रविवार, 18 दिसंबर 2011

आदम गोंडवी एक मूल्यांकन

“आइए और महसूस कीजिए जिंदगी के ताप को,
मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको,
जिस गली में भुखमरी की यातना से उबकर,
मर गई फुलिया बिचारी कल कुएं में डूबकर।”
ये लाइनें अदम गोंडवी की लिखी “चमारों की गली” की हैं जिसे हमने पढ़ा, गाया, अभिनय भी किया बस जी नहीं पाए। अदम ने इसे जीकर लिखा था। अदम की लिखी मुक्ति प्रकाशन से छपी किताब “धरती की सतह” पर इस वक्त पुरानी फाइल में लगे फोटोस्टेट पन्नों की शक्ल में सामने पड़ी है। अदम कह रहे हैं-
“वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है,
उसी के दम पर रौनक आपके बंगले में आई है।
इधर इक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का,
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है।“
अदम चेता रहे हैं—
“गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे,
क्या इससे किसी कौम की तकदीर बदल दोगे,
तारीख बताती है तुम भी तो लुटेरे हो,
क्या द्राविड़ों से छीनी जागीर बदल दोगे।“
अदम भड़क उठे हैं—
“जितने हरामखोर थे कुर्बो-जवार में,
परधान बनके आ गये अगली कतार में,
बंजर जमीन पट्टे में जो दे रहे हैं आप,
ये रोटी का टुकड़ा है मियादी बुखार में।“
अदभुत व्यंग है अदम का—
“महज तनख्वाह से निबटेंगे क्या नखरे लुगाई के,
हजारों रास्ते हैं सिन्हा साहब की कमाई के।
मिसेज सिन्हा के हाथों में जो बेमौसम खनकते हैं,
पिछली बाढ़ के तोहफे हैं, ये कंगन कलाई के।“
अदम की आंखों से देखिए—
“आप कहते हैं सरापा गुलमोहर है जिंदगी,
हम गरीबों की नजर मे इक कहर है जिंदगी,
दफ्न होता है जहां आकर नई पीढ़ी का प्यार,
शहर की गलियों का वो गंदा गटर है जिंदगी।“
अदम की अब मान भी लीजिए—
“हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए,
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेडिए।
गलतियां बाबर की थीं, जुम्मन का घर फिर क्यूं जले,
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िए।“
अदम को कितने डिबेट, कितने नाटकों, कितनी तकरीरों, कितने निबंधों में, जिंदगी के कितने लम्हों में, कहां कहां नहीं पाया था। मुझे जैसे कितने ही नौजवानों की जान थे अदम। अदम की जिंदगी को उन्हें जीने वालों का सलाम। बस खला इतना ही है कि अदम के बाद अब कौन बताएगा —
“बजाहिर प्यार की दुनिया में जो नाकाम होता है,
कोई रुसो, कोई हिटलर, कोई खैयाम होता है।”
अदम गोंडवी

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