शनिवार, 21 अप्रैल 2018

कितने दलित मित्र हैं योगी आदित्य नाथ?- एस.आर.दारापुरी


कितने दलित मित्र हैं योगी आदित्य नाथ?
-एस.आर.दारापुरी, आई.पी.एस.(से.नि.) एवं संयोजक जन मंच उत्तर प्रदेश



हाल में 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती के अवसर पर आंबेडकर महासभा, लखनऊ के अध्यक्ष लालजी प्रसाद निर्मल द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ को महासभा के आयोजन में “दलित मित्र” का सम्मान दिया गया है जिसका दलित समाज द्वारा व्यापक विरोध तथा निंदा की जा रही है. यह ज्ञातव्य है कि आंबेडकर महासभा दलितों की एक विख्यात संस्था है जिसकी स्थापना 1991 में आंबेडकर शताब्दी समारोह के अंतर्गत की गयी थी. महासभा का मुख्य उद्देश्य बाबासाहेब की विचारधारा का प्रचार प्रसार करना तथा दलितों के हित को सुरक्षित करने तथा उसे बढ़ाने का है. वरिष्ठ आई.ए.एस., पी.सी.एस., आई.पी.एस.तथा अन्य सेवाओं के सेवारत तथा सेवा निवृत अधिकारी, बुद्धिजीवी तथा समाजसेवी महासभा के सदस्य रहे हैं और आज भी हैं. दलित वर्ग के इलावा अन्य वर्गों के लोग भी इसके सदस्य हैं. महासभा दलितों, पिछड़ों, तथा अल्पसंख्यकों के हितों को सुरक्षित रखने तथा उनको कानूनी सहायता पहुँचाने में प्रयासरत रही है. इस प्रकार महासभा उत्तर भारत में दलितों, पिछड़ों की एक प्रमुख संस्था के रूप में जानी जाती है. महासभा में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मायावती को छोड़ कर सभी मुख्य मंत्री/मंत्री आते रहे हैं. भंते प्रज्ञानंद तथा डॉ. छेदीलाल साथी इसके अध्यक्ष रहे हैं.
यह ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश  में दलितों की आबादी लगभग 4 करोड़14 लाख है जो कि उत्तर प्रदेश की कुल आबादी का 21% है तथा यह आबादी देश के किसी भी राज्य की दलित आबादी से अधिक है.  इसमें चार बार दलित मुख्य मन्त्री रही हैं. परन्तु एक बहुत चिंता की बात यह है कि उत्तर प्रदेश में दलितों पर सबसे अधिक अत्याचार होते हैं जिसका एक कारण तो दलितों की सबसे बड़ी आबादी है और दूसरे उत्तर प्रदेश की सामंती/ जातिवादी व्यवस्था है जो आज़ादी के 70 साल बाद भी बरकरार है. हाल में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा क्राईम इन इंडिया-2016 रिपोर्ट जारी की गयी है जिसके अनुसार उत्तर प्रदेश में 2016 में दलितों पर अत्याचारों की संख्या 10,426 थी जो कि देश में दलितों पर कुल घटित अपराध का 26 % है जबकि उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी 21% ही है. इससे स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार की स्थिति बहुत गंभीर है. यही स्थिति 2015 और 2014 में भी थी और वह 2017 में भी है जैसाकि समाचार पत्रों में प्रतिदिन छपने वाली घटनाओं से स्पष्ट है.
