राबर्टसगंज लोकसभा
क्षेत्र से आल इणिडया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के प्रत्याशी उ प्र पुलिस के
पूर्व आर्इजी आर्इपीएस एस आर दारापुरी(सरवण राम दारापुरी) से दैनिक 'भवदीय प्रभात' के प्रबंध सम्पादक अवनिंद्र ठाकुर की मार्च, 2014 में बातचीत।:
प्रश्न: दारापुरी जी आप आईपीएस कब बने?
उत्तर: मैं 1972 में आईपीएस बना।
प्रश्न: दारापुरी जी आप आईपीएस कब बने?
उत्तर: मैं 1972 में आईपीएस बना।
प्रश्न: आप का रुझान
नौकरी के दौरान भी सामाजिक बदलाव की तरफ रहा है। आप अपने जीवन के बारे में बताएं?
उत्तर: मैं एक गरीब दलित परिवार में पैदा हुआ और मैंने गाँव में छुआछूत और उत्पीड़न को देखा है। मैंने आम लोगों के प्रति पुलिस और प्रशासन का व्यवहार भी देखा। मेरे मन में पढ़ लिख कर इस व्यवस्था को बदलने की लगन थी। इसीलिए मैंने बहुत मेहनत से पढ़ार्इ की और आर्इपीएस में आया। पुलिस की नौकरी के दौरान मैं ने हरेक व्यक्ति को कानून के अंतर्गत न्याय दिलाने का प्रयास किया। अपने सरकारी काम के साथ-साथ मैं सामाजिक बदलाव कीमुहिम से भी बराबर जुड़ा रहा। 2003 में सेवानिवृत्त होने के बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर मैं जनहित के मुद्दों जैसे सूचना का अधिकार, भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और मानवाधिकार आदि पर काम करता रहा हूँ। वर्तमान में पीयूसीएल(उ.प्र.) का उपाध्यक्ष और आंबेडकर महासभा का पदाधिकारी भी हूँ।
प्रश्न: जो लोग पुलिस या नौकरशाही में रहते हैं आम तौर पर उनका रुझान कांग्रेस या भाजपा जैसी सत्ताधारी पार्टियों की तरफ दिखता है लेकिन आपने आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता के बतौर अपनी भूमिका क्यों चुनी?
उत्तर: मैंने किसी व्यक्तिगत लाभ के लिए राजनीति को नहीं चुना है। मैं डॉ. आंबेडकर की इस बात से प्रेरित रहा हूँ कि राजनीति सब समस्याओं के समाधान की चाबी है और राजनीतिक सत्ता का उपयोग समाज के विकास के लिए किया जाना चाहिए। मैंने आइपीएफ को ही इस दिशा में र्इमानदारी से काम करते हुआ पाया है। मैं ही नहीं इस आंदोलन को भारत सरकार के पूर्व वित्त एवं वाणिज्य सचिव व योजना आयोग के सदस्य रहे एसपी शुक्ला, भारत सरकार के पूर्व सचिव प्रो. केबी सक्सेना जैसे तमाम लोंगो का समर्थन प्राप्त है। इसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे डी आर गाडगिल की पुत्री प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ. सुलभा ब्रहमें और राष्ट्रीय प्रवक्ता मलेशिया की मशहूर उत्तरा विश्वविधालय में कानून के प्रोफेसर निहालुददीन अहमद है।
उत्तर: मैं एक गरीब दलित परिवार में पैदा हुआ और मैंने गाँव में छुआछूत और उत्पीड़न को देखा है। मैंने आम लोगों के प्रति पुलिस और प्रशासन का व्यवहार भी देखा। मेरे मन में पढ़ लिख कर इस व्यवस्था को बदलने की लगन थी। इसीलिए मैंने बहुत मेहनत से पढ़ार्इ की और आर्इपीएस में आया। पुलिस की नौकरी के दौरान मैं ने हरेक व्यक्ति को कानून के अंतर्गत न्याय दिलाने का प्रयास किया। अपने सरकारी काम के साथ-साथ मैं सामाजिक बदलाव कीमुहिम से भी बराबर जुड़ा रहा। 2003 में सेवानिवृत्त होने के बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर मैं जनहित के मुद्दों जैसे सूचना का अधिकार, भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और मानवाधिकार आदि पर काम करता रहा हूँ। वर्तमान में पीयूसीएल(उ.प्र.) का उपाध्यक्ष और आंबेडकर महासभा का पदाधिकारी भी हूँ।
प्रश्न: जो लोग पुलिस या नौकरशाही में रहते हैं आम तौर पर उनका रुझान कांग्रेस या भाजपा जैसी सत्ताधारी पार्टियों की तरफ दिखता है लेकिन आपने आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता के बतौर अपनी भूमिका क्यों चुनी?
