आइये हम फ़्रांस
की जनता से कुछ सीखें!
एस.आर. दारापुरी,
आई.पी.एस.(से.नि.) एवं राष्ट्रीय
प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
दो दिन पहले
फ़्रांस में 14 लाख लोगों ने चार्ली हेबड़ो
के जनसंहार के विरोध में जिस तरह शांति पूर्ण ढंग से प्रदर्शन किया है वह हम सब के
लिए एक अनुकरणीय है. इस विरोध प्रदर्शन में न तो कोई मस्जिद तोड़ी गयी और न ही किसी
मुसलमान पर हमला किया गया. सभी लोगों ने अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा और धार्मिक
कट्टर पंथ के विरुद्ध एकजुट होकर लड़ने का आह्वान किया.
इस के विपरीत जब
हम अपने देश में ऐसे मौकों पर हुयी प्रतिक्रिया पर नज़र डालते हैं तो हमारा सिर
सारी दुनिया के सामने शर्म से झुक जाता है. ऐसे मौकों पर हमारे राजनेताओं द्वारा
दी गयी प्रतिक्रिया भी उतनी ही शर्मसार करने वाली थी. 1984 में इंदिरा गाँधी की उस
के ही सिक्ख सुरक्षा गार्डों द्वारा हत्या किये जाने पर पूरी सिक्ख कौम को दोषी
मान कर अकेले दिल्ली में ही 2000 सिखों की हत्या कर दी गयी थी जिस में तत्कालीन
सत्ताधारी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की मुख्य भूमिका थी जिस के लिए आज तक
न तो किसी नेता को सजा मिली और न ही कांग्रेस पार्टी ने कोई खेद ही व्यक्त किया. इस के विपरीत
उस साम्प्रदायिक हिंसा को तत्कालीन प्रधान
मंत्री राजीव गाँधी ने यह कह कर उचित ठहराया था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो
ज़मींन में कम्पन ज़रूर होती है. इस के साथ ही कांग्रेस ने बड़ी बेशर्मी से इंदिरा
गाँधी की लाश को हफ़्तों दूरदर्शन पर दिखा
कर जनता की सहानुभूति बटोरी थी और चुनाव में अभूतपूर्व बहुमत प्राप्त किया
था.
इसी तरह की
अमानवीय प्रतिक्रिया गोधरा काण्ड के बाद
सामने आई थी. इस में दो हज़ार से ज्यादा निर्दोष औरतों, बच्चों और पुरुषों
का कत्ले आम किया गया था जिस के लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार व्यक्ति को न तो किसी
तरह से दण्डित किया गया और न ही उसे उस के पद से हटाया गया. इस के विपरीत वह
व्यक्ति अब देश का प्रधान मंत्री बन गया है. उस ने भी गुजरात में मुसलामानों के
नरसंहार को क्रिया की प्रतिक्रिया कह कर उचित ठहराया था. इस पर अब भारत रत्न
प्राप्त तत्कालीन प्रधान मंत्री ने केवल राज धर्म न निभाने की बात कह कर इतिश्री
कर ली थी.
इसी तरह जब 1992
में राम मंदिर के नाम पर बाबरी मस्जिद गिरा दी गयी थी जो कि स्वतंत्र भारत में सब
से पहली और सब से बड़ी आतंकवादी घटना थी और हमारे देश की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सब से
बड़ा धब्बा था जिस से पूरी दुनियां में भारत की नाक कटी थी. इस की प्रतिक्रिया में
बांग्लादेश और पाकिस्तान में काफी हिन्दू मंदिर गिरा दिए गए थे. इस के बाद पूरे
देश में साम्प्रदायिक हिंसा भड़का कर हज़ारों निर्दोषों को मार डाला गया था. बाबरी
मस्जिद के विद्ध्वंस के बाद ही हमारे देश में तथाकथित आतंकवादी घटनाओं की शुरुआत
हुयी थी जो कि आज तक चल रही है.
हमारे देश में
आये दिन दलितों, ईसाईयों और मुसलामानों के विरुद्ध होने वाली हिंसा हमारे देश की
धर्मनिरपेक्ष छवि को हर रोज़ दुनिया की नज़रों में धूमिल करती है. सब से बड़ी चिंता
और शर्म की बात यह है कि हमारे देश की सरकार दोषियों के विरुद्ध कोई कार्रवाही
नहीं करती और उलटे जाति एवं सम्प्रदाय के नाम पर उन्हें संरक्षण देती है. हमारा
प्रशासन और यहाँ तक कि न्यायपालिका भी साम्प्रदायिक मानसिकता से बुरी तरह से
ग्रस्त दिखाई देती है.
फ़्रांस की उदाहरण
से हम यह भी सीख सकते हैं कि सरकार और जनता द्वारा वहां पर भारी संख्या में बसे
मुसलामानों को पूर्ण संरक्षण दिया गया. वहां पर न तो उन के विरुद्ध किसी प्रकार की
हिंसा हुयी और न ही हमारे देश की तरह कोई मस्जिद ही गिराई गयी. इस के विपरीत वहां
पर बसे मुसलामानों ने उक्त प्रदर्शन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. काश हमारे देश में
भी धर्म के ठेकेदारों में इस प्रकार की संवेदना का थोड़ा बहुत संचार हो पाता. वैसे तो हम सारी दुनिया को अहिंसा का
पाठ पढ़ाने की शेखी बघारते नहीं थकते परन्तु हम अपने देश में अपने ही देशवासियों पर
क्रूरतम और निकृष्ट हिंसा करते हैं. अतः यह अवसर है जब हम फ़्रांस में लोगों द्वारा
व्यक्त की गयी प्रतिक्रिया से कुछ सबक सीख सकते हैं और अपने देश की धर्म
निरपेक्षता की छवि पुनर स्थापित कर सकते हैं.
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