श्री दारापुरी ने आगे कहा है कि इससे पहले वर्ष 2016 में सपा सरकार ने भी 2017 के चुनाव के ठीक पहले इसी प्रकार का प्रस्ताव केन्द्रीय सरकार को भेजा था जो भाजपा की केन्द्रीय सरकार द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था. इस सम्बन्ध में यह भी स्मरण रहे कि इस से पहले वर्ष 2005 में मुलायम सिंह की सरकार ने भी 16 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित-जातियों की सूची तथा 3 अनुसूचित जातियों को अनुसूचित-जनजाति की सूची में शामिल करने का शासनादेश जारी किया था जिसे आंबेडकर महासभा तथा अन्य दलित संगठनों द्वारा न्यायालय में चुनौती देकर रद्द करवा दिया गया था। इसके बाद वर्ष 2007 में सत्ता में आने पर मायावाती ने भी 2011 में इसी प्रकार से 16 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की सूचि में शामिल करने की संस्तुति केन्द्रीय सरकार को भेजी थी. इस पर केन्द्रीय कांग्रेस सरकार ने जब इस के औचित्य के बारे में सूचनाएं मांगी तो वह इस का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सकी थी और केन्द्रीय सरकार ने उस प्रस्ताव को वापस भेज दिया था.
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि सपा और बसपा तथा अब भाजपा इन अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करा कर उन्हें अधिक आरक्षण दिलवाने का झांसा देकर केवल उनका वोट बटोरने की राजनीति करती रही हैं क्योंकि वे अच्छी तरह जानती हैं कि न तो उन्हें स्वयं इन जातियों को अनुसूचित जातियों की सूचि में शामिल करने का अधिकार है और न ही यह जातियां अनुसूचित जातियों के माप दंड (छुआछूत) को पूरा ही करती हैं। वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार किसी भी जाति को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने अथवा निकालने का अधिकार केवल पार्लियामेंट को ही है। राज्य सरकार औचित्य सहित केवल अपनी संस्तुति केन्द्रीय सरकार को भेज सकती है जो रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया तथा रष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से परामर्श के बाद पार्लियामेंट के माध्यम से ही किसी जाति को सूचि में शामिल अथवा निकाल सकती है। संविधान की धारा 341 में राष्ट्रपति ही राज्यपाल से परामर्श करके संसद द्वारा कानून पास करवा कर इस सूची में किसी जाति का प्रवेश अथवा निष्कासन कर सकता है। इस में राज्य सरकार को कोई भी शक्ति प्राप्त नहीं है।
वास्तव में अब
तक सभी राजनीतिक पार्टियाँ अपनी संस्तुति केन्द्रीय सरकार को भेज कर सारा मामला केंद्र
सरकार की झोली में डालकर यह प्रचार करती रही हैं कि हम तो आप को अनुसूचित जातियों
की सूचि में डलवाना चाहते हैं परन्तु केंद्र सरकार उसे नहीं कर रही है। अब पता चला
है कि इस बार भाजपा की केन्द्रीय सरकार भी इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए
तैयार है. परन्तु भाजपा के लिए लोकसभा में भारी बहुमत के बावजूद इसे राज्य सभा में
पारित कराना आसान नहीं होगा.
यह ज्ञातव्य है
कि यह अति पिछड़ी जातियों को केवल गुमराह करके वोट बटोरने का राजनीतिक यडयंत्र है
जिसे अब यह जातियां बहुत अच्छी तरह से समझ गयी हैं। यह उल्लेखनीय है कि यदि भाजपा
सरकार इन अति पिछड़ी जातियों को आरक्षण का वांछित लाभ देना चाहती है जोकि वार्तमान
में पिछड़ों में समृद्ध जातियों (यादव,
कुर्मी तथा जाट आदि ) के कारण नहीं मिल पा रहा है तो उसे इन जातियों की
सूची को तीन हिस्सों में बाँट कर उनके लिए 27%
के आरक्षण को उनकी आबादी के अनुपात में बाँट देना चाहिए। देश के अन्य कई
राज्य बिहार, तमिलनाडु तथा कर्नाटक आदि में यह व्यवस्था पहले से ही लागू
है। मंडल आयोग की रिपोर्ट में भी इस प्रकार की संस्तुति की गयी है।उत्तर प्रदेश में इस सम्बन्ध में 1976 में डॉ छेदी लाल साथी की अध्यक्षता में “सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग आयोग” बना था जिस ने अपनी रिपोर्ट 1977 में उत्तर प्रदेश सरकार को सौंप दी थी परन्तु उस पर आज तक कोई भी कार्रवाही नहीं की गयी। साथी आयोग ने पिछड़े वर्ग की जातियों को तीन श्रेणियों में बाँटने तथा उन्हें 29.5 % आरक्षण देने की संस्तुति की थी: "अ" श्रेणी में उन जातियों को रखा गया था जो पूर्णरूपेण भूमिहीन, गैर-दस्तकार, अकुशल श्रमिक, घरेलू सेवक हैं और हर प्रकार से ऊँची जातियों पर निर्भर हैं। इनको 17% आरक्षण देने की संस्तुति की गयी थी। "ब" श्रेणी में पिछड़े वर्ग की वह जातियां थीं, जो कृषक या दस्तकार हैं। इनको 10% आरक्षण देने की संस्तुति की गयी थी।. "स" श्रेणी में पिछड़े वर्ग की मुस्लिम जातियां थीं जिनको 2.5 % आरक्षण देने की संस्तुति की गयी थी। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों के लिए 27% आरक्षण उपलब्ध है। अतः इसे डॉ. छेदी लाल साथी आयोग की संस्तुतियों के अनुरूप पिछड़ी जातियों को तीन हिस्सों में उनकी आबादी के अनुपात में बाँटना अधिक न्यायोचित होगा। इस से अति पिछड़ी जातियों को अपने हिस्से के अंतर्गत आरक्षण मिलना संभव हो सकेगा। इन अति पिछड़ी जातियों को यह भी समझना होगा कि भाजपा सरकार इन उन्हें इस सूची से हटा कर समृद्ध जातियों यादव, कुर्मी और जाट के लिए आरक्षण बढ़ाना चाहती है और उन्हें अनुसूचित जातियों से लड़ाना चाहती है। अतः उन्हें भाजपा की इस चाल को समझाना चाहिए और उसके झांसे में न आ कर डॉ छेदी लाल साथी आयोग की संस्तुतियों के अनुसार अपना आरक्षण अलग कराने की मांग उठानी चाहिए। हाल में सुहेलदेव समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने भी यही मांग रखी थी परन्तु इसे दूसरी तरफ घुमा दिया गया है. इसी प्रकार कुछ जातियां कोल, कोरवा तथा धांगर जो वर्तमान में अनुसूचित जातियों की सूचि में हैं, उन्हें अनुसूचित जनजातियों की सूचि में होना चाहिए को इसकी की मांग करनी चाहिए. जन मंच इन जातियों की मांग का बराबर समर्थन करता रहा है. अतः इन अति पिछड़ी जातियों को उपरोक्तानुसार अपनी मांग उठानी चाहिए वरना वे भाजपा द्वारा अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल कराने के झांसे में आ कर पूर्व की भांति ठगे जायेंगे.
एस.आर.दारापुरी,
पूर्व पुलिस
महानिरीक्षक एवं संयोजक जन मंच उत्तर प्रदेश
मोब: 9415164845
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें