उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा बम विस्फोट की आतंकी घटनाओं की विवेचना में किये गए फर्जीवाड़े का भंडाफोड़
–एस आर दारापुरी आई.पी.एस. (से. नि.) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता आल इंडिया
पीपुल्स फ्रंट
(प्रदेश में बम विस्फोट के मामलों के सम्बन्ध में आशीष खेतान (पत्रकार)
द्वारा दिनांक 13 जून, 2013 को माननीय
उच्च न्यायालय इलाहाबाद में दायर की गयी पत्र-जनहित
याचिका दाखिल की है जो कि उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा इन मामलों की विवेचना में
किये गए फर्जीवाड़े और धोखाधड़ी का पर्दाफाश करती है. इस का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत
है ताकि सभी लोग इस को भलीभांति समझ सकें।)
सेवा
में,
न्यायमूर्ति मुख्य न्यायधीश,
इलाहाबाद
उच्च न्यायालय,
इलाहाबाद.
1. मैं 12 वर्ष से पत्रकारिता में हूँ. इस अवधि में मैंने कई महत्वपूर्ण मामलों जिन में 2002 के गुजरात दंगे से जुड़े नरोडा
गांव, नरोडा पटिया और गुलबर्ग सोसाइटी जनसंहार के मामले हैं,
की जाँच रिपोर्टें तैयार की थी. मेरी जाँच रिपोर्टों की काफी
प्रशंसा हुयी और उनका उपयोग विवेचकों और न्यायालयों द्वारा किया गया. 2007 में
मेरी गुजरात दंगों पर जाँच रिपोर्ट के व्यापक
प्रकाशन होने पर रष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने
मेरी जाँच रिपोर्ट, फोरेंसिक
प्रयोगशाला जयपुर द्वारा जाँच की गयी और वे सही पाई गयीं. अक्टूबर, 2007 में मेरे स्टिंग ऑपरेशन की जांच
रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा गोधरा और उत्तर गोधरा दंगों से
जुड़े कई मामलों की पुनर- विवेचना हेतु विशेष जाँच दल (एस.आई. टी) का गठन किया गया.
विशेष जांच टीम ने तीन बड़े दंगों के मामले में मुझे अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप
में रखा. नरोडा पटिया मामले में मेरे साक्ष्य को अदालत ने माना और मेरे साक्ष्य पर
कई सजाएँ हुयीं. इस बीच में मैं नरोडा गांव और गुलबर्ग सोसाइटी मामलों में भी गवाह के रूप में कोर्ट में पेश हुआ हूँ जिन का फैसला आना बाकी है.
2. बेस्ट बेकरी मामले में मेरे स्टिंग ऑपरेशन पर सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल के नेतृत्व में एक अर्ध न्यायिक जाँच
समिति का गठिन किया जिस ने मेरी जाँच रिपोर्ट को अधिकारिक और विश्वसनीय पाया. इस
कमिटी के निष्कर्ष अधिकतर मेरी रिपोर्ट पर ही आधारित हैं. मेरी रिपोर्टों के आधार
पर ही हिंदुत्ववादी आतंकी गुटों की मालेगांव
(2006), समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट, अजमेर
शरीफ विस्फोट और हैदराबाद मक्का मस्जिद विस्फोटों
में संलिप्तता के बारे में जाँच तेज़ हुयी. इस के नतीजे के फलस्वरूप इन मामलों में गिरफ़तार किये गए बेकसूर लोग ज़मानत पर छूटे और अभियोजन का रुख इन
मामलों में शामिल सही लोगों की तरफ मुड़ा.
3. मैं इस पत्र-जनहित याचिका के माध्यम से आप के पास आया हूँ क्योंकि
मेरे हाल के पत्रकारिता के प्रयासों से मैंने यह स्पष्ट तौर पर पाया है कि उत्तर
प्रदेश पुलिस की ऐजसियों ने किस प्रकार निर्दोष मुसलामानों,
जिन में अधिकतर गरीब नवयुवक हैं, को आतंकवाद
के मामलों में फंसाया है. इस के परिणाम न्यायायिक अन्तकर्ण को झकझोरने के लिये काफी हैं. वर्ष 2007
के लखनऊ और फैजाबाद में बम ब्लास्ट के मामले के आरोपी खालिद मुजाहिद की जेल से
कोर्ट ले जाते समय पुलिस गाड़ी में मौत भी हो चुकी है. मुजाहिद 6 साल से अधिक समय
से जेल में था और मैं जो सामग्री आप के सामने रखने जा रहा हूँ वह न केवल उसकी ही बल्कि उस के तीनों साथियों की बेगुनाही को भी दर्शाती
है जिसे पुलिस ने जानबूझ कर अदालत से छुपाया है. अन्य 5 मामलों, जिन में अभियुक्त 7 से 8 सालों से जेलों में हैं, की
भी मैंने जांच की है. इन में से एक मामले में वलीउल्लाह को 10 वर्ष की सजा भी हो
गयी है. जो सामग्री मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ वह
दर्शाती है कि जिस मामले में वलीउल्लाह को आरोपित किया गया है वह उस केस में शामिल ही नहीं था. अतः यह मामला बहुत महत्वपूर्ण एवं अतिआवश्यक
है.
4. मैं एक साल से देश में आतंक के मामलों की विवेचना की पड़ताल कर रहा
हूँ. मेरी पड़ताल दिखाती है कि आतंक के अधिकतर मामलों में विभिन्न पुलिस एजंसियों
ने अदालतों को खास करके गुमराह किया है और आम तौर पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों
को गलत ढंग से फंसाया है. इस सम्बन्ध में मैंने हाल में बॉम्बे उच्च न्यायालय में
एक पत्र-जनहित याचिका दायर की है जिस में मैंने महाराष्ट्र एटीएस द्वारा गवाहों को
पढ़ा कर जिन में अधिकतर पुलिस के जेबी गवाह हैं, निर्दोषों
पर हथियार और विस्फोटक रख कर और मकोका के अंतर्गत
झूठी स्वीकारोक्तियां प्राप्त करके 21 मुसलामानों के जीवन बारबाद किये हैं.
