मंगलवार, 11 अक्तूबर 2022

नव बौद्धों के लिए बाईस प्रतिज्ञाएं जरूरी क्यों?

 

नव बौद्धों के लिए बाईस प्रतिज्ञाएं जरूरी क्यों?

एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट

डा. बाबासाहेब भीमराव ने 14 अक्तूबर 1956 को पाँच लाख अनुयायियों के साथ नागपुर (दीक्षाभूमि) में हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। उसी दिन उन्होंने पहले बौद्ध भिक्षुओं से बौद्ध धर्म की दीक्षा स्वयं ग्रहण की थी तथा उसके बाद उन्होंने स्वयं उपस्थित लोगों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। बौद्ध धर्म की दीक्षा के हिस्से के रूप में ही उन्होंने सभी को बाईस प्रतिज्ञाएं भी दिलाई थीं जो निम्नलिखित थीं:-

1. मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.

2. मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.

3. मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.

4. मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ.

5. मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ.

6. मैं श्राद्ध में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान करूंगा.

7. मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा.

8. मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा.

 9. मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ.

10. मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा.

11. मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करूँगा.

12. मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित पारमिताओं का पालन करूँगा.

13. मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया का पालन करूंगा तथा उनकी रक्षा करूँगा.

14. मैं कभी चोरी नहीं करूँगा.

15. मैं कभी झूठ नहीं बोलूँगा.

16. मैं व्यभिचार नहीं करूँगा.

17. मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा.

18. मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और अपने दैनिक जीवन में दयालु रहने का अभ्यास करूँगा.

19. मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ.

20. मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ कि बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है.

21. मुझे विश्वास है कि मैं (इस धर्म परिवर्तन के द्वारा) फिर से जन्म ले रहा हूँ.

22. मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके (धर्म परिवर्तन के) बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार आचरण करूँगा.

अब यह प्रश्न उठता है कि बाबासाहेब ने इन बाईस प्रतिज्ञाओं को बौद्ध धम्म की दीक्षा का हिस्सा क्यों बनाया। इसे समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि इन प्रतिज्ञाओं के न रहने पर क्या खतरा है। बाबासाहेब ने इन्हें दिलाने की जरूरत का उल्लेख करते हुए महाबोधि सोसाइटी के महासचिव वलिसिनहाँ को सूचित किया कि, “धर्म-दीक्षा समारोह के लिए हमने एक संस्कार पद्धति बनाई है। बौद्ध धर्म की दीक्षा लेते समय हर एक को वे संस्कार करने पड़ेंगे। मेरा मत है कि सर्वसाधारण अज्ञानी मनुष्य का धर्मांतरण बिल्कुल धर्मांतरण नहीं है। केवल नाम मात्र की घटना होती है। भारत से बौद्ध धर्म का लोप होने का एक कारण यह है कि अज्ञानी लोगों ने अपने ढुलमुल रुख के का कारण बुद्ध की पूजा के साथ बौद्ध धर्म में अपने पूर्व जीवन में ब्राह्मणों द्वारा घुसेड़े गए अन्य देवी-देवताओं की पूजा भी करनी जारी रखी। इसलिए बौद्ध धर्म की दीक्षा लेते समय विशेष समारोह किया जाना चाहिए।“ इससे स्पष्ट है कि बाबासाहेब की मुख्य चिंता पूर्व की गलतियों से शिक्षा लेकर बौद्ध धर्म में हिन्दू देवी-देवताओं के पुनरप्रवेश को रोकने हेतु सावधानी बरतना था।

