डा. अंबेडकर
का पटना में ऐतिहासिक भाषण
(5 नवंबर, 1951 को चंदापुरी के निमंत्रण पर डा. अंबेडकर पटना गए थे तथा वहाँ उन्होंने शोषित जन संघ व पिछड़ा वर्ग संघ के कार्यकर्ताओं की संयुक्त बैठक को संबोधित किया था। यह ज्ञातव्य है कि 1951 में हिन्दू कोड बिल तथा कुछ अन्य मुद्दों को लेकर डा. अंबेडकर ने मंत्री पद दे त्याग पत्र दे दिया था। उस समय चंदापुरी जी ने उन्हें पटना बुला कर आश्वस्त किया था कि पिछड़ा वर्ग के लोग भी उनके साथ हैं और उन्हें दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों को साथ लेकर राजनीति में आगे बढ़ना चाहिए। इससे डा. अंबेडकर बहुत प्रभावित हुए थे और उन्होंने दलितों और पिछड़ों को साथ लेकर राजनीति को आगे बढ़ाने का निश्चय किया । उनका यह भाषण दलितों और पिछड़ों की राजनीतिक एकता बढ़ाने के लिए एक ऐतिहासिक संदेश है जिस पर इन वर्गों को गंभीरता से विचार करना चाहिए और जाति की राजनीति से बाहर निकाल कर दलितों एवं पिछड़ों के मुद्दों की राजनीति करनी चाहिए. क्योंकि जाति और संप्रदाय की राजनीति ने ही आरएसएस/भाजपा की हिन्दुत्व की राजनीति को मजबूत किया है - एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट)
डा. अंबेडकर ने 5 नवंबर, 1951 को बिहार की राजधानी पटना के अंजुमन इस्लामिया हाल में शोषित जन संघ व पिछड़ा वर्ग संघ के कार्यकर्ताओं की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए कहा था कि अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों को संगठित हो कर उस सामाजिक व्यवस्था का समूल नाश कर देना चाहिए जो सदियों से उन पर अत्याचार करती आई है। डा. अंबेडकर बिहार के युवा सामाजिक नेता रामलखन चंदापुरी के निमंत्रण पर पटना आए थे।
पटना से प्रकाशित “द इंडियन नेशन” नामक अंग्रेजी दैनिक ने 6 नवंबर, 1951 के अपने अंक में अंबेडकर के सम्बोधन पर तीन कालम की रपट छापी। डा. अंबेडकर के चित्र सहित प्रकाशित इस रपट के अनुसार अंबेडकर ने सवर्णों को चेतावनी देते हुए कहा कि उन्हें जान लेना चाहिए कि समय बदल रहा है और उन्हें भी बदलना होगा। रपट में अंबेडकर को देश का पूर्व विधि मंत्री और अनुसूचित जातियों का नेता बताया गया है। रपट के अनुसार, अम्बेडकर ने कहा, “ देश की सरकार मनु के नियमों के अनुरूप अनुसूचित जातियों के सदस्यों को उच्च पदों पर नहीं पहुँचने दे रही है। देश के ग्यारह प्रांतों में से एक भी मुख्यमंत्री डिप्रेस्ड क्लासेस का नहीं है। नौकरशाही में उच्च स्तर के पद सवर्णों के लिए आरक्षित हैं जबकि चपरासियों और अन्य निम्न पदों पर अनुसूचित जातियों के सदस्यों की बहुतायत है।“
उन्होंने कहा, “अनुसूचित जातियां अब अधीनता और अपमान सहने को तैयार नहीं हैं। राजनैतिक स्वतंत्रता से उनकी स्थिति में कोई फर्क नहीं आया है। अनुसूचित जातियों और सामाजिक अन्याय के शिकार अन्य वर्गों को अपनी ताकत का एहसास होना चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि वे कुल मिलाकर देश की आबादी का 90 प्रतिशत हैं और इतनी बड़ी जनसंख्या वाले लोग भला क्यों किसी की गुलामी सहेंगे”
अंबेडकर ने कहा, “ मत देने का अधिकार बहुत कीमती है और अनुसूचित जातियों को इसका बड़ी सावधानी से प्रयोग करना चाहिए। उन्हें यह तय करना होगा कि वे किसे मत दें-उनके साथ अन्याय करने वालों को, उन्हें जीवन की मूलभूत जरूरतों से वंचित करने वालों को या फिर उन्हें जो उनके हालात बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं।“
रपट अंबेडकर को उद्धत करती है कि उनकी पार्टी को मारवाड़ी सेठों से पैसा नहीं मिलता। उन्होंने कहा, “मैं खुश हूँ कि किसी मारवाड़ी ने कभी मेरी मदद नहीं की क्योंकि मारवाड़ी बिना मतलब के किसी की मदद नहीं करता और मैं उनका मतलब पूरा करने की स्थिति में नहीं हूँ।“
रपट के अनुसार डा. अंबेडकर ने कहा, “उनका हमेशा से यह मानना रहा है कि अगर कोई अछूत कभी अपनी सरकार बना पाए तो फिर वहाँ से उन्हें कोई हिला नहीं सकेगा। अगर आज तक वे अपनी सरकार नहीं बना पाए हैं तो इसका कारण है कि उनमें से कुछ ने ब्राह्मणों से हाथ मिल लिया है और वे अपने ही अछूत साथियों को नीची निगाह से देखने लगे हैं। परंतु अब उनके बीच के विभेद समाप्त हो रहे हैं और वे एक मंच पर आ रहे हैं। यह बहुत अच्छा है। इसे देख कर लगता है कि अनुसूचित जातियों के दुख भरे दिनों का अंत होने वाला है और एक सुनहरा भविष्य उनका इंतजार कर रहा है।“
(रपट के अनुसार अंबेडकर के भाषण के दौरान उपस्थित लोगों ने बीच-बीच में जोरदार तालियाँ बजाईं।
साभार: पिछड़ा वर्ग संदेश के अगस्त, 2016 अंक से
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