5. अपनी पड़ताल के दौरान मैंने देश की विभिन्न आतंक विरोधी जाँच एजंसियों
के अंदरूनी रिकार्ड जिन्हें “पूछताछ रिपोर्ट”
(इन्टैरोगेशन रिपोर्ट) कहा जाता है प्राप्त की हैं जो उत्तर प्रदेश
के सात आतंक के मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा अदालतों को बताई गयी कहानी
के विपरीत कहानी बताती हैं. दहलाने वाली बात यह है कि यह पूछताछ रिपोर्टें उत्तर
प्रदेश पुलिस की एटीएस द्वारा तैयार की गयी हैं जो कि इन की गिरफतारी और विवेचना
के लिए जिम्मेवार है. यह रिकार्ड दर्शाता है कि पुलिस द्वारा जो अभियोजन मामले
बनाये गए हैं वह उनकी अंदरूनी रिपोर्टों के साक्ष्य के बिलकुल विपरीत है.
6. परन्तु यह सुनिश्चित करने के लिए कि पूरा सच्च कभी जाहिर न हो और
अदालतें इन विवेचनाओं की हास्यस्पद प्रकृति को न जान सकें पुलिस ने इस बात का
फायदा उठाया है कि यह पूछताछ रिपोर्टें कभी भी जनता में जाहिर नहीं होतीं और इन्हें गोपनीय करार देकर छुपा लिया हैं.
इन रिपोर्टों को ताला-चाबी में बंद रख कर और उनमें फेर बदल करके यह एजंसियां यह
जानते हुए भी कि यह बिलकुल फर्जी हैं, अपने मामलों को चालू
रखती है. मैं अदालत के सामने वही सामग्री पेश कर रहा हूँ.
7. यह सात आतंक के मामले निम्नलिखित हैं:
(१) संकट मोचन
मंदिर विस्फोट, वाराणसी 7 मार्च, 2006,
(२) कैंट रेलवे
स्टेशन विस्फोट, वाराणसी 7 मार्च, 2006
(३) तीन बम विस्फोट, , गोरखपुर. 22 मई, 2007
(४) वाराणसी
कचेहरी विस्फोट, 23 नवम्बर, 2007.
(५) फैजाबाद
कचेहरी विस्फोट, 23 नवम्बर, 2007.
(६) लखनऊ कचेहरी
विस्फोट, 23 नवम्बर, 2007.
(७) श्रमजीवी
एक्स्प्रेस विस्फोट, 28 जुलाई, 2005.
8. इन सभी मामलों में यू.पी. पुलिस ने मुस्लिम समुदाय के 9 लोगों को गिरफ्तार
करके मुकदमा चलाने के लिए जेल भेजा है जिन में से कुछ 6 से 8 साल से जेल में हैं.
श्रमजीवी एक्सप्रेस विस्फोट के मामले में एक भारतीय नागरिक के इलावा तीन
बांग्लादेशी पिछले 7 साल से जेल में हैं. हाल में फैजाबाद और लखनऊ ब्लास्ट के
मामले का आरोपी खालिद मुजाहिद जो 6 साल से जेल में था संदेहस्पद स्थितियों में
न्यायायिक हिरासत में मर गया है. जैसा पहले बताया गया है अधिकतर आरोपी गरीब और
पिछड़े है.
9. अन्दर के रिकॉर्ड जो मैं इस अदालत के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ से स्पष्ट
है कि इन सात मामलों में शुरू में यूपी पुलिस द्वारा जिन अभियुक्तों को गिरफ्तार
कर आरोपी बनाया गया था उन मामलों में अन्य आतंक विवेचक पुलिस एजंसियों द्वारा
बिलकुल लोगों के एक अलग समूह को आरोपी बताया गया है. महाराष्ट्र एटीएस, गुजरात पुलिस और यूपी एटीएस के पास जो विवरण है उस विवरण से बिलकुल भिन्न है जो यूपी की अदालतों में पेश किया गया है. शुरू में जिन
अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया था बाद में उन
से बिलकुल भिन्न लोगों के समूह को गिरफ्तार किया गया. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है
कि विभिन्न एजंसियों (यूपी एटीएस सहित) दवारा तैयार की गयी पूछताछ रिपोर्ट में इन
संदिग्ध आतंकियों ने यूपी पुलिस द्वारा शुरू में गिरफ्तार किये गये आरोपियों से
कोई भी सम्बन्ध होना नहीं बताया था.
10. परन्तु लखनऊ, फैजाबाद और गोरखपुर के तीन विस्फोटों
में यूपी पुलिस ने शुरू में गिरफ्तार किये गए और कई माह और कुछ मामलों में कई साल
बाद गिरफ्तार किये गए अभियुक्तों के बीच एक काल्पनिक सम्बन्ध गढ़ लिया. दो बिलकुल
विभिन्न कहानियों को पिछले समय से आपस में जोड़ दिया ताकि पहले की गयी गलत
गिरफ्तारियों को उचित ठहराया जा सके. मेरे द्वारा प्रस्तुत सामग्री से इस का
पर्दाफाश हो जाता है.
11. इन आतंक के सात मामलों में से अधिकतर में मूल अभियुक्तों को अलग अलग तौर
पर शस्त्र और विस्फोटकों की बरामदगी में भी अभियुक्त बनाया गया है. यदि यह आरोपी
शुरू के इन बम विस्फोटों में शामिल नहीं थे जैसा कि अंदरूनी रिकार्ड बताते हैं तो
इस से इन बरामदगियों की सत्यता के बारे में एक गंभीर प्रश्न पैदा होता है.
