कँवल भारती की गिरफ्तारी अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता पर हमला
6.8.2013: आज जिस तरह रामपुर में एक बिलकुल फर्जी केस में दलित लेखक और
चिन्तक श्री कँवल भारती की गिरतारी की गयी वह सपा सरकार का अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता पर सीधा हमला है जिस की आईपीएफ कड़ी निंदा करती है क्योंकि उनके
विरुद्ध मुकदमे का कोई भी आधार नहीं बनता है.
आज सवेरे श्री कँवल भारती ने अपनी फेसबुक की वाल पर निम्नलिखित टिप्पणी दर्ज की थी:
“आरक्षण
और दुर्गाशक्ति नागपाल इन दोनों ही मुद्दों पर अखिलेश यादव की समाजवादी
सरकार पूरी तरह फेल हो गयी है. अखिलेश, शिवपाल यादव, आज़म खां और मुलायम
सिंह (यू.पी. के ये चारों मुख्य मंत्री) इन मुद्दों पर अपनी या अपनी सरकार
की पीठ कितनी ही ठोक लें, लेकिन जो हकीकत ये देख नहीं पा रहे हैं, (क्योंकि
जनता से पूरी तरह कट गये हैं) वह यह है कि जनता में इनकी थू-थू हो रही है,
और लोकतंत्र के लिए जनता इन्हें नाकारा समझ रही है. अपराधियों के हौसले
बुलंद हैं और बेलगाम मंत्री इंसान से हैवान बन गये हैं. ये अपने पतन की पट
कथा खुद लिख रहे हैं. सत्ता के मद में अंधे हो गये इन लोगों को समझाने का
मतलब है भैस के आगे बीन बजाना.”
इस से पहले 2 अगस्त को कँवल भारती जी ने अपनी फेसबुक पर यह लिखा था:
“आपका "आज तक" कैसे सबसे तेज है? आपको तो यह ही नहीं पता कि रामपुर में
सालों पुराना मदरसा बुलडोजर चलवा कर गिरा दिया गया और संचालक को विरोध करने
पर जेल भेज दिया गया जो अभी भी जेल में ही है. अखिलेश की सरकार ने रामपुर
में तो किसी भी अधिकारी को सस्पेंड नहीं किया. वह इसलिए कि रामपुर में आज़म
खां का राज चलता है, अखिलेश का नहीं.”
उन की उप्रोकर टिप्पणियों
पर सिविल लाइन्स थाना रामपुर ने आज सुबह उन्हें कुछ लोगों की शिकायत पर
साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने तथा एक विशेष समुदाय की धार्मिक भावनाओं को
आहत करने के आरोप में धारा 153 ए तथा धारा 295 ए भारतीय दंड विधान के
अंतर्गत मुकदमा दर्ज करके गिरफ्तार कर लिया.
अब अगर कानून की दृष्टि
से देखा जाये तो उन पर लगाये गए दोनों आरोप असत्य एवं निराधार हैं. भारतीय
दंड विधान की धारा 153 ए के अनुसार यदि कोई व्यक्ति धर्म, मूलवंश, भाषा
इत्यादी के आधारों पार विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और
सौहार्द बनाए रखने के प्रतिकूल कार्य करता है तो वह इस धारा के अंतर्गत
अपराध करने का दोषी है.
भारतीय दंड विधान की धारा 295 ए के अनुसार यदि
कोई व्यक्ति विमशित और विदुएश्पूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक
विश्वासों का अपमान करके उस की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से
करता है तो वह इस धारा का अपराध करता है.
अब अगर श्री कँवल भारती की
उक्त टिप्पणियों को देखा जाए तो इस में न तो कोई साम्प्रदायिक सद्भाव
बिगाड़ने और न ही किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने जैसी कोई बात
लिखी गयी है. इस में केवल दो मुद्दों: दलितों का आरक्षण और दुर्गाशक्ति
नागपाल के निलंबन को लेकर सरकार के रवैये की आलोचना की गयी जो कि पहले ही
इतने व्यापक स्तर पर चौतरफा हो रही है.
हाँ! इतना ज़रूर है कि इन
टिप्पणियों में अखिलेश यादव, शिवपाल यादव और मुलायम सिंह यादव के साथ आज़म
खान का नाम भी है. अब यह बड़ी हैरानी की बात है कि केवल रामपुर, जो कि श्री
आज़म खान का शहर है, में ही इस टिप्पणी से साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ने और एक
विशेष समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुचने की बात कह कर मुकदमा दर्ज
कराया गया और श्री कँवल भारती को गिरफ्तार कर लिया गया. यह अलग बात है
न्यायालय द्वारा उन्हें ज़मानत दे दी गयी है.
क्या यह सपा सरकार
के मंत्री आज़म खान द्वारा अपने गृह जनपद में अपनी आलोचना पर सभी प्रकार की
पाबन्दी लगाने का प्रयास नहीं है? क्या लोगों को सरकार की विफलताओं की
आलोचना करने का भी अधिकार नहीं है? क्या उत्तर प्रदेश में आपात काल लग गया
है जिस में जनता के सभी मौलिक अधिकार निलंबित हो गए हैं? क्या राममनोहर
लोहिया के समाजवाद का क्या यही वर्तमान स्वरूप है?
ऐसा प्रतीत
होता है कि सपा की सरकार अपनी विफलताओं और चौतरफा आलोचनाओं से हताश हो गयी
है और वह हर विरोध को कुचलने पर उतर आई है. दुर्गाशक्ति के निलंबन के मामले
से उसकी जो छीछालेदर हुयी है उस से वह हडबडा गयी है और सत्ता के डंडे से
आलोचनाओं पर काबू पाना चाहती है. श्री कँवल भारती की गिरफ्तारी इसी का ही
दुष्परिणाम है. आईपीएफ सपा सरकार की इस कार्रवाही की कड़ी निंदा करती है.
एस. आर. दारापुरी,
राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
मोबाइल: 9415164845