डाक्टर अम्बेडकर का दलितों के आर्थिक सशक्तिकरण का सपना अधूरा
-दिनकर कपूर, प्रदेश महासचिव, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
दीक्षा दिवस (14 अक्तूबर) पर विशेष
14 अक्टूबर 1956 को डॉक्टर अंबेडकर ने हिंदू धर्म में मौजूद छुआछूत, जातीय और वर्णीय विभाजन के कारण नागपुर में धम्म परिवर्तन कर बौद्ध धर्म को ग्रहण किया था। इस दिन का महत्व उनके मानने वालों में उसी तरह है जैसे 14 अप्रैल उनके जन्म दिवस और 6 दिसम्बर उनके परिनिर्वाण दिवस का है। कुछ लोग इसे विजयादशमी यानी दशहरा वाले दिन भी मनाते हैं क्योंकि 1956 में इसी दिन दशहरा का दिन पड़ा। डॉक्टर अंबेडकर ने उससे से पहले कहा था कि वह हिंदू धर्म में पैदा हुए यह उनके वश में नहीं था लेकिन उनकी मृत्यु हिंदू धर्म में नहीं होगी।
डाक्टर अम्बेडकर का पूरा जीवन शोषित, उत्पीड़ित और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए संघर्ष करने में व्यतीत हुआ। वह चाहते थे कि यह तबके भारत में नागरिक अधिकारों को पा सकें और सम्मानजनक जीवन जी सकें। इसीलिए उन्होंने आरक्षण की दोहरी नीति पर काम किया। पहला सामाजिक सहभागिता दूसरा आर्थिक सशक्तिकरण। सामाजिक सहभागिता में राजनीति, नौकरी और शिक्षा में आरक्षण, सम्मानजनक जीवन जैसे अधिकार शामिल रहे और आर्थिक सशक्तिकरण में बजट में एससी-एसटी का हिस्सा, जमीन का अधिकार, रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य के सवाल शामिल रहे। आरक्षण से दलितों की सत्ता संचालन में कुछ भागीदारी हुई है पर आर्थिक सशक्तिकरण का सवाल अभी भी अधूरा है।
2011 की जनगणना के अनुसार देश में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 20 करोड़ है। जिसमें से मात्र 3.95 प्रतिशत दलित परिवारों के पास नौकरी है जिसमें 2.47 प्रतिशत परिवार निजी क्षेत्र में रोजगार करते हैं। 83 प्रतिशत दलित परिवार 5000 से कम आमदनी पर अपनी आजीविका को चलाते हैं। 11.74 प्रतिशत परिवार 5000 से 10000 के बीच में अपनी जीविका को चलाते हैं। 4.67 प्रतिशत परिवार 10,000 से ज्यादा कमाते हैं और 3.50 प्रतिशत परिवार ही 50,000 से ज्यादा की आमदनी पर अपनी जीविका चलाते हैं। यदि हम देखें तो दलित परिवारों में 42 प्रतिशत भूमिहीन और आदिवासियों में 35.30 प्रतिशत भूमिहीन परिवार हैं। 94 प्रतिशत दलित और 92 प्रतिशत आदिवासी मजदूरी व अन्य पेशों से अपनी जीविका चलाते हैं। दलित परिवारों के पास 18.5 प्रतिशत असिंचित, 17.41 प्रतिशत सिंचित और 6.98 प्रतिशत अन्य भूमि है। दलितों के विकास के लिए आजादी से पहले से ही सरकार के बजट में विशेष उपबंध किए गए थे। इसके बावजूद भी विकास का सवाल हल नहीं हुआ है।
इस वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा लाए एससी सब प्लान को देखें तो इस सब प्लान के बजट का बड़ा भाग कार्पोरेट मुनाफे के लिए खर्च किया गया है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत सरकार ने एससी सब प्लान बजट में 1,65,492.72 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया है जो पिछले वित्तीय वर्ष से 7,345 करोड़ रुपए ज्यादा है। बढ़ती हुई महंगाई को देखते हुए यह वृद्धि ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। इसमें भी केंद्र सरकार ने काफी पैसा कॉर्पोरेट घरानों के लिए आवंटित किया है। अदानी द्वारा चलाए जा रहे जल जीवन मिशन में 15,435 करोड़ रुपए, अदानी के ही सोलर पावर ग्रिड में 895 करोड़ रूपया, सेमी कंडक्टर निर्माण और उसके डेवलपमेंट में 573 करोड़ रूपया, लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम में 514 करोड़ रूपया, टेलीकम्युनिकेशन 1,585 करोड़, यूरिया सब्सिडी में 10,510.98 करोड़ व न्यूट्रीएंट बेस्ड सब्सिडी में 3,844.70 करोड़ रूपया का आवंटन किया गया है।
वहीं दूसरी तरफ यदि देखें तो दलितों के कल्याण की जो योजनाएं चल रही थीं उनमें भारी कटौती की गई है। कृषि और किसान वेलफेयर के नाम पर जो बजट आवंटित किया गया है उसमें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में करीब 200 करोड़ रुपए की कटौती की गई है। नेचुरल फार्मिंग में 10 करोड़ रूपया, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में 300 करोड़ रूपया, देश में 10,000 किसानों के फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (एफपीओ) में 80 करोड़ रूपया, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में 50 करोड़ रूपया, मॉडिफाइड इंटरेस्ट सब्वेंशन स्कीम केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) में 500 करोड़ रूपए की कटौती की गई है।