मार्च 2017 से उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी है तथा योगी आदित्य नाथ इसके मुख्य मंत्री हैं. सहारनपुर के शब्बीरपुर गाँव में 5 मई, 2017 को कुछ सवर्णों (राजपूतों) द्वारा दलितों पर किया गया हमला अति गंभीर घटना थी जिसमें दलितों के लगभग 60 घर जलाये गये थे तथा  21 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे. यह भी बताया गया है कि जिस दिन लखनऊ में योगी द्वारा शपथ ग्रहण की गयी थी उसी दिन शब्बीरपुर में राजपूतों द्वारा जुलूस निकाला गया था जिसमे “यूपी में रहना है तो योगी योगी कहना होगा” जैसे नारे लगाये गये थे जिसका मूल मकसद दलितों को यह जिताना था कि अब यूपी में हमारी सरकार आ गयी है और आपको सवर्णों  से डर कर रहना होगा. इसके बाद 5 मई को शब्बीरपुर में महराणा प्रताप जयंती के अवसर पर बिना किसी अनुमति के नंगी तलवारें तथा भाले लेकर दलित बस्ती के सामने डीजे बजा कर जुलुस निकाला गया जिसमें अन्य नारों के साथ साथ डॉ. आंबेडकर मुर्दाबाद के नारे भी लगाये गये. इस पर जब दलितों ने एतराज़ किया तो उन पर बड़ी संख्या में हमला किया गया, उनके घर जलाए गये तथा भारी संख्या में दलितों को चोटें पहुंचाई गयीं. यह उल्लेखनीय है कि दलितों पर यह हमला पुलिस की मौजूदगी में किया गया था परन्तु उसने कोई कार्रवाही  नहीं की. दलितों ने इस प्रकार के हमले की सम्भावना के बारे में पुलिस एवं प्रशासन को पहले ही अवगत कराया था परन्तु रोकथाम की कोई कार्रवाही नहीं की गयी. इससे पहले कुछ सवर्णों द्वारा प्रशासन से मिल कर दलितों को रविदास मंदिर के प्रांगण में आंबेडकर की मूर्ती लगाने नहीं दी गयी थी.  
शब्बीरपुर में दलितों द्वारा  5 मई को सवर्णों के हमले के दौरान जो भी पथराव किया गया वह केवल आत्मरक्षा की कार्रवाही  थी जिसका उन्हें कानूनी अधिकार प्राप्त था. परन्तु इसके बावजूद पुलिस द्वारा दलितों को ही हमले का दोषी मान कर 7 दलितों की गिरफ्तारी की गयी तथा उनमें से दो पर रासुका भी लगा दिया गया. सवर्णों की तरफ से केवल 7 लोगों को गिरफ्तार किया गया तथा दो पर रासुका लगाया गया. इस प्रकार पुलिस ने हमला करने वाले सामंती सवर्ण तथा हमले का शिकार हुए दलितों पर एक जैसी कार्रवाही करके दोहरा अन्याय किया. यह उल्लेखनीय है कि शब्बीरपुर के सभी दलित अभी तक जेल में हैं. इसी प्रकार जब पुलिस ने हमले के शिकार हुए दलितों के सम्बन्ध में उचित कार्रवाही  नहीं की तो भीम आर्मी के लोगों ने 9 मई को विरोध प्रदर्शन करना चाहा तो पुलिस ने बल प्रयोग करके अराजकता पैदा की जिसके  फलस्वरूप शहर में कुछ पथराव तथा पुलिस से टकराव हुआ. पुलिस ने इस सम्बन्ध में भीम आर्मी के लोगों पर उसके संस्थापक चंद्रशेखर सहित 19 मुक़दमे दर्ज कर लिए. उसके बाद भीम आर्मी के सदस्यों का दमन तथा गिरफ्तारियां शुरू की गईं. चंद्रशेखर सहित भीम आर्मी के 40 लोग गिरफ्तार किये गये जिनमें से कुछ लोग कई कई महीने जेल में रह कर रिहा हुए हैं. चंद्रशेखर को हाई कोर्ट से जमानत मिल जाने के बावजूद भी उस पर रासुका लगा दिया गया तथा वह लगभग एक साल से जेल में है जिसकी रिहाई के लिए बराबर धरना व् प्रदर्शन चल रहे हैं. इस घटना से ही स्पष्ट है कि योगी सरकार कितनी  दलित मित्र है.  
