शनिवार, 30 जून 2012


विधान सभा पर हुआ वादा निभाओ धरना

बेगुनाह मुस्लिम युवकों को छोड़ने के चुनावी वादों को पूरा करने की उठी मांग

लखनऊ। 30 जून 2012
 सपा सरकार के वादे को याद दिलाते हुए विधान सभा पर विशाल धरने का आयोजन किया गया. इस अवसर पर सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचे इसके अलावा मानवाधिकार नेताओं,कार्यकर्ताओं और अन्य संगठनों के प्रतिनिधि धरने में शामिल हुए। धरने का आयोजनआतंकवाद के नाम कैद निर्दोंषों का रिहाई मंचबैनर तले आयोजित किया गया

मिल्ली गजट के संपादक जफरउल इस्लाम ने कहा कि वादा निभाओ धरने को संविधान के वादे से जोड़कर देखना जरुरी है क्योंकि संविधान किसी भी निर्दोष व्यक्ति के उत्पीड़न की इजाजत नहीं देता है,इसलिए यदि कोई सरकार किसी निर्दोष का उत्पीड़न करती है, तो वह संविधान के साथ धोखा करने जैसा है,जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कह कि लखनऊ में हो रहे इस धरने के मकसद को पूरे सूबे में ले जाने की जरूरत है।

पूर्व पुलिस अधिकारी एस आर दारापुरी ने कहा कि हम मुलायम सिंह को उनका चुनावी वादा याद दिलाना चाहते हैं। सरकार को आगाह किया कि जिस तबके में सरकार को बनाने का माद्दा है, वे सरकार को बदलने की ताकत भी रखते हैं। उन्होंने खूफिया एजेंसियों और एटीएस साम्प्रदायिक संगठन करार देते हुए कहा कि इनकी कार्यपद्धति से लगता है कि जनता द्वारा चुनी गई सरकार और धर्म निरपेक्ष मूल्यों के बजाय बजरंग दल के प्रति जिम्मेदार है। उन्होंने खूफिया और एटीएस की साम्प्रदायिकता के खिलाफ प्रदेश व्यापी आंदोलन छेड़ने का आवाह्न किया।

आजमगढ़ से आये मानवाधिकार नेता मसीहुद्दीन संजरी ने सवाल उठाया कि विधान सभा के सामने धरना स्थल पर बड़ी संख्या में मौजूद पुलिस बतलाता है कि अल्पसंख्यकों को लेकर सरकारी मंशा कितनी संदिग्ध है

सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डेय ने कहा कि कई जांच रिपोर्टों में यह साबित हो चुका है कि उच्चाधिकारियों की जानकारी में आतंकवाद के नाम पर फर्जी मुठभेड़ की जाती है। मरने वालों के सवाल को पाकिस्तानी कहकर खारिज कर दिया जाता है। इशरत जहां का केस इसका उदाहरण है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार ईमानदारी से आतंकी वारदातों में शामिल लोगों की जांच कराये तो बहुत से बेगुनाह जेलों से बाहर सकते हैं।

जन संघर्ष मोर्चा के नेता लाल बहादुर सिंह ने कहा कि हाशिमपुरा दंगे के 25 साल बीत जाने के बाद न्याय मिलने का मामला उठाया। उन्होंने हिदुस्तान को सेकलुर बनाने और जम्बूरियत बहाल करने के लिए लंबे संघर्ष का आवह्नान किय़ा। उन्होंने कहा कि बेगुनाहों की छोड़ने के अपने वायदे से मुकरकर साम्प्रदायिक एजेंडा पर बढ़ रही है,जिसे हर हाल में रोकना ही होगा।

राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव और पूर्व मंत्री कौशल किशोर ने कहा कि सपा की मौजूदा सरकारने चुनाव के दौरान वादा किया था कि वह सरकार आने पर निर्दोष मुस्लिम युवकों को जेल से रिहा करेगी। लेकिन सरकार 100 दिन बीतने पर जश्न तो मना रही है और चुनावी घोषणा को भूल गई है। उन्होंने कहा कि विधानसभा में चुनकर आये मुस्लिम विधायक या तो बेगुनाहों की रिहाई सुनिश्चित करायें या फिर इस्तीफा दे दें। उन्होंने जनता
से अपील की कि मुस्लिम विधायकों के घरों को घेराव करना चाहिए,ताकि वे चुनावी वादों को अमल में ला सकें।

ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने कहा कि महिलाओं की भागीदारी इस आंदोलन को मजबूत करेगी। उन्होंने कहा कि इस मसले पर महिलाओं को गोलबंद कर सड़कों पर उतरना होगा। उन्होंने कहा कि प्रतापगढ़ के अस्थान में हुए दंगे में सपा सरकार के मंत्री राजा भैया की भूमिका से तय हो गया है कि सपा यूपी को गुजरात के नक्शे कदम पर ले जाना चाहती है।

वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने कहा कि एटीएस जिस तरह से निर्दोष मुसलमानों को उठा रही है, उससे तय है कि सपा सरकार अपना वादा निभाने के लिए और मुसलमान युवकों को जेल में ठूंसने पर आमादाहै। उन्होंने मीडिया की संजीदगी पर सवाल उठाया, कहा कि आतंकवाद के आरोप में की गई गिरफ्तारी की खबर को बड़ी प्रमुखता से लिखा जाता है,लेकिन जब कभी कोई आरोपी निर्दोष साबित होता है या जेल से बाहर आता है, तो उस खबर को के बराबर जगह दी जाती है।

इंडियन नेशनल लीग के सैय्यद सुलेमान ने कहा कि हमें देश की जम्बूरियत को बचाने के लिए कमर कस लेनी चाहिए। हमें जेल जाने से नहीं डरना चाहिए। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार को चेतावनी दी कि अगर सरकार नहीं चेती तो कांग्रेस की गुलामी 2014 में ले डूबेगी।

वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह ने कहा कि मुसलमानों को सुनियोजित तरीके से शिकार बनाया जा रहा है। इस मसले पर पूरे देश में एक राजनीतिक आंदोलन किया जाना चाहिए।

लोकसंघर्ष पत्रिका के संपादक रणधीर सिंह सुमन ने कहा कि समाजवादी कार्यकर्ताओं पर लगाये गये फर्जी मुकदमें तो वापस से लिए गये हैं,लेकिन आतंकवादके आरोप में बंद लोगों को नहीं छोड़ा गया है। सरकार को तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद से इस काम की शुरुआत करनी चाहिए।

पत्रकार अंजनी कुमार ने कहा कि सरकार की नजरों में जो देशद्रोही पैदा हो रहे हैं,उसके बारे में हमें संजीदगी से सोचना पड़ेगा। सरकार की नजर जनांदोलनों पर टेढ़ी है,इसलिए हमें मानवाधिकार आंदोलनों को तेज करना होगा,तभी बेगुनाह छूट पायेंगे। उन्होंने पीयूसीएलनेता सीमा आजाद और उनके पतिविश्व विजय की गिरफ्तारी पर सवालिया निशान उठाते हुए कहा कि उन्हें कुछ मार्क्सवादी साहित्यरखने पर माओवादी बताकर बंद कर दिया गया। जो राज्य के फासीवादी चरित्र को दर्शाता है।

एडवोकेट मो.शोएब ने कहा कि अगर सरकार कचहरी विस्फोट में पकड़े गये निर्दोष तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद को जुलाई तक नहीं छोड़ती है, तो इसके खिलाफ सिलसिलेवार धरना-प्रदर्शन किया जायेगा।

कुंडा से आये अनवर फारुखी ने बताया कि उनके भाई कौसर फारुकी को एटीएस ने रामपुर सीआरपीएफ कांड में पकड़ लिया,जबकि वे आज तक रामपुर कभी गये ही नहीं थे। उन्होंने बताया कि इसी तरह उनके परिवार के खिलाफ आये दिने जांच के नाम पर परेशान करती रहती है और इनके खिलाफ तथ्यहीन खबरें छपवाती है।

