सरकारों द्वारा विज्ञापन धनराशि का दुरुपयोग
- सुलखान सिंह आइपीएस (से. नि.)
मैं अक्सर देखता हूं कि केंद्र और राज्य की सरकारों द्वारा अपनी उपलब्धियों का प्रचार करने के लिए बड़े-बड़े पूरे पृष्ठ के विज्ञापन अखबारों में छपवाये जाते हैं। कई राज्य सरकारें तो दूसरे राज्यों में विज्ञापन छपवाती हैं। माल-ए-मुफ्त, दिल-ए-बेरहम!
सरकारी धन, सिर्फ जनहित के कार्यों में ही खर्च किया जा सकता है, अन्यथा नहीं। जनहित के अलावा खर्च करना एक अपराध है, जो भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 316(5) के अंतर्गत, दस साल तक के कारावास से दण्डनीय है और जुर्माना भी लगाया जायेगा।
सरकारी धन सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए ही व्यय होना चाहिए, इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 282 में निम्नलिखित प्रावधान हैं -
"282. संघ या राज्य द्वारा अपने राजस्व से व्यय:- संघ या कोई राज्य किसी भी लोक उद्देश्य के लिए अनुदान दे सकता है, चाहे वह उद्देश्य ऐसा न हो जिसके संबंध में संसद या, जैसा कि मामला हो, राज्य की विधान-मंडल कानून बना सकती हो।"
प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, किसी अन्य प्राधिकारी अथवा सरकार की छवि चमकाना, लोकहित नहीं है। यह पार्टी का हित हो सकता है लेकिन इससे जनता का कोई हित-साधन नहीं होता है। जनता का हित-साधन परखने का एक ही मापदंड है -
"क्या यह सूचना जनता को सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने के लिए अथवा किसी कानून के जरूरी ज्ञान के लिए आवश्यक है?"
यदि ऐसा नहीं है तो यह लोक-उद्देश्य नहीं है। प्रधानमंत्री किसी योजना का उद्घाटन कर रहे हैं, यह सूचना जनता के किसी हित की नहीं है। हां, यह सूचना, प्रधानमंत्री जी की पार्टी के हित में है।
और एक खास बात, जरूरी सूचना में भी नेताओं के फोटो लगाना लोकहित में नहीं है, यह भी उनकी पार्टी का हित है। इसलिए, इसका खर्च भी उनकी पार्टी को उठाना चाहिए।
इधर एक और ग़लत परंपरा चल पड़ी है। एक तो सरकार नौकरियां खत्म करती जा रही है और दूसरी तरफ, जो थोड़ी बहुत नौकरियां देती है0, उनके नियुक्ति पत्र बांटने में अरबों रुपए जनता के धन का दुरुपयोग करती है। अभी कुछ दिन पहले, उत्तर प्रदेश सरकार ने, 60,000 पुलिस सिपाहियों को, सरकारी खर्च पर, लखनऊ बुलाकर, नियुक्ति पत्र बांटे थे। यदि यह मान लिया जाये, कि प्रति अभ्यर्थी 2000 रुपए खर्च हुए तो कुल खर्च आता है 12 करोड़ रुपए। अभी तक की स्थापित प्रक्रिया के अनुसार नियुक्ति पत्र डाक से भेजे जाते थे। डाक सबसे प्रभावी एवं सस्ता तरीका है सरकार के प्रचार के लिए इसे बदलना, धन का दुरुपयोग है।
सरकारें और लोक-संस्थायें, जनता के धन का दुरुपयोग न करें, यह देखना, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) का दायित्व है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि CAG भी अपने दायित्व के निर्वहन में विफल रहे हैं। महालेखा परीक्षक का यह देखना भी कर्तव्य है कि किसी भी लोकहित के कार्य को, सर्वाधिक मितव्ययिता के साथ न्यूनतम धन खर्च करके पूर्ण किया जाये। महालेखा परीक्षक के नियमों में इसे 'परफार्मैंस ऑडिट' Performance Audit कहते हैं। लेकिन सब उदासीन हैं। महालेखापरीक्षक को, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के समकक्ष संरक्षण प्राप्त है फिर क्या बाधा है निष्पक्ष और निर्भीक कर्तव्य पालन करने में?
इसलिए लिखा ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आवे! फिर न कहना खबर न हुई!!
सुलखान सिंह आइपीएस (से. नि.) की वाल से साभार
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