12. मेरा इरादा किसी व्यक्ति का दोष सिद्ध करना नहीं है. मैं इस कोर्ट के
सामने इन सात विस्फोट के मामलों से सम्बंधित उन तथ्यों को रखना चाहता हूँ जिन्हें
विवेचना करने वाली एजंसियों ने कभी नहीं रखा है. जो सामग्री मैं प्रस्तुत कर रहा
हूँ वह जोरदार ढंग से यह सिद्ध करती है कि इन सात मामलों में जो साक्ष्य और खुलासे
अभियोजन की कहानी के खिलाफ जाते थे उन्हें या तो
सुविधा के अनुसार हटा दिया गया या बदल दिया गया या तोड़ मरोड़ दिया गया ताकि पहले की
गयी पाखंडपूर्ण विवेचना को जायज़ ठहराया जा सके. उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा चकित
करने वाली की गयी हेराफेरी कानून की प्रक्रिया, न्याय और
सत्य का घोर अपमान है.
13. इस से इस का भी अंदाज़ा लगता है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने विभिन्न अवसरों
और अलग अलग अदालतों इलाहाबाद हाई कोर्ट सहित, अभियुक्तों की
निर्दोषता के सबूत पेश न करके और मुक़दमे वापस लेने की खुलदिली दिखा कर निंदनीय ढंग
से घोर अन्याय किया है. एक तरफ तो सरकार संकटमोचन विस्फोट, वाराणसी
और गोरखपुर विस्फोट और लखनऊ और फैजाबाद विस्फोटों के अभियुक्तों के मामले जनहित और
साम्प्रदायिक सद्भाव के नाम पर वापस लेने का दिखावा करती रही है वहीँ इन
अभियुक्तों की निर्दोषिता के सबूत जो कि सरकारी पुलिस एजंसियों के पास उपलब्ध हैं
को अदालत में पेश नहीं करती. इस प्रकार इन व्यक्तियों की निर्दोषिता सिद्ध करने के
संवैधानिक अधिकार और उनकी स्वतंत्रता और सम्मान की बहाली करने के विपरीत सरकार
राजनीतिक और चुनावी कारणों से इसे एक अनावश्यक उदारता दिखा कर चारों तरफ आक्रोश
पैदा कर रही है.
14. आतंक के घिनौने मामलों में समान न्याय और पूर्ण सत्य की खोज की ज़रुरत है.
परन्तु सरकार की झूठ और अर्ध सत्य का जाल बुनने की नीति के कारण कानून के राज का
ह्रास और विभिन्न सम्प्रदायों के बीच विश्वास और सामाजिक एकता का विघटन हो रहा है.
हाल में कुछ वकीलों ने सरकार के मुस्लिम सम्प्रदाय के लोगों के विरुद्ध मुकदमों को
वापस लेने के प्रयास के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर
की है. दूसरी तरफ पुलिस की घिनौनी विवेचनाओं और एक तबके के व्यक्तियों को जानबूझ
कर निशाना बनाने के कारण पुलिस एजंसियां अल्प संख्यक समुदाय के प्रति अलगाव पैदा
कर रही हैं.
15. इस के परिणाम स्वरूप न तो आतंक के घिनौने हमलों के शिकार लोग और न ही इन
में झूठे तौर पर फंसाए गए निर्दोष नौजवानों को न्याय मिल पा रहा है. हर बार जब भी
आतंक के मामले में निर्दोष व्यक्ति को फंसा दिया जाता है, असली
मुजरिम न केवल छूट जाते हैं बल्कि उनके हौसले बुलंद हो जाते हैं. इसी लिए मैं न
केवल विवेचना की विकृतियों और छोटी मोटी गलतियों सम्बन्धी सामग्री रख रहा हूँ
बल्कि एक दुर्भावनापूर्ण तरीके से की गयी पूरी कार्रवाई को रख रहा हूँ. यदि इसे
रोका नहीं गया तो इस प्रकार का रास्ता न केवल आतंक के खतरे को बढ़ावा देगा बल्कि इस
से आन्तरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा बढ़ेगा.
16. मैं जानता हूँ कि आम तौर पर अपराध की विवेचना करना पुलिस और दोष सिद्ध होने या निर्दोष होने का निर्णय देना अदालत का काम है. मैं इस
मसले में इस लिए दखल दे रहा हूँ कि वास्तव में यह आशय के विपरीत हो गया है. जब
पुलिस जानबूझ कर न्याय में रोड़ा अटकाने और अदालत
को गुमराह करने लगे तो इसे रोके बिना नहीं रहा जा सकता है और यह मेरा एक नागरिक और
पत्रकार के तौर पर कर्तव्य है कि मैं न्याय के संरक्षकों का ध्यान उन तथ्यों की
तरफ आकर्षित करूँ जो मैंने ढूंड निकाले है, खास करके जब इस
का असर हमारे राष्ट्र की सुरक्षा पर पड़ने वाला हो.
17. मैं जो सामग्री इस न्यायालय के सामने रखने जा रहा हूँ उसे सुविधा की
दृष्टि से सादिक इसरार शेख, आरिफ बदर उर्फ़ लड्डन, मोहमद सैफ, सैफुर रहमान, सर्वर
और मोहमद सलमान शीर्षकों के अंतर्गत रखने जा रहा हूँ.
