शनिवार, 15 जुलाई 2017

जोगी सरकार में दलित अधिकारों का हनन

जोगी सरकार में दलित अधिकारों का हनन
-एस.आर.दारापुरी आई.पी.एस. (से.नि.) एवं संयोजक : जन मंच 



जोगी सरकार जो कि दलित वोट पा कर उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई है इस समय दलित अधिकारों के दमन पर तुली है. इसकी ताज़ा उदाहरण 3 जुलाई को लखनऊ में दलित उत्पीड़न विषय पर विचार गोष्ठी के आयोजकों की गिरफ्तारी है. उस दिन उत्तर प्रदेश के दलित संगठनों (डायनमिक एक्शन ग्रुप, बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच, यू.पी.जनमंच, तथा पीयूसीएल) द्वारा मेरे नेतृत्व में लखनऊ प्रेस क्लब में 12 बजे से 4 बजे तक “दलित उत्पीड़न तथा समाधान” विषय पर परिचर्चा तथा प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया था जिसमें शामिल होने के लिए गुजरात के 43 दलित साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन से तथा प्रदेश के कई जिलों से कई दलित आ रहे थे. गुजरात के दलित अपने साथ 125 किलो का साबुन उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री जी को भेंट करने के लिए भी ला रहे थे. उनका कहना था कि 5 मई को जब मुख्य मंत्री जी कुशी नगर गए थे तो वहां पर मुसहर बस्ती में दलितों को साबुन तथा शैम्पू बांटा गया था तथा उन्हें आदेशित किया गया था कि वे इससे नहा- धोकर मुख्यमंत्री जी के सामने आयें. गुजरात के दलितों ने इसे दलितों का अपमान माना था तथा इसके प्रत्युत्तर में वे मुख्य मंत्री जी को लखनऊ में उक्त साबुन जिसे “तथागत साबुन” का नाम दिया गया था, भेंट करना चाहते थे.उनकी अपेक्षा थी इसके इस्तेमाल से जोगीजी का तन और मन साफ़ हो जायेगा और वे दलितों को एक समान मानव के रूप में देखने लगेंगे. 
2 जुलाई, 2017 को शाम को जब साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन झाँसी पहुंची तो पुलिस द्वारा गुजरात से लखनऊ आ रहे 43 दलित जिनमें 11 महिलाएं भी थीं को जबरन ट्रेन से उतार लिया गया. उन्हें रातभर पुलिस हिरासत में रखा तथा अगले दिन सवेरे गुजरात जाने वाली गाड़ी में सामान्य बोगी में भर कर अहमदाबाद भेज दिया तथा उन द्वारा लाये गए साबुन को ज़ब्त कर लिया गया. इस प्रकार पुलिस द्वारा गुजरात से आये दलितों के जीवन तथा दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण के मौलिक अधिकार का हनन किया गया.
2 जुलाई, 2017 को ही उक्त कार्यक्रम में बाहर से भाग लेने के लिए 23 दलित कार्यकर्ता लखनऊ पहुंचे थे जिन्हें नेहरु युवा केंद्र में ठहराया गया था. पुलिस ने रात में ही उन्हें नज़रबंद कर लिया तथा उन्हें 3 जुलाई की शाम तक नज़रबंद रख कर छोड़ा. इस प्रकार इन कार्यकर्ताओं के भी जीवन एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण के मौलिक अधिकार का हनन किया गया.  
इसी प्रकार जब 3 जुलाई, 2017 को जब हम लोग घोषित कार्यक्रम के अनुसार 12 बजे प्रेस क्लब लखनऊ पहुंचे तो देखा कि वहां पर भारी मात्रा में पुलिस मौजूद थी. प्रेस क्लब के प्रबंधक श्री बी.