पुनर्स्थापना एक प्रतिक्रांति
थी जिस ने बौद्ध धम्म द्वारा स्थापित सभी मानवीय सामाजिक मूल्यों को पलट कर रख
दिया था. फलस्वरूप जाति व्यवस्था एवं ब्राह्मण धर्म को अधिक सख्ती से लागू करने के
लिए मनुस्मृति तथा अन्य समृतियों कि रचना
करके उन में प्रतिपादित नियमों और विधानों को कठोरता से लागू किया गया.
आज भारत तथा विश्व में जो धार्मिक कट्टरवाद व टकराव दिखाई दे
रहा है वह हम सब के लिए बहुत बड़ी चिंता और चुनौती का विषय है. भारत में
साम्प्रदायिक दंगों और जातीय जनसंहारों में जितने निर्दोष लोगों की जाने गयी हैं
वे भारत द्वारा अब तक लड़ी गयी सभी लड़ाईयों में मारे गए सैनिकों से कहीं अधिक हैं.
अतः अगर भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और
धर्म निरपेक्षता के संवैधानिक अधिकार को बचाना है तो बौद्ध धम्म के धार्मिक
सहिष्णुता, करुणा और मैत्री के सिद्धांतों को अपनाना ज़रूरी है. आज सांस्कृतिक
फासीवाद और हिंदुत्ववाद जैसी विघटनकारी विचारधारा को रोकने के लिए बौद्ध धम्म के
मानवतावादी और समतावादी दर्शन को जन जन तक ले जाने की ज़रुरत है.
दुनिया में धार्मिक टकरावों
का एक कारण इन धर्मों को विज्ञानं द्वारा दी जा रही चुनौती भी है. जैसा कि ऊपर
अंकित किया गया है कि विभिन्न ईश्वरवादी
धर्मों के अनुयायिओं की संख्या कम होती जा रही है क्योंकि वे विज्ञानं की तर्क और
परीक्षण वाली कसौटी पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं. अतः वे अपने को बचाए रखने के लिए
तरह तरह के प्रलोभनों द्वारा, चमत्कारों का प्रचार एवं अन्य हथकंडों का इस्तेमाल
करके अपने अनुयायिओं को बांध कर रखना चाहते हैं. उनमे अपने धर्म की अवैज्ञानिक और
अंध-विश्वासी धारणाओं को बदलने की स्वतंत्रता एवं इच्छाशक्ति का नितांत आभाव है.
इस के विपरीत बौद्ध धम्म विज्ञानवादी, परिवर्तनशील तथा प्रकृतवादी होने के कारण विज्ञानं के साथ चलने तथा
ज़रूरत पड़ने पर बदलने में सक्षम है. इन्हीं गुणों के कारण डॉ. आंबेडकर ने
भविष्यवाणी की थी कि,” यदि भविष्य की दुनियां को धर्म की ज़रुरत होगी तो इसको केवल
बौद्ध धम्म ही पूरा कर सकता है.” उनका भारत को पुनः बौद्ध्मय बनाने का सपना भी था. अतः हम निस्संकोच कह सकते हैं कि
वर्तमान परिस्थितियों में बौद्ध धम्म एवं बौद्ध दर्शन पूर्णतया प्रासंगिक है.
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