इसी प्रकार जब 2 अप्रैल को एससी/एसटी एक्ट को लेकर दलितों द्वारा देशव्यापी भारत बंद किया गया तो पुलिस द्वारा मेरठ में जानबूझ कर शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज करके अव्यवस्था पैदा की गयी जिसमें पुलिस द्वारा फायरिंग से एक नौजवान मारा गया. पुलिस ने 9000 प्रदर्शनकारियों पर केस दर्ज किये तथा अब तक 500 से अधिक गिरफ्तारियां  की जा चुकी हैं. इतना ही नहीं एक विधायक को खुले आम बेइज्ज़त करके गिरफ्तार किया गया. दलित नवयुवकों को गिरफ्तार करके कंकड़खेड़ा थाने में बेरहमी से पीटा गया. दूसरी जगह पर भी दलित नवयुवकों को बुरी तरह से पीटा गया तथा उनके हाथों में कट्टे दिखा कर गिरफ्तार किया गया. मेरठ में अभी भी अधिकतर नौजवान घरों से भगे हुए हैं. इसी प्रकार जब मुज़फ्फर नगर में कुछ असमाजिक तथा अपराधी तत्वों ने दलितों के जुलूस में घुस कर तोड़फोड़ की तो पुलिस ने उन तत्वों  को न पकड़ कर दलितों पर ही गोली चलाई जिससे एक लड़का मारा गया. इस पर पुलिस ने 7000 दलितों पर केस दर्ज किये हैं. अब तक 250 गिरफ्तारियां की जा चुकी हैं  तथा आगे भी जारी हैं. इसी प्रकार जब 2 अप्रैल को सहारनपुर में भीम आर्मी के सदस्यों ने जुलूस निकाल कर चंद्रशेखर की रिहाई के लिए प्र्त्यावेदन दिया तो 900 लड़कों पर केस दर्ज कर लिया गया. इसके इलावा उसी दिन हापुड़ तथा बुलंदशहर में भी दलितों पर बड़ी संख्या में केस दर्ज किये गये हैं तथा गिरफ्तारियां  की जा रही हैं. इसी प्रकार 2 अप्रैल को इलाहाबाद में भी 27 छात्र नेताओं पर भी गंभीर धारायों में केस दर्ज किया गया है. इन सभी स्थलों पर पुलिस चुन चुन कर दबिश दे रही है और दलित घर छोड़ कर भगे हुए हैं. ऐसा प्रतीत होता कि है योगी सरकार दलित दमन पर पूरी तरह से उतर आई है.
दलित दमन की उपरोक्त घटनाओं के इलावा पूरे उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं. इनमें उन्नाव में बलात्कार के बाद दलित लड़की का जलाया जाना, बाँदा में दलित औरत का बलात्कार तथा बलिया में एक दलित औरत को पीट पीट कर मारने जैसी घटनाएँ प्रमुख हैं. पूरे प्रदेश में दलित हिन्दुत्ववादियों तथा सामंती सवर्णों  के निशाने पर हैं परन्तु सरकार की तरफ से उन्हें कोई संरक्षण अथवा राहत नहीं मिल रही है.  इसके साथ ही दलितों को फर्जी मुठभेड़ों में मारा जा रहा है तथा पैरों एवं टांगों में गोलियां मार कर जख्मी करके जेलों में सड़ाया जा रहा है. ऐसी हालत में क्या कोई सोच सकता है कि योगी आदित्य नाथ दलितों के मित्र हैं?
इसी माह की 3 तारीख को जब दैनिक हिंदुस्तान में आंबेडकर महासभा के अध्यक्ष लालजी प्रसाद निर्मल की तरफ से यह खबर छपी कि 14 अप्रैल को आंबेडकर महासभा की तरफ से योगी आदित्य नाथ को “दलित मित्र” का सम्मान दिया जायेगा तो हम सब लोग हतप्रभ रह गए. इस पर आंबेडकर महासभा के संस्थापक सदस्य हरीश चन्द्र, आई.ए.एस.(से.नि.) ने विरोध जिताते हुए तुरंत ब्यान दिया कि आंबेडकर महासभा में किसी को भी इस प्रकार का सम्मान देने का प्रावधान नहीं है और न ही महासभा की कार्यकारिणी में इस प्रकार का कोई निर्णय ही लिया गया है. यह सम्मान पूर्णतया अवैधानिक है तथा इसे देने का निर्णय लालजी प्रसाद निर्मल का व्यक्तिगत निर्णय है, महासभा का नहीं है. अतः यह सम्मान नहीं दिया जाना चाहिए. उनका यह ब्यान 4 अप्रैल के टाइम्स आफ इंडिया में प्रकाशित भी हुआ था. इसके बाद हम लोगों ने 5 अप्रैल को महासभा के आजीवन सदस्यों  की बैठक बुलाई, इस सम्मान की वैधता तथा औचित्य पर विचार विमर्श किया तथा वर्तमान में दलित दमन तथा महासभा के सदस्यों द्वारा विरोध के परिपेक्ष्य में ऐसा सम्मान न देने का अनुरोध किया. इस पर उसने कहा कि वह इस पर पुनर्विचार करेगा परन्तु फिर उसने इस सम्बन्ध में कोई बातचीत नहीं की. इस बीच में हम लोगों ने 13 अप्रैल को मुख्यमंत्री जी को भी एक पत्र भेजा जिसमे कार्यकारिणी के सदस्यों की तरफ से यह अंकित किया गया था कि महासभा ने किसी को भी इस प्रकार का सम्मान देने का निर्णय नहीं लिया है. यह सम्मान पूर्णतया अवैधानिक है तथा लालजी प्रसाद का व्यक्तिगत निर्णय है. हम लोगों ने उक्त पत्र में मुख्य मंत्री जी से इस सम्मान को न लेने का अनुरोध भी किया था. इस सम्बन्ध में हम लोगों ने प्रेस के माद्यम से तथा मौखिक तौर पर प्रशासन को स्पष्ट कर दिया था कि यदि महासभा में उक्त सम्मान देने का प्रयास किया जाता है तो हम लोग हर संभव तरीके से इसका विरोध करेंगे. 