सी. जोशी ने पूछने पर बताया कि उन्होंने प्रेस क्लब के सचिव जोखू तिवारी के कहने पर हम लोगों का प्रेस क्लब का आबंटन रद्द कर दिया है और वहां पर कोई भी कार्यक्रम न करने के लिए कहा. हम लोगों ने जब इसका कारण पूछा तो उसने कोई भी कारण नहीं बताया. इस पर हम लोग वहां पर बैठ कर अपने अग्रिम कार्यक्रम के बारे में विचार विमर्श करने लगे और तय किया कि अब हम लोग रमेश दीक्षित जी के दारुलशफा स्थित कार्यालय में जाकर बैठेंगे और अगला कार्यक्रम तय करेंगे. इसके बाद जब हम लोग उठ कर जाने लगे तो पुलिस ने हमें जबरदस्ती बैठा लिया और कहा कि आप लोगों को गिरफ्तार किया जाता है. इस पर मैंने पूछा कि हम लोगों ने क्या अपराध किया है. इस पर उन्होंने हमें बताया कि आप लोग बिना अनुमति के प्रेस क्लब में कार्यक्रम करने जा रहे थे और आप लोगों ने धारा 44 का उलंघन करके यहाँ पर शांति भंग की है. इस पर मैंने उन्हें बताया कि हमारी जानकारी में प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता/गोष्ठी करने हेतु किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है. दूसरे धारा 144 सड़क पर लगती है न कि प्रेस क्लब के अन्दर. इस पर उन्होंने पूछा कि अब आप लोग कहाँ जायेंगे तो मैंने उन्हें बताया कि यहाँ पर तो आप लोगों ने दबाव डाल कर हम लोगों का कार्यक्रम रद्द करवा दिया है, अतः अब हम लोग दारुलशफा में दीक्षित जी के कार्यालय में जाकर बैठेंगे और अगला कार्यक्रम बनायेंगे. उस समय पुलिस क्लब में सीओ कैसर बाग़, सिटी मैजिस्ट्रेट, एसपी सिटी, अपर जिलाधिकारी, निरीक्षक कैसबाग़ तथा अन्य कई अधिकारी मौजूद थे.
इस पर जब हम लोग चलने लगे तो उन्होंने हमें घेर लिया और 13.30 बजे 8 लोगों (रमेश चंद दीक्षित, राम कुमार, आशीष अवस्थी, के.के.वत्स, पी.सी.कुरील, डी.के यादव, कुलदीप कुमार बौद्ध तथा एस.आर.दारापुरी) को गिरफ्तार करके बस में बैठा कर पुलिस लाइन ले गये. वहां पर हम लोगों को पता चला कि पुलिस ने हम लोगों को धारा 151 दंड प्रक्रिया संहिता में गिरफ्तार किया था और हमारे ऊपर प्रेस क्लब से निकल कर मुख्य मंत्री आवास की ओर कूच करने की योजना बनाने का आरोप लगाया गया था जो कि एकदम असत्य एवं निराधार है. इसके साथ ही हम लोगों को धारा 107/116 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत 20,000 रु० के व्यक्तिगत मुचलके पर 17.30 बजे छोड़ा गया.  ऐसा प्रतीत होता है पुलिस ने हम लोगों को गिरफ्तार करने के लिए हम लोगों पर पर झूठा एवं मनगढ़ंत आरोप लगाया है.   इस प्रकार पुलिस ने हम लोगों के ऊपर फर्जी आरोप लगा कर हमें गिरफ्तार करके हमारे जीवन तथा दैहिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार तथा हमारे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन किया है. प्रशासन का यह कार्य हम लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन, कानून एवं सत्ता का दुरूपयोग है. इस गिरफ्तारी के पीछे सरकार का इरादा दलित कार्यकर्ताओं में भय पैदा करना था ताकि वे किसी भी प्रकार का विरोध व्यक्त करने का साहस न करें.
इस घटना से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं एक तरफ जहाँ भाजपा एक दलित को राष्ट्रपति बनाने का नाटक कर रही है वहीँ सामाजिक कार्यकर्ताओं को दलित मुद्दों पर चर्चा करने का प्रयास करने पर गिरफ्तार कर रही है. इससे स्पष्ट है कि भाजपा को दलितों का वोट तो चाहिए परन्तु उसे अत्याचार और उत्पीडन के खिलाफ उनका आक्रोश बिलकुल भी सहनीय नहीं है. ऐसी परिस्थिति में दलितों को सोचना होगा कि क्या भाजपा के साथ जा कर उनका कोई भला हो सकता है या उन्हें डॉ. आंबेडकर द्वारा दिखाए गये संघर्ष करने के रास्ते पर चलना होगा. इसके साथ ही उन्हें वर्तमान दलित नेताओं द्वारा अपनाई गयी अवसरवादी, सिद्धान्तहीन एवं व्यक्तिवादी जाति की राजनीति से भी बाहर निकल कर मुद्दा आधारित रैडिकल राजनीति को अपनाना होगा जिसके संकेत भीम आर्मी और गुजरात के आन्दोलन से मिल रहे हैं.         


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