इसके अतिरिक्त बाबासाहेब की मुख्य चिंता नव-दीक्षित बौद्धों को पूर्ण बौद्ध बनाना था ताकि वे अच्छे बौद्ध बन कर दूसरों के लिए एक आदर्श बन सकें। इसके अतिरिक्त हरेक धर्म के अनुयायी को उस धर्म के बुनियादी सिद्धांतों को मानना जरूरी होता है। कंवल भारती के अनुसार कोई भी धर्म अपने बुनियादी सिद्धांतों पर जिन्दा रहता है। हिंदू धर्म की बुनियाद में वर्णव्यवस्था है, जैसा कि गाँधी जी भी कहते थे कि वर्णव्यवस्था के बिना हिंदू धर्म खत्म हो जायेगा। अगर कोई हिंदू आस्तिक नहीं है, चलेगा, पूजा-पाठ नहीं करता है, चलेगा, मंदिर नहीं जाता है, चलेगा, पर अगर जाति में विश्वास नहीं करता है, तो नहीं चलेगा। जाति में विश्वास ही हिंदू होने की बुनियादी शर्त है। कंवल भारती आगे कहते हैं कि  “इसी तरह दूसरे धर्मों के भी कुछ बुनियादी सिद्धांत हैं, जिनमें विश्वास किए बिना कोई भी उन धर्मों का अनुयायी नहीं माना जा सकता। अगर किसी मुसलमान का यकीन ‘कलमा तैय्यबा’ में नहीं है, तो वह मुसलमान नहीं माना जा सकता। यह ईसाईयों का बुनियादी विश्वास है कि यीशु ईश्वर के पुत्र हैं. इसमें अनास्था व्यक्त करके कोई भी ईसाई नहीं हो सकता। इसी तरह नवबौद्धों के भी डा. आंबेडकर द्वारा कुछ बुनियादी सिद्धांत निर्धारित किए गए थे। ये सिद्धांत ही बाईस प्रतिज्ञाओं के नाम से जाने जाते हैं। ये प्रतिज्ञाएँ नवबौद्धों को हिंदू संस्कृति और मान्यताओं से पूरी तरह मुक्त होने के लिए एक शपथ के रूप में कराई जाती हैं। इसमें क्या गलत है? क्या भाजपाई हिंदू यह चाहते हैं कि धर्मान्तरण के बाद भी नवबौद्ध हिंदू धर्म की मान्यताओं के ‘ब्राह्मण-जाल’ में फंसे रहें?

बाईस प्रतिज्ञाओं में शुरू की दो प्रतिज्ञाएं ये है—(1) ‘मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश को कभी ईश्वर नहीं मानूँगा, और न उनकी पूजा करूँगा, और (2) मैं राम और कृष्ण को ईश्वर नहीं मानूँगा और न कभी उनकी पूजा करूँगा.’ के संबंध में बाबासाहेब ने  15 अक्तूबर को दीक्षा भूमि पर अपने  भाषण में कहा था, “दूसरे धर्मों और बौद्ध धर्म में महान अंतर है। बौद्ध धर्म की  महान बातें आपको दूसरे धर्मों में नहीं मिलेंगी, क्योंकि दूसरे धर्म में मनुष्य और ईश्वर के गहरे संबंध बताते हैं। दूसरे धर्म कहते हैं कि संसार को ईश्वर ने बनाया है। उसी ने आकाश, वायु, इन्द्र, सूरज और सब कुछ पैदा किए हैं। ईश्वर हमारे लिए सब कुछ कर दिया है। कुछ शेष नहीं रखा है, इसीलिए हम ईश्वर की उपासना और भजन करते हैं। ईश्वर और आत्मा के लिए बौद्ध धर्म में कोई स्थान नहीं है।“

कंवल भारती के अनुसार, डा. आंबेडकर ने राम-कृष्ण और देवी-देवताओं के नाम पर किए जाने वाले शोषण से दलितों को मुक्त करने के लिए ही उन्हें बाईस प्रतिज्ञाओं के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण करवाया था। ये प्रतिज्ञाएँ उन्हें सिर्फ शोषण की धार्मिक संस्कृति से ही मुक्त नहीं करती हैं, बल्कि उन्हें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी संपन्न बनाती हैं। क्योंकि उसमें उन्नीसवीं प्रतिज्ञा यह भी है कि ‘मैं मनुष्य मात्र में उत्कर्ष के लिए हानिकारक और मनुष्य मात्र को असमान और नीच मानने वाले अपने पुराने हिंदू धर्म का पूरी तरह त्याग करता हूँ और बुद्ध-धर्म को स्वीकार करता हूँ।“

उपरोक्त संक्षिप्त विवेचन से स्पष्ट है कि नव-दीक्षित बौद्धों के लिए बाबासाहेब की बाईस प्रतिज्ञाओं का बहुत महत्व है। ये प्रतिज्ञाएं ही उन्हें हिन्दू धर्म की मानव विरोधी मान्यताओं से मुक्त कर सकती हैं और बौद्ध धर्म की मानवीय मान्यताओं में बांध कर रख सकती हैं। यह भी उल्लेखनीय हैं कि बाबासाहेब की बाईस प्रतिज्ञाएं किसी भी तरह से हिन्दू धर्म विरोधी नहीं हैं बल्कि बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए दिशा निर्देश देती हैं जो प्रत्येक धर्म देता है।  

  

 

     

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