उत्तर: मैंने किसी व्यक्तिगत लाभ के लिए राजनीति को नहीं चुना है। मैं डॉ. आंबेडकर की इस बात से प्रेरित रहा हूँ कि राजनीति सब समस्याओं के समाधान की चाबी है और राजनीतिक सत्ता का उपयोग समाज के विकास के लिए किया जाना चाहिए। मैंने आइपीएफ को ही इस दिशा में र्इमानदारी से काम करते हुआ पाया है। मैं ही नहीं इस आंदोलन को भारत सरकार के पूर्व वित्त एवं वाणिज्य सचिव व योजना आयोग के सदस्य रहे एसपी शुक्ला, भारत सरकार के पूर्व सचिव प्रो. केबी सक्सेना जैसे तमाम लोंगो का समर्थन प्राप्त है। इसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे डी आर गाडगिल की पुत्री प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ. सुलभा ब्रहमें और राष्ट्रीय प्रवक्ता मलेशिया की मशहूर उत्तरा विश्वविधालय में कानून के प्रोफेसर निहालुददीन अहमद है।
प्रश्न: आपने राबर्टसगंज
चुनाव क्षेत्र को ही क्यों चुना। मिर्जापुर, सोनभद्र और चंदौली के पहाड़ी इलाकों के पिछड़ेपन के
पीछे आप क्या कारण समझते हैं और इसे हल कैसे करेंगे?
उत्तर: मुझे नौकरी के दौरान भी विभिन्न जांचों के सम्बन्ध में इस क्षेत्र को देखने का मौका मिला था, इस लिहाज से यह मेरा जाना पहचाना क्षेत्र है। मेंने देखा है कि यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों और कृषि के लिहाज से बेहद समृद्ध है और इसमें इतनी क्षमता है कि यह प्रदेश की बिजली की सारी जरूरतों को पूरा कर सकता है . इसके कृषि के विकास में यह उत्तर प्रदेश का सब से अधिक पिछड़ा इलाका बना हुआ है। वनाधिकार कानून को लागू कराने के लिए भी हमें हार्इकोर्ट से आदेश कराना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी नदियों और पहाड़ों का अवैध खनन हुआ। आप देख सकते है यहां की वायु व जल विषाक्त हो गया है।
उत्तर: मुझे नौकरी के दौरान भी विभिन्न जांचों के सम्बन्ध में इस क्षेत्र को देखने का मौका मिला था, इस लिहाज से यह मेरा जाना पहचाना क्षेत्र है। मेंने देखा है कि यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों और कृषि के लिहाज से बेहद समृद्ध है और इसमें इतनी क्षमता है कि यह प्रदेश की बिजली की सारी जरूरतों को पूरा कर सकता है . इसके कृषि के विकास में यह उत्तर प्रदेश का सब से अधिक पिछड़ा इलाका बना हुआ है। वनाधिकार कानून को लागू कराने के लिए भी हमें हार्इकोर्ट से आदेश कराना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी नदियों और पहाड़ों का अवैध खनन हुआ। आप देख सकते है यहां की वायु व जल विषाक्त हो गया है।
प्रश्न: आप के चुनाव
के प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