18. यह शीर्षक उन आतंक के संदिग्ध व्यक्तियों के नाम पर रख रहा हूँ जिन्हें
विभिन्न पुलिस एजंसियों द्वारा सितम्बर 2008 और मार्च 2010 के दौरान गिरफ्तार किया
गया था. विवेचनकर्ता एजंसियों के रिकॉर्ड में एक समग्र साजिश है जिस के उपरोक्त 6
गिरफ्तार व्यक्ति हिस्सा होना बताये गए हैं. इन व्यक्तियों द्वारा उत्तर प्रदेश के
बाहर विभिन्न एजंसियों को दिया गया विवरण एक सामान है. विभिन्न एजंसियों के अंदरूनी रिकॉर्ड के अनुसार इन सभी 6 व्यक्तियों ने एक
आतंकी साजिश की बात स्वीकार की है जिस का हिस्सा उत्तर प्रदेश के उपरलिखित 7 मामले
भी थे. यह रिकार्ड दर्शाते हैं कि इन 6 संदिग्ध व्यक्तियों ने इन बम हमलों में
अपने तथा अपने साथियों के शामिल होने की बात स्वीकारी है. महत्वपूर्ण बात यह है कि
इन 6 व्यक्तियों की स्वीकारोक्तियों और न ही इन की पूछताछ रिपोर्टों में यूपी पुलिस द्वारा पूर्व में इन विस्फोटों के लिए गिरफतार तथा चालान
किये गए 9 व्यक्तियों के शामिल होने का कही भी उल्लेख नहीं है. वास्तव में इन 6 व्यक्तियों द्वारा बताई गयी और विभिन्न
एजंसियों द्वारा अलग अलग समय पर दर्ज किये गए आतंक की साजिश के विवरण से इन सात
विस्फोटों के अभियोजन का मामला साक्ष्य और सूक्ष्म विवरण की दृष्टि से पूरी तरह
ध्वस्त हो जाता है.
20. सादिक इसरार शेख
पुत्र इसरार अहमद शेख, स्थायी पता; तहिसील
फूलपुर, आजमगढ़ गिरफ्तारी के
समय अस्थायी पता ट्राम्बे, मुम्बई 9 सितम्बर, 2008 में गिरफ्तार
20.1 जुलाई और सितम्बर 2008 में क्रमवार धमाके दिल्ली, अहमदाबाद
और सूरत (असफल धमाके ) हुए थे इन विस्फोटों में मिले कुछ सुरागों के आधार पर
मुम्बई क्राईम ब्रांच ने सादिक शेख को और 20 अन्य अभियुक्तों को मुम्बई और
महारष्ट्र के अन्य हिस्सों से माह सितम्बर, 2008 में
गिरफ्तार किया था.
20.2 यह भारत में आतंक के मामलों की विवेचना का एक निर्णायक दौर था. अगस्त 2007
और सितम्बर 2008 के दौरान बंगलौर (जुलाई 2008 के सात क्रमवार बम विस्फोट), हैदराबाद (2007 के लुम्बनी पार्क और गोकुल चाट बम विस्फोट), लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद कचेहरी बम विस्फोट (
नवम्बर, 2008), अहमदाबाद (21 क्रमवार
बम विस्फोट जुलाई, 2008) और सूरत (18 असफल बम विस्फोट) और
दिल्ली (मार्किट स्थलों पर सितम्बर, 2008 के बम विस्फोट) में
विस्फोट हुए थे.
20.3 भारत में लड़ीवार बम विस्फोटों ने इसके एक संघटित साजिश होने का सन्देश
दिया और विभिन्न राज्यों की जाँच एजंसियों को एक साथ जुड़ने और सूचनाओं को एक जगह
पर इकट्ठा करने का अवसर दिया. दूसरे शब्दों में 2007 और 2008 के बम धमाकों के बाद
गिरफ्तार किये गए व्यक्तियों से अहमदाबाद, दिल्ली, यूपी, कर्नाटक और अन्य राज्यों की पुलिस टीमों ने
पूछताछ की और 2007 और 2008 के बम विस्फोटों में सामूहिक अभियुक्त बनाये.
20.4 शेख सादिक और उनके तथाकथित इंडियन मुजाहिदीन सहियोगियों से विभिन्न
राज्यों की एजंसियों ने विभिन्न तिथियों में
पूछताछ की. हरेक एजंसी ने एक विस्तृत पूछताछ रिपोर्ट तैयार की. मुम्बई पुलिस और
आंध्र प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और
कर्नाटक में इन एजंसियों में मेरे सूत्र जो इंडियन मुजाहिदीन और इसकी 2007 और 2008
के बम विस्फोटों में संलिप्तता की जाँच से जुड़े थे ने मुझे सादिक शेख की पूछताछ
रिपोर्टें उपलब्ध कराईं.
20.5 इन पूछताछ रिपोर्टों का महत्पूर्ण पहलू यह है कि सादिक ने न केवल 2007 और 2008 के बम विस्फोटों में शामिल होने की बात कही बल्कि
2003 और 2007 के बीच में हुए निम्नलिखित विस्फोटों में शामिल होने की बात भी स्वीकार की:
1. दशाशाव्मेध घाट, वाराणसी, 2004 ( एक टीन में बंद बम फटा नहीं था).
2. श्रमजीवी एक्सप्रेस विस्फोट, जौनपुर,
उ.प्र., 2005
3. दिल्ली के दिवाली धमाके, 2005
4.. संकटमोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन विस्फोट,वाराणसी, 2006
5. मुम्बई ट्रेन विस्फोट, 2006
20.6 एजंसियों ने स्वयं दावा किया है (कोर्ट और कोर्ट के बाहर) कि सादिक से
पूछताछ के आधार पर यूपी एटीएस, हैदराबाद केन्द्रीय विवेचना प्रकोष्ट, अहमदाबाद
क्राईम ब्रांच, राजस्थान एटीएस और दिल्ली स्पेशल सेल ने 70
आतंकियों को गिरफ्तार किया था. इन रिपोर्टों की विषयवस्तु और स्वीकारोक्ति विभिन्न
एजंसियों द्वारा दाखिल किये गए आरोप पत्र का हिस्सा हैं. परन्तु सादिक शेख और उस
के साथियों के विरुद्ध चार्जशीट केवल उन मामलों में ही भेजी गयी जो कि अभी पूरे नहीं हुए थे. हैदराबाद विस्फोट (गोकुल चाट और लुम्बिनी पार्क, 2007), अहमदाबाद और सूरत (असफल) 2008, दिल्ली के 2008 के विस्फोट ही कुछ मामले थे जिन में तथाकथित इंडियन
मुजाहिदीन के सदस्यों के विरुद्ध चार्जशीट भेजी गयी.