इसी बीच लालजी प्रसाद निर्मल ने हरीश चन्द्र तथा मेरे विरुद्ध जिला प्रशासन को लिखित शिकायत भेजी कि हम लोग 14 अप्रैल को महासभा में मुख्य मंत्री को उक्त सम्मान देने का विरोध करने वाले हैं, अतः हमारे विरुद्ध उचित कानूनी कार्रवाही की जाये. इस पर प्रशासन ने हम लोगों से पूछा तो हम लोगों ने साफ़ कह दिया कि हमें मुख्य मंत्री जी के महासभा में आने पर कोई आपत्ति नहीं है परन्तु हम लोग सम्मान देने का हर संभव तरीके से विरोध करेंगे. इस पर 14 अप्रैल को जब हम लोग महासभा में आंबेडकर जयंती में भाग लेने के लिये पहुंचे तो पुलिस ने हमें अन्दर नहीं जाने दिया तथा हरीश चन्द्र, गजोधर प्रसाद, एन.एस.चौरसिया तथा मुझे गिरफ्तार कर लिया और तीन घंटे हिरासत में रखा. इस बीच लालजी प्रसाद निर्मल ने महासभा में मुख्य मन्त्री जी को “दलित मित्र” का सम्मान दे डाला. इतना ही नहीं पुलिस ने महासभा के अन्य कई सदस्यों को भी महासभा में प्रवेश नहीं करने दिया. इस प्रकार लालजी प्रसाद निर्मल ने महासभा के सभी सदस्यों तथा दलित समाज के विरोध को दरकिनार करके निहित स्वार्थ के लिए योगी आदित्य नाथ को “दलित मित्र” का सम्मान दिया है जो न केवल दलित समाज बल्कि डॉ. आंबेडकर का भी अपमान है.
अब यह पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है कि महासभा के स्वयम्भू अध्यक्ष लालजी प्रसाद निर्मल योगी आदित्य नाथ को दलित सम्मान देने के लिए इतने लालायित क्यों थे. सम्मान देने के चार दिन बाद 18 अप्रैल को ही मुख्य मंत्री द्वारा लालजी प्रसाद निर्मल को उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त-विकास निगम के अध्यक्ष के रूप में  राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया गया है. उसने यह पद पूरे दलित समाज के साथ गद्दारी करके तथा महासभा को बेच कर प्राप्त किया है जिसका उत्तर उन्हें दलित समाज को देना होगा. इसके साथ ही हम लोग जो महासभा की कार्यकारिणी के आजीवन सदस्य हैं, ने यह निर्णय लिया है कि हम महासभा की आम सभा बुलाकर लालजी प्रसाद निर्मल द्वारा पूरे समाज के साथ की गयी गद्दारी के लिए उसे महासभा के अध्यक्ष के पद से हटाने की कार्यवाही करेंगें. यह भी उल्लेखनीय है कि लालजी प्रसाद निर्मल ने महासभा के अध्यक्ष  का पद महासभा की फर्जी आम सभा दिखा कर तथा फर्जी अभिलेख तैयार करके प्राप्त किया है जिसके लिए उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाही भी की जायेगी.  