उत्तर: सोनभद्र, चंदौली और मिर्ज़ापुर के पहाड़ी क्षेत्र के विकास के लिए कें लिए सरकार से विशेष पैकेज दिलवाना, वनाधिकार कानून को सख्ती से लागू कराकर आदिवासियों और अन्य परम्परागत वनाश्रित जातियों को उनके कब्जे की जमीन का मालिकाना हक दिलाना, ठेकेदारी प्रथा में लगे मजदूरों को नियमित नौकरी और वेतनमान दिलवाना, पूरे क्षेत्र में पेयजल, बिजली, अस्पताल और शिक्षा की व्यवस्था सुनिशिचत करवाना और कृषि के विकास के लिए सिचांर्इ हेतु पानी, कृषि आधारित उधोग व कोल्ड स्टोरेज का निर्माण कराना और किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलवाना, विस्थापितों के अधिकारों की गारंटी, पर्यावरण की सुरक्षा और मानवाधिकारों की रक्षा, सामाजिक न्याय के अधिकारों को दिलाना मेरे चुनाव के प्रमुख मुद्दे हैं। मुझे बेहद तकलीफ हुर्इ जब मैंने यहां खेतों में टमाटर को सड़ते हुए देखा।
उत्तर: सोनभद्र, चंदौली और मिर्ज़ापुर के पहाड़ी क्षेत्र के विकास के लिए कें लिए सरकार से विशेष पैकेज दिलवाना, वनाधिकार कानून को सख्ती से लागू कराकर आदिवासियों और अन्य परम्परागत वनाश्रित जातियों को उनके कब्जे की जमीन का मालिकाना हक दिलाना, ठेकेदारी प्रथा में लगे मजदूरों को नियमित नौकरी और वेतनमान दिलवाना, पूरे क्षेत्र में पेयजल, बिजली, अस्पताल और शिक्षा की व्यवस्था सुनिशिचत करवाना और कृषि के विकास के लिए सिचांर्इ हेतु पानी, कृषि आधारित उधोग व कोल्ड स्टोरेज का निर्माण कराना और किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलवाना, विस्थापितों के अधिकारों की गारंटी, पर्यावरण की सुरक्षा और मानवाधिकारों की रक्षा, सामाजिक न्याय के अधिकारों को दिलाना मेरे चुनाव के प्रमुख मुद्दे हैं। मुझे बेहद तकलीफ हुर्इ जब मैंने यहां खेतों में टमाटर को सड़ते हुए देखा।
प्रश्न: भ्रष्टाचार, महंगार्इ और रोजगार जैसे इस समय के
ज्वलंत राष्ट्रीय सवालों पर आपका नजरिया क्या है?
उत्तर: यह तो हमारे आंदोलन के राष्ट्रीय मुददे है। वैसे हम आपको बताना चाहेंगे और आप जानते भी होंगे कि आइपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने पूरे राजनीतिक तंत्र को भ्रष्ट कर रहे बड़े पूंजी घराने यानी कारपोरेट जगत को लोकपाल कानून के दायरे में लाने, महंगार्इ पर नियंत्रण के लिए वायदा कारोबार रोकने और रोजगार को संविधान का मूल अधिकार बनाने जैसे सवालों को लेकर संसद के अंतिम सत्र में दिल्ली में जंतर-मंतर पर दस दिवसीय उपवास किया है।
उत्तर: यह तो हमारे आंदोलन के राष्ट्रीय मुददे है। वैसे हम आपको बताना चाहेंगे और आप जानते भी होंगे कि आइपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने पूरे राजनीतिक तंत्र को भ्रष्ट कर रहे बड़े पूंजी घराने यानी कारपोरेट जगत को लोकपाल कानून के दायरे में लाने, महंगार्इ पर नियंत्रण के लिए वायदा कारोबार रोकने और रोजगार को संविधान का मूल अधिकार बनाने जैसे सवालों को लेकर संसद के अंतिम सत्र में दिल्ली में जंतर-मंतर पर दस दिवसीय उपवास किया है।
प्रश्न: लोकसभा के 543 सदस्यों में से अलग आप की क्या
विशिष्ट भूमिका होगी?