20.7 परन्तु सादिक की श्रमजीवी एक्सप्रेस और संकटमोचन मंदिर के विस्फोटों में
शामिल होने की बात को सुविधाजनक तरीके से छुपा लिया गया.
20.8 ये सभी एजंसियां भलीभांति जानती थीं कि इन विस्फोटों को एक अलग समूह के
लोगों द्वारा आयोजित किया गया था. यदि 2008 वाली पूछताछ रिपोर्टे सही थीं तो ये
सभी लोग निर्दोष हो सकते थे.
20.9 इस प्रकार सितम्बर 2008 के बाद यूपी
पुलिस सहित सभी एजंसियां श्रमजीवी एक्सप्रेस और
2006 के वाराणसी विस्फोट और अन्य मामलों में साक्ष्य की प्रकृति और उद्घाटित
तथ्यों से पूरी तरह अवगत थे. उन्होंने ने भी 2007-2008 के मामलों की विवेचनाओं को
इन रिपोर्टों पर आधारित किया था. परन्तु उन प्रकटनों को जो 2007 से पहले के मामलों
का खुलासा करते थे और जिन को पहले ही हल होना दिखाया जा चुका था, को नज़रंदाज़ कर दिया गया. इस प्रकार की छांटने की नीति आतंक से जुडी
एजंसियों और यूपी पुलिस की सत्यनिष्ठा पर गंभीर सवाल पैदा करती है.
20.10 पुलिस की ईमानदारी की कमी इस बात
से भी झलकती है कि सच्चाई तक पहुँचने और एक गुट के निर्दोष लोगों को छुडवाने की
कोई कोशिश नहीं की गयी. इन में से किसी भी एजंसी
ने श्रमजीवी एक्सप्रेस विस्फोट, संकटमोचन और कैंट रेलवे
स्टेशन विस्फोटों में एक गुट के लोगों पर चलाये जा रहे मुकदमों की सम्पूर्ण
सामग्री को कोर्ट के सामने नहीं रखा. क्यों?
20.11 इन आन्तरिक रिकार्डों के अनुसार सादिक शेख और आतिफ आमीन , जो बाटला हाउस
मुठभेड़ में मारा गया था, ने श्रमजीवी एक्सप्रेस में बम रखे
थे, का उन चार व्यक्तियों जिन में तीन बंगलादेशी हैं और जो
पहले ही रेलवे पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर चार्जशीट किये जा चुके हैं, से कोई भी सम्बन्ध नहीं था. यदि सादिक शेख की बात पर यकीन किया जाये तो जब वह और उसके इंडियन मिजहिदीन
वाले साथी 2004 से 2008 के बीच एक के बाद विस्फोट कर रहे थे तो विभिन्न पुलिस
एजंसियां इन मामलों में निर्दोष और असम्बद्ध लोगों को फंसाती रही.
20.12 मैं इस न्यायालय के सामने दोहराना चाहूँगा कि मेरा इरादा किसी को दोषी ठहराने का नहीं है. परन्तु यह केवल आतंक की विवेचनाओं
की घोर त्रुटियों और अतर्विरोधों को उजागर करना है.
21. आरिफ बदर पुत्र बदुद्दीन (72); स्थायी पता: ग्राम
इस्रोली, सराए मीर, आजमगढ़, उ.प्र० ( सितम्बर, 2008 में गिरफ्तार)
21.1 सादिक शेख की तरह आरिफ बदर भी मुम्बई पुलिस द्वारा 24.09.2008 को गिरफ्तार
किया गया था. पूछताछ के दौरान उसने सभी एजंसियों के सामने इंडियन मुजाहिदीन द्वारा
2004 और 2008 के दौरान किये गए सभी बम विस्फोटों में शामिल होने की बात कबूल की
थी. उस से विभिन्न एजंसियों ने विभिन्न विभिन्न समय पर पूछताछ की थी. आन्तरिक पूछताछ रिपोर्ट से यह पता चलता है कि आरिफ एक बिजली मिस्त्री था
और उस ने अपने साथियों द्वारा रखे गए सभी बमों में टाइमर उपकरण लगाया था. अहमदाबाद
और मुम्बई पुलिस क्राईम ब्रांच द्वारा आरिफ की तैयार की गयी पूछताछ रिपोर्ट
अवलोकनीय है.
21.2 पूछताछ रिपोर्टों के अनुसार आरिफ ने उन सभी बमों के लिए टाइमर डिवाइस
बनाये थे जो उस के साथियों द्वारा 2006 में वाराणसी के संकटमोचन मंदिर, कैंट रेलवे स्टेशन और बाज़ार, मई 2007 में गोरखपुर
शहर, वारणसी, लखनऊ और फैजाबाद कचेहरी
तथा अन्य राज्यों जैसे महाराष्ट्र, दिल्ली और गुजरात में रखे
गए थे.