     

गुरुवार, 19 अप्रैल 2018



भाजपा का उत्तर प्रदेश की 17 अति-पिछड़ी जातियों को अनुसूचित-जातियों की सूची में शामिल कराने का प्रयास असंवैधानिक - दारापुरी  
 “भाजपा का उत्तर प्रदेश की 17 अति-पिछड़ी जातियों को अनुसूचित-जातियों की सूची में शामिल कराने का प्रयास असंवैधानिक” - यह बात एस आर दारापुरी, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एवं संयोजक, जन मंच उत्तर प्रदेश ने प्रेस को जारी ब्यान में कही है. उन्होंने कहा है कि आज एक समाचार पत्र के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि  उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने उत्तर प्रदेश की 17 अति पिछड़ी जातियां जिनमें निषाद, बिन्द, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, प्रजापति, राजभर, कहार, कुम्हार, धीमर, मांझी, तुरहा तथा गौड़ आदि शामिल हैं, को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर केन्द्रीय सरकार को भेजने का निर्णय लिया है. यह उल्लेखनीय है कि भाजपा सरकार का यह कदम इन जातियों को कोई वास्तविक लाभ न पहुंचा कर केवल झांसा देकर आगामी चुनाव में उनका वोट बटोरने की चाल है. उन्होंने आगे कहा है कि इन जातियों को वास्तविक आरक्षण तभी मिल सकता है जब इन्हें ओबीसी के 27% आरक्षण कोटे में से इनकी आबादी के अनुपात में अलग कोटा मिले.
श्री दारापुरी ने आगे कहा है कि इससे पहले वर्ष 2016 में सपा सरकार ने भी 2017 के चुनाव के ठीक पहले इसी प्रकार का प्रस्ताव केन्द्रीय सरकार को भेजा था जो भाजपा की केन्द्रीय सरकार द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था.  इस सम्बन्ध में यह भी स्मरण रहे कि इस से पहले वर्ष 2005 में मुलायम सिंह की सरकार ने भी 16 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित-जातियों की सूची तथा 3 अनुसूचित जातियों को अनुसूचित-जनजाति की सूची में शामिल करने का शासनादेश जारी किया था जिसे आंबेडकर महासभा तथा अन्य दलित संगठनों द्वारा न्यायालय में चुनौती देकर रद्द करवा दिया गया था। इसके बाद वर्ष 2007 में सत्ता में आने पर मायावाती ने भी 2011 में इसी प्रकार से 16 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की सूचि में शामिल करने की संस्तुति केन्द्रीय सरकार को भेजी थी. इस पर केन्द्रीय कांग्रेस सरकार ने जब इस के औचित्य के बारे में सूचनाएं मांगी तो वह इस का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सकी थी और केन्द्रीय सरकार ने उस प्रस्ताव को वापस भेज दिया था.
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि सपा और बसपा तथा अब भाजपा इन अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करा कर उन्हें अधिक आरक्षण दिलवाने का झांसा देकर केवल उनका वोट बटोरने की राजनीति करती रही हैं क्योंकि वे अच्छी तरह जानती हैं कि न तो उन्हें स्वयं इन जातियों को अनुसूचित जातियों की सूचि में शामिल करने का अधिकार है और न ही यह जातियां अनुसूचित जातियों के माप दंड (छुआछूत) को पूरा ही करती हैं। वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार किसी भी जाति को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने अथवा निकालने का अधिकार केवल पार्लियामेंट को ही है। राज्य सरकार औचित्य सहित केवल अपनी संस्तुति केन्द्रीय सरकार को भेज सकती है जो रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया तथा रष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से परामर्श के बाद पार्लियामेंट के माध्यम से ही किसी जाति को सूचि में शामिल अथवा निकाल सकती है। संविधान की धारा 341 में राष्ट्रपति ही राज्यपाल से परामर्श करके संसद द्वारा कानून पास करवा कर इस सूची में किसी जाति का प्रवेश अथवा निष्कासन कर सकता है। इस में राज्य सरकार को कोई भी शक्ति प्राप्त नहीं है।
वास्तव में अब तक सभी राजनीतिक पार्टियाँ अपनी संस्तुति केन्द्रीय सरकार को भेज कर सारा मामला केंद्र सरकार की झोली में डालकर यह प्रचार करती रही हैं कि हम तो आप को अनुसूचित जातियों की सूचि में डलवाना चाहते हैं परन्तु केंद्र सरकार उसे नहीं कर रही है। अब पता चला है कि इस बार भाजपा की केन्द्रीय सरकार भी इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए तैयार है. परन्तु भाजपा के लिए लोकसभा में भारी बहुमत के बावजूद इसे राज्य सभा में पारित कराना आसान नहीं होगा.