उत्तर: देखिए यह विडम्बना है कि देश के ज्वलंत सवाल और जनता की जिदंगी के महत्वपूर्ण मुददे संसद में नहीं उठ पा रहे है। इसी प्रकार आप देखेंगे कि आजकल नीतियों के मामलों में भी दलों में कोर्इ खास अतंर रह नहीं गया है। ऐसी सिथति में लोगों की जिदंगी के लिए महत्वपूर्ण उन सवालों को जो मेरे चुनाव के भी मुददे है और जिन्हें आइपीएफ समेत जनांदोलनों की ताकतें और इंसाफ पसंद नागरिक उठाते रहे है उन्हें संसद में उठाने और हल कराने में मैं अपनी भूमिका देखता हूं। मैं समझता हूं कि 543 में कुछ लोग इन सवालों पर देश का ध्यान आकर्षित कराने के लिए संसद में पहुंचे।
उत्तर: देखिए यह विडम्बना है कि देश के ज्वलंत सवाल और जनता की जिदंगी के महत्वपूर्ण मुददे संसद में नहीं उठ पा रहे है। इसी प्रकार आप देखेंगे कि आजकल नीतियों के मामलों में भी दलों में कोर्इ खास अतंर रह नहीं गया है। ऐसी सिथति में लोगों की जिदंगी के लिए महत्वपूर्ण उन सवालों को जो मेरे चुनाव के भी मुददे है और जिन्हें आइपीएफ समेत जनांदोलनों की ताकतें और इंसाफ पसंद नागरिक उठाते रहे है उन्हें संसद में उठाने और हल कराने में मैं अपनी भूमिका देखता हूं। मैं समझता हूं कि 543 में कुछ लोग इन सवालों पर देश का ध्यान आकर्षित कराने के लिए संसद में पहुंचे।
प्रश्न: आप इस चुनाव
को जनमत संग्रह के रूप में ले रहें हैं। जनता का रुझान आप को कैसा दिखता है?
उत्तर: मुझे जनता का भारी समर्थन प्राप्त हो रहा है।
प्रश्न: आमिर खान के 'सत्यमेव जयते' कार्यक्रम के 'पुलिस सुधार' एपिसोड में पुलिस अधिकारी के बतौर आप ने कहा है कि हमारे यहाँ 'डंडा तफ्तीश' होती है। इसका क्या मतलब है?
उत्तर: 'डंडा तफ्तीश'' से मेरा मतलब पुलिस द्वारा गिरफ्तार व्यक्ति के साथ गैर कानूनी ढंग से मारपीट करके जबरदस्ती अपराध कबूल करवाना है जिसके कारण कर्इ बार उनकी मौत भी हो जाती है। इस प्रकार के उत्पीड़न को रोकने के लिए टार्चर के विरुद्ध कानून बनाया जाना चाहिए और कानून के शासन को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
उत्तर: मुझे जनता का भारी समर्थन प्राप्त हो रहा है।
प्रश्न: आमिर खान के 'सत्यमेव जयते' कार्यक्रम के 'पुलिस सुधार' एपिसोड में पुलिस अधिकारी के बतौर आप ने कहा है कि हमारे यहाँ 'डंडा तफ्तीश' होती है। इसका क्या मतलब है?
उत्तर: 'डंडा तफ्तीश'' से मेरा मतलब पुलिस द्वारा गिरफ्तार व्यक्ति के साथ गैर कानूनी ढंग से मारपीट करके जबरदस्ती अपराध कबूल करवाना है जिसके कारण कर्इ बार उनकी मौत भी हो जाती है। इस प्रकार के उत्पीड़न को रोकने के लिए टार्चर के विरुद्ध कानून बनाया जाना चाहिए और कानून के शासन को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
प्रस्तुति
दिनकर कपूर
संपर्कः dinkarjsm786@rediffmail.com
दिनकर कपूर
संपर्कः dinkarjsm786@rediffmail.com
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