21.3 आरिफ ने रिकॉर्ड पर यह भी माना है कि वह एकल, समग्र
षड्यंत्र जो कि पहली बार 2003 -2004 में रचा गया था का कोर मेम्बर था और जिस के
तहत 2004 और 2008 के दौरान बम विस्फोट किये गए थे. आरिफ ने इन बम धमाकों में शामिल
सभी लोगों का विवरण भी दिया था परन्तु उस ने चार नवयुवक जिन में उबैद-उर-रहमान,
अलाम्गुर हुसैन, हिलालुद्दीन (सभी बंगलादेशी)
और नफीकुल बिस्वास- जिन्हें श्रमजीवी एक्सप्रेस बम विस्फोट में चार्जशीट किया गया
है और एक व्यक्ति तारिक काज़मी, जिसे 2007 के गोरखपुर बम
विस्फोट मामले में चार्जशीट और एक मुस्लिम मौलवी वलीउल्लाह जिसे 2006 के वाराणसी
बम विस्फोट में और चार व्यक्ति- तारिक काज़मी, खालिद मुजाहिद,
सजादुर रहमान और मोहमद अख्तर जिन्हें फैजाबाद और लखनऊ कचेहरी बम
विस्फोट में अभियुक्त बनाया गया है, का अपनी पूछताछ रिपोर्ट
में कोई भी ज़िकर नहीं किया था. यद्यपि बदर ने इस सभी विस्फोटों में अपनी भूमिका
होने का दावा किया था और वह इन बम विस्फोटों में शामिल सभी की नजदीकी से जानकारी
रखता था. फिर भी यूपी पुलिस और अन्य एजंसियों ने इस पूरी सामग्री को श्रमजीवी,
वाराणसी, गोरखपुर लखनऊ और फैजाबाद विस्फोट
मामलों का मुकदमे सुन रही अदालतों के सामने नहीं रखा. यह देखना प्रासंगिक है कि आरिफ बदर की इस स्वीकारोक्ति और खुलासों को अहमदाबाद
विस्फोटों के आतंकी मामलों और जिन में विवेचना अभी चल रही थी, में शामिल किया गया है. परन्तु वाराणसी, गोरखपुर और
कचेहरी विस्फोटों के मामले में आरिफ बदर के खुलासे को बिलकुल छुपा लिया गया. क्यों?
22. सैफुर रहमान पुत्र
अब्दुल रहमान अंसारी, निवासी बदरका, आजमगढ़(अप्रैल
2009 में गिरफ्तार)
22.1 अप्रैल 2009 इंडियन मुजाहिदीन के सदस्य सैफुर रहमान को मध्य प्रदेश पुलिस
ने गिरफ्तार किया. मैं सैफुर रहमान की यूपी पुलिस द्वारा तैयार कि गयी पूछताछ
रिपोर्ट प्रेषित कर रहा हूँ.
22.2 इस रिपोर्ट के अनुसार सैफुर रहमान ने अहमदाबाद और जयपुर जैसे बम विस्फोट
जिन में वह शामिल था, का विस्तृत
विवरण दिया है.
22.3 इस न्यायालय के लिए यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि उस ने यूपी कचेहरी विस्फोटों की साजिश तथा फैजाबाद कचेहरी में बम रखने में शामिल होने
की बात कबूली थी. इतना ही महत्वपूर्ण यह तथ्य है कि उसने चार अभियुक्तों- तारिक
काज़मी, खालिद मुजाहिद, सजादुर रहमान और
मोहमद अख्तर जिन का इन बम विस्फोटों में पहले ही चालान किया जा चुका था, का कोई भी ज़िक्र नहीं किया था. इस पूछताछ रिपोर्ट के अनुसार उपरोकित चार
व्यक्तियों का यूपी कचेहरी विस्फोटों से बिलकुल कोई भी सम्बन्ध नहीं था. वास्तव
में सैफुर रहमान द्वारा साजिश का दिया गया विवरण यूपी एटीएस द्वारा सम्बंधित
अदालतों में दिए गए विवरण से बिलकुल भिन्न है.
22.4 अलग अलग मकसद के लिए सच्चाई अलग अलग नहीं हो सकती. परन्तु जब आतंकी घटनाओं
की बात आती है तो ऐसा लगता है कि यह आन्तरिक उपयोग के लिए अलग है और कोर्ट के लिए
अलग. अदालतों में भी एक राज्य की अदालत में यह अलग है और दूसरी कोर्ट्स में यह अलग
और विरोधाभासी रूप में पेश किया जाता है. यूपी एटीएस ने सैफुर रहमान द्वारा प्रकट
किये गए तथ्यों को फैजाबाद और लखनऊ के कोर्ट विस्फोट मामलों की सुनवाई कर रही
अदालत से क्यों छुपाया? यदि सैफुर रहमान की
स्वीकारोक्ति पर विश्वास किया जाये तो खालिद मुजाहिद नाम का अभियुक्त जिस की अब
न्यायिक हिरासत में मौत हो चुकी है, का इस मामले से कोई
सम्बन्ध नहीं था.
22.5 अन्य तथाकथित इंडियन मुजाहिदीन संदिग्धियों की तरह सैफुर रहमान को एजंसियों की मन मर्ज़ी के अनुसार चुनिन्दा विस्फोटों में अभियुक्त बनाया
गया है. उस द्वारा अहमदाबाद विस्फोटों के बारे में किये गए खुलासे को कुछ एजंसियों
द्वारा सही मान लिया गया है जबकि यूपी के विस्फोटों के बारे में उसके खुलासे को
आराम से दरकिनार कर दिया गया है.
23. मोहमद सैफ, पुत्र शादाब अहमद निवासी अस्न्जरपुर आजमगढ़, यूपी (
दिल्ली पुलिस द्वारा सितम्बर 2008 में गिरफ्तार)
23.1 मोहमद सैफ की तीन अलग अलग
एजंसियों जैसे यूपी एटीएस, महाराष्ट्र एटीएस और अहमदाबाद
क्राईम ब्रांच द्वारा तैयार की गयी सभी पूछताछ रिपोर्ट भौतिक विवरण के तौर पर एक
समान हैं.