यह ज्ञातव्य है कि यह अति पिछड़ी जातियों को केवल गुमराह करके वोट बटोरने का राजनीतिक यडयंत्र है जिसे अब यह जातियां बहुत अच्छी तरह से समझ गयी हैं। यह उल्लेखनीय है कि यदि भाजपा सरकार इन अति पिछड़ी जातियों को आरक्षण का वांछित लाभ देना चाहती है जोकि वार्तमान में पिछड़ों में समृद्ध जातियों (यादव, कुर्मी तथा जाट आदि ) के कारण नहीं मिल पा रहा है तो उसे इन जातियों की सूची को तीन हिस्सों में बाँट कर उनके लिए 27% के आरक्षण को उनकी आबादी के अनुपात में बाँट देना चाहिए। देश के अन्य कई राज्य बिहार, तमिलनाडु तथा कर्नाटक आदि में यह व्यवस्था पहले से ही लागू है। मंडल आयोग की रिपोर्ट में भी इस प्रकार की संस्तुति की गयी है।
उत्तर प्रदेश में इस सम्बन्ध में 1976 में डॉ छेदी लाल साथी की अध्यक्षता में “सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग आयोग” बना था जिस ने अपनी रिपोर्ट 1977 में उत्तर प्रदेश सरकार को सौंप दी थी परन्तु उस पर आज तक कोई भी कार्रवाही नहीं की गयी। साथी आयोग ने पिछड़े वर्ग की जातियों को तीन श्रेणियों में बाँटने तथा उन्हें 29.5 % आरक्षण देने की संस्तुति की थी: "अ" श्रेणी में उन जातियों को रखा गया था जो पूर्णरूपेण भूमिहीन, गैर-दस्तकार, अकुशल श्रमिक, घरेलू सेवक हैं और हर प्रकार से ऊँची जातियों पर निर्भर हैं। इनको 17% आरक्षण देने की संस्तुति की गयी थी। "ब" श्रेणी में पिछड़े वर्ग की वह जातियां थीं, जो कृषक या दस्तकार हैं। इनको 10% आरक्षण देने की संस्तुति की गयी थी।. "स" श्रेणी में पिछड़े वर्ग की मुस्लिम जातियां थीं जिनको 2.5 % आरक्षण देने की संस्तुति की गयी थी। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों के लिए 27% आरक्षण उपलब्ध है। अतः इसे डॉ. छेदी लाल साथी आयोग की संस्तुतियों के अनुरूप पिछड़ी जातियों को तीन हिस्सों में उनकी आबादी के अनुपात में बाँटना अधिक न्यायोचित होगा। इस से अति पिछड़ी जातियों को अपने हिस्से के अंतर्गत आरक्षण मिलना संभव हो सकेगा। इन अति पिछड़ी जातियों को यह भी समझना होगा कि भाजपा सरकार इन उन्हें इस सूची से हटा कर समृद्ध जातियों यादव, कुर्मी और जाट के लिए आरक्षण बढ़ाना चाहती है और उन्हें अनुसूचित जातियों से लड़ाना चाहती है। अतः उन्हें भाजपा की इस चाल को समझाना चाहिए और उसके झांसे में न आ कर डॉ छेदी लाल साथी आयोग की संस्तुतियों के अनुसार अपना आरक्षण अलग कराने की मांग उठानी चाहिए। हाल में सुहेलदेव समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने भी यही मांग रखी थी परन्तु इसे दूसरी तरफ घुमा दिया गया है. इसी प्रकार कुछ जातियां कोल, कोरवा तथा धांगर जो वर्तमान में अनुसूचित जातियों की सूचि में हैं, उन्हें अनुसूचित जनजातियों की सूचि में होना चाहिए को इसकी  की मांग करनी चाहिए.  जन मंच इन जातियों की मांग का बराबर समर्थन करता रहा है. अतः इन अति पिछड़ी जातियों को उपरोक्तानुसार अपनी मांग उठानी चाहिए वरना वे भाजपा द्वारा अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल कराने के झांसे में आ कर पूर्व की भांति ठगे जायेंगे.
एस.आर.दारापुरी,
पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एवं संयोजक जन मंच उत्तर प्रदेश
मोब: 9415164845


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  क्या डेटा कोटा के विभाजन को उचित ठहराता है ? हाल ही में हुई बहसों में सवाल उठाया गया है कि क्या अनुसूचित जाति के उपसमूहों में सकारात्म...