खाद्य व सार्वजनिक वितरण मंत्रालय का बजट जहां 2023-24 में 19,156.04 करोड़ था वहीं इस वित्तीय वर्ष में इसे घटाकर 18,742.80 करोड़ रूपए कर दिया गया है। दलितों के देशभर में किए जाने वाले सांस्कृतिक समारोह के बजट में 20 करोड़ रुपए की कटौती की गई है। प्रधानमंत्री उत्तर पूर्व क्षेत्र के विकास के लिए पहल में 10 करोड़ रूपए की बजट कटौती हुई है। जहां यह पहले 200 करोड़ था वहीं इस बार 190 करोड़ है। इस क्षेत्र के लिए स्पेशल विकास योजना में भी 10 करोड़ की कटौती हुई है।
यूजीसी के अनुसूचित जाति छात्रों के बजट में 679.46 करोड़ की भारी कटौती की गई है। आईआईटी में अध्ययनरत दलित छात्रों पर खर्च किए जाने वाले बजट में 60 करोड़ रुपए कम किए गए हैं। देश के गरीबों का आयुष्मान भारत (पीएम जय योजना) से इलाज कराने का बड़ा दावा करने वाले प्रधानमंत्री मोदी के बजट में दलितों पर इसमें आने वाले खर्च में बेहद मामूली महज 37 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई है। जो इस वर्ष की 70 वर्ष से ऊपर के सभी वृद्धजनों को इसमें शामिल करने की गई घोषणा की तुलना में और भी कम हो जाती है।
अनुसूचित जाति के श्रमिकों और रोजगार के लिए जो बजट दिया गया है वह भी बहुत कम है। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के डाटा निर्मित करने के बजट में 23 करोड़ रुपए की कटौती की गई है। बड़े जोर शोर से शुरू की गई प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना में 30 करोड़ की कटौती की गई है और प्रधानमंत्री कर्मयोगी मानधन योजना में तो इस वर्ष कोई बजट ही आवंटित नहीं किया गया है। आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना जिसे कुछ दिनों पहले सरकार ने बड़े प्रोपेगैंडा के साथ प्रारंभ किया था में 2023-24 में आवंटित 384.24 करोड़ रुपए को घटाकर 24.90 करोड़ रुपए कर दिया गया है। एमएसएमई का बजट जो 2022-23 में 4,534.58 करोड़ था, 2023-24 में 3,755.01 करोड़ और इस बार 3,630.30 करोड़ रुपए कर दिया गया है। इमरजेंसी क्रेडिट लोन जो छोटे और लघु उद्योग के लिए लोग लेते हैं उसमें 800 करोड़ रुपए की कमी इस सरकार ने की है।
सोशल असिस्टेंटस का जो प्रोग्राम था उसका एक भी पैसा पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में बढ़ाया नहीं गया है। वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, विकलांग पेंशन में जो बजट 2023-24 में 1,735.37 करोड़ था वही इस बार भी आवंटित किया गया है। मनरेगा के बजट में 2,250 करोड़ रुपए की कटौती की गई है वर्ष 2023-24 में दलितों के लिए मनरेगा में 13,250 करोड़ रुपए आवंटित किया गया था जो इस बार 11,000 करोड़ रूपया है। प्रधानमंत्री आवास योजना की बड़ी चर्चा होती है परंतु इसमें भी सरकार ने 700 करोड़ रुपए घटाने का काम किया है। पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में 10 करोड़ रूपया की कमी और प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप में कोई भी बजट वृद्धि नहीं की गई है।
प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना (पीएमअजय) में 100 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई है जो बेहद कम है। सामर्थ्य योजना जिसमें शक्ति सदन, स्वाधार, उज्ज्वला, विधवा गृह, कामकाजी महिला छात्रावास, उनके बच्चों की देखभाल के लिए पालना गृह, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना उसका बजट 297.52 करोड़ रूपए पिछले बजट के बराबर ही रखा गया है। दलित लड़कियों के छात्रावास के लिए महज 20 लाख रुपए आवंटित किए गए हैं।
उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि मोदी सरकार की मंशा दलितों के विकास और उनके उत्थान की नहीं है। यह भी स्पष्ट है कि यदि दलितों के सशक्तिकरण की दिशा में काम नहीं हुआ तो उनकी सामाजिक सहभागिता भी सम्भव नहीं होगी। आगरा में दिए अपने अंतिम भाषण में डाक्टर अम्बेडकर ने कहा था कि मैं भूमिहीनों की दुख तकलीफों को नजरन्दाज नहीं कर पा रहा हूँ। उनकी तबाहियों का मुख्य कारण उनका भूमिहीन होना है। इसलिए वे अत्याचार और अपमान के शिकार होते रहते हैं और वे अपना उत्थान नहीं कर पाते। मैं इसके लिये संघर्ष करूंगा। डॉक्टर अंबेडकर का यह संकल्प आज भी प्रासंगिक है जिसे पूरा करना दलित राजनीति का लक्ष्य होना चाहिए।
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