23.2 सैफुर रहमान की गिरफ्तारी के सात महीने पाहिले दिल्ली के बाटला हाउस से
मोहमद सैफ नाम का एक संदिग्ध आतंकवादी पकड़ा गया था.
23.3 सैफ ने भी फैजाबाद, लखनऊ और वाराणसी कोर्ट विस्फोटों
की साजिश का वैसा ही विवरण दिया था जैसा कि सैफ
की गिरफ्तारी के सात महीने बाद गिरफ्तार किये गए सैफुर रहमान ने दिया था.
23.4 सैफ ने 2007 के लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी कोर्ट
प्रांगण और गोरखपुर के बम विस्फोट, और वाराणसी के 2006 के और
2008 में जयपुर, अहमदाबाद और दिल्ली विस्फोटों में शामिल
होने की बात स्वीकारी थी. परन्तु सैफ के खुलासे का वाराणसी के बम विस्फोट में
अभियुक्त बनाये गए वलीउल्लाह से बिलकुल कोई भी सम्बन्ध नहीं था. इसी प्रकार सैफ ने
तारिक काज़मी जिसे गोरखपुर बम विस्फोट में तथा खालिद मुजाहिद और अन्य जिन्हें
कचेहरी विस्फोटों में अभियुक्त बनाया गया है, का बिलकुल कोई
भी ज़िकर नहीं किया था. विस्फोटों में संबध को भूल जाइये सैफ, सादिक शेख, सैफुर रहमान और आरिफ बदर ने इन मामलों
में पहले गिरफ्तार किये गए व्यक्तियों से दूर दूर तक भी जान पहचान होने की बात
नहीं कही थी.
24. मोहमद सर्वर पुत्र
मास्टर मोहमद हनीफ, निवासी ग्राम चाँदपट्टी, तहसील सांगडी, जिला आजमगढ़ (9 जनवरी, 2009 को गिरफ्तार).
24.1 मेरे पास एटीएस यूपी द्वारा आतंक के संदिग्ध व्यक्ति मोहमद सर्वर की
पूछताछ रिपोर्ट है. सर्वर को जनवरी 2009 में गिरफ्तार किया गया था.
24.2 इस पूछताछ रिपोर्ट के अनुसार सर्वर 2006 के वाराणसी विस्फोटों में शामिल
था. उस ने अपने शामिल होने के साथ साथ दूसरे व्यक्ति जैसे आतिफ आमीन, मोहमद सैफ, शादाब मलिक, आरिज़
उर्फ़ जुनैद और असदुल्लाह अख्तर ( सभी आजमगढ़ निवासी) के शामिल होने की बात भी कही
थी.
24.3 सर्वर और सैफ को कई महीनों के अन्तराल पर गिरफ्तार किया गया था. दोनों ने
2006 के वाराणसी विस्फोटों का विवरण दिया था. अधिक महतवपूर्ण बात यह है कि दोनों
ने इलाहाबाद की एक मस्जिद के इमाम वलीउल्लाह और
उस के तीन साथियों ( जिन्हें यूपी पुलिस बंगलादेशी कहती है और उन की कभी भी कोई पहचान और ठिकाने का पता नहीं चला) का कोई भी सन्दर्भ नहीं दिया था.
दूसरे शब्दों में अगर सैफ, सादिक शेख, आरिफ
बदर और सर्वर का विश्वास किया जाये तो फिर वलीउल्लाह का वाराणसी के 2006 के बम
विस्फोटों में कोई हाथ नहीं था.
24.4 वलीउल्लाह को लखनऊ की एक कोर्ट द्वारा हथियार और बारूद की बरामदगी के
मामले में 10 वर्ष की सज़ा दी जा चुकी है. वाराणसी विस्फोट और बरामदगी के दोनों
मामले आपस में जुड़े हुए हैं. अब सवाल यह पैदा होता है कि अगर वलीउल्लाह इन
विस्फोटों में शामिल नहीं था तो फिर बरामदगियां जिन के लिए उसे दस वर्ष की सज़ा
हुयी है, कहाँ तक असली थीं. पुलिस ने यह सभी अंतर्विरोधी सामग्री न तो 10 वर्ष की सज़ा देने वाली लखनऊ
की अदालत और न ही 2006 के वाराणसी के विस्फोटों के मामले की सुनवाई कर रही
गाज़ियाबाद की अदालत के सामने ही रखी. वलीउल्लाह 2006 से ही जेल में है.
25. मोहमद सलमान, पुत्र मोहमद शकील, स्थायी निवासी आजमगढ़.
25.1 इस क्रम में इन 6 गिरफ्तारियों में आखरी गिरफ्तारी मार्च 2010 में 18
वर्षीय मोहमद सलमान की थी. मेरे पास यूपी एटीएस
द्वारा सलमान की तैयार की गयी पूछताछ रिपोर्ट उपलब्ध है.
25.2 इस पूछताछ रिपोर्ट में सलमान ने 2007 के गोरखपुर विस्फोट, 2007 के कचेहरी विस्फोटों के अलावा 2008 के जयपुर और अहमदाबाद विस्फोटों
की बात भी स्वीकारी थी.
25.3 सलमान गोरखपुर और कचेहरी विस्फोटों के बारे में मोहमद सैफ, सैफुर रहमान और आरिफ बदर उर्फ़ लड्डन, जो उसकी
गिरफतारी से कई महीने पहले गिरफ्तार किये गए थे और उन से पूछताछ की गयी थी, द्वारा दिए गए विवरण की पुष्टि करता है. इन में से किसी भी संदिग्ध को पूछताछ करने वालों को दूसरे व्यक्तियों द्वारा दिए गए विवरण के बारे में जानकारी
नहीं थी.
25.4 इन सभी पूछताछ की रिपोर्टों को गोपनीय करार दे कर किसी भी अदालत के सामने
प्रस्तुत नहीं किया गया है.
26. यूपी पुलिस द्वारा
न्यायालयों को गुमराह करने का प्रयास.
26.1 यहाँ पर जबरदस्त विरोधी सामग्री के सम्मुख उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक नई
कहानी गढ़ी. अदालतों को कुछ मामलों में यूपी पुलिस ने यह बताया कि वर्ष 2006 में
वाराणसी विस्फोट और वर्ष 2007 में कचेहरी विस्फोट इंडियन मुजाहिदीन और बांग्लादेश
स्थित हुजी संगठन द्वारा मिल कर किये गए थे. यह इस लिए किया गया क्योंकि शुरू में
गिरफ्तार किये गए 9 व्यक्तियों को हुजी के सदस्य के रूप में दिखाया गया था. परन्तु
उपरांकित सभी पूछताछ रिपोर्टों में हुजी अथवा इस के सदस्यों का कोई ज़िकर नहीं है.
26.2 प्रश्न यह उठता है कि यूपी पुलिस ने पुरानी विवेचनाओं और बाद के खुलासों
में कैसे तालमेल बैठाया? अगर इन मुजाहिदीन आतंकी संदिग्ध
व्यक्तियों द्वारा हुजी अथवा उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ्तार व्यक्तिओं का कोई
भी ज़िक्र नहीं किया गया है तो यूपी पुलिस किस आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंची कि यह
सांझी कार्र्वाहियाँ थीं. इस से केवल यह ही तार्किक निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि
यह केवल पहली गलत गिरफ्तारियों को ढकने के लिए ही किया गया था ताकि दोषी पुलिस
कर्मचारियों को साक्ष्य घड़ने और निर्दोषों को फंसाने के परिणामों से बचाया जा सके.
26.3 इस परिकल्पना का बेतुकापन इस तथ्य से सामने आता है कि इस “संयुक्त हुजी-मुजाहिदीन कार्रवाही” की कहानी को कभी
भी आरोप पत्र के रूप में सम्बन्धित अदालत में पेश नहीं किया गया.
26.4 मैंने इन सात विवेचनाओं की उत्तर प्रदेश में छानबीन की है. यह जानना सम्भव
नहीं है कि इस राज्य में इस प्रकार के ऐसे कितने अन्य मामले हैं और राज्य सरकारों
ने आतंक विरोधी इकाईओं को जो खुली छूट दे रखी है जिस से वे अत्यंत गोपनीयता के
परदे में निरंकुश हो कर काम करती हैं. यह संभव है कि शायद अपराधिक-न्यायायिक
व्यवस्था को विकृत करने की कहानी इन सात मामले से आगे भी जाती है. मैंने इस से
पहले बॉम्बे हाई कोर्ट के सामने 21 निर्दोष मुस्लिम नौजवानों को आतंकी वारदातों
में जैसे मुम्बई ट्रेन विस्फोट (2006), मालेगांव विस्फोट
(2006) और पूना जर्मन बेकरी विस्फोट (2010). में फंसाने के मामले को रखा है.
26.5 यह मुद्दे बहुत गंभीर हैं जो कानूनी वैधता से आगे जाते हैं. यह केवल हमारे
राष्ट्र की सुरक्षा ही नहीं परन्तु भारतीय लोकतंत्र के विचार के लिए भी खतरा है.
इस लिए मैंने इस सामग्री को ऐसे सभी संस्थान जो कि मानवाधिकार, संवैधानिक मूल्यों और जवाबदेही को बचाने में लगे हैं के सामने सीधा रखा
है. इस प्रकार मैंने इसे इस कोर्ट के सामने जनहित याचिका के रूप में प्रस्तुत किया
है. इस में अति महत्वपूर्ण मुद्दों के शामिल होने के कारण दूसरे संवैधानिक अधिकारियों जो कि मानवाधिकारों, अल्पसंख्यकों
की सुरक्षा, पुलिस प्रशिक्षण और मीडिया निकायों को भी अवगत
कराया है. मैंने इसे पब्लिक डोमेन में भी दिया है क्योंकि यह मुद्दा गंभीर जन
महत्व का है जिसे लोकतंत्र में लोगों को जानने का अधिकार है.
27.6 मैं इस को बहुत जल्दी में कर रहा हूँ. यदि आवश्यक हो तो मुझे इसे औपचारिक
तरीके से करने की अनुमति दी जाये.
प्रार्थनाएं
मैं
इस माननीय उच्च न्यायालय के सामने निम्नलिखित प्रार्थनाएं करता हूँ:
(1) इस याचिका में अंकित संगीन वारदातों की
विवेचना में विवेचकों के व्यवहार की जाँच के लिए एक कमीशन नियुक्त किया जाये.
(2) इन सभी 7 मामलों की एनआईए (राष्ट्रीय जाँच एजंसी) द्वारा उच्च न्यायालय की
देख रेख में पुनर विवेचना करायी जाये ताकि सही अभियुक्तों को पकड़ कर दण्डित किया
जा सके.
(3) संवैधानिक मूल्यों और मौलिक अधिकारों का उलंघन करने वाले पुलिस अधिकारियों को कानून के अंतर्गत दण्डित किया जाये.
(4) इस प्रकार की फर्जी और गलत विवेचनाओं के शिकार लोगों को सीधे राहत दिलाई
जाये.
प्रार्थी
आशीष
खेतान
ई-55
आईएफएस अपार्टमेंट्स,
मयूर
विहार फेस 1,
दिल्ली-1100091
ईमेल: ashish.journo@gmail.com;
khetan@gmail.com
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