कार्यक्रम में सिद्धार्थ कलहंस, जैद फारुखी, तारिक सफीक, शौकत अली, आरिफ नसीम, ऋषि कुमार सिंह कौसर फारुकी, सादिक, एकता, राजीव यादव, इत्यादि उपस्थिति थे। संचालन पीयूसीएल के प्रदेश संगठन सचिव शाहनवाज आलम ने किया।

धरने के अंत में आठ सूत्री ज्ञापन सौंपा गया-
 1.आतंकवाद के नाम पर बंद किये गये निर्दोष मुसलमानों को शीघ्र छोड़ा जाये तथा उन पर से मुकदमें उठाकर नए सिरे से विवेचना कराई जाये।

2.आर डी निमेश आयोग की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक की जाये।

3.जेलों में बंद आरोपियों का उत्पीड़न बंद किया जाये और उनकी सुरक्षा की गारंटी दी जाये।

4.उत्तर प्रदेश में आतंकवाद के नाम पर होने वाली गिरफ्तारियों की निष्पक्ष जांच कराई जाये।

5. गैर कानूनी तरीके से होने वाली गिरफ्तारियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाये।

6.मानवाधिकार नेत्री सीमा आजाद उनके पति विश्वविजय की गिरफ्तारी की सीबीआई से जांच कराई जाये।

7.प्रतापगढ़ में शौकत अली को एटीएस अधिकारियों द्वारा उत्पीड़ित किये जाने की जांच कराकर दोषी अधिकारियों कि दंडित किया जाये।

8.मथुरा के कोसी कलां और प्रतापगढ़ के स्थान में हुए दंगों में पुलिस उपद्रवियों की भूमिका की जांच कराई जाये।

द्वारा जारी

मो. शोएब

बुधवार, 13 जून 2012

सीमा आजाद को राजद्रोह  के अपराध में उम्र कैद के निहितार्थ
एस. आर. दारापुरी
 सीमा आजाद और उस के पति विशव विजय को ८ जून को इलाहाबाद की अदालत ने राजद्रोह के अपराध में उम्र कैद की सजा दी है जिस के गंभीर निहितार्थ हैं. इस सजा के माध्यम से राज्य ने उन सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को यह चेतावनी दी है कि जो लोग दलितों, आदिवासिओं  और अन्य शोषित वर्गों के हितों को बचाने और उन के शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं उनको इसी प्रकार से झूठे केसों में फंसा कर जेल में डाला जा सकता है.  हम सब लोग जानते हैं कि  सीमा आजाद एक मानवाधिकार कार्य करता है और उसने उत्तर प्रदेश में बालू खनन मजदूरों और आजमगढ़ से पुलिस दुआरा आतंकवाद के नाम पर उठाये गए नौजवानों के मामलों को उठाया था. उसने गंगा एक्सप्रेस वे के नाम पर तत्कालीन मायावती सरकार द्वारा किसानों से छीनी जा रही ज़मीन और पर्यावरण  को संभावित खतरों के मामले को पूरे जोर शोर के साथ उठाया था. तभी से वह और उसका पति विशव विजय सरकार के निशाने पर आ गए थे और पुलिस उन को किसी बड़े केस में फिट करने के मौके की तलाश में थी.

सीमा आजाद और विशव विजय की गिरफ्तारी से एक दिन पहले उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा कानपुर से कुछ तथाकथित  माओवादियों को गिरफ्तार किया गया  था. पुलिस के लिए सीमा आजाद को उन तथाकथित माओवादियों से जोड़ने का और अच्छा मौका क्या हो सकता था. इस लिए उन्होंने अगले ही दिन सीमा और विशव विजय को गिरफ्तार कर कानपुर के मायोवादियों   से जोड़ दिया. सीमा की गिरफ्तारी उस समय की गयी जब वह दिल्ली में विशव पुस्तक मेला  देख कर रेल द्वारा प्रातः इलाहाबाद वापस लौट रही थी और उसके पति उसे रेलवे स्टेशन से लेकर अपने घर वापस आ रहे थे तो तभी रास्ते में ही पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने सीमा के हैण्ड बैग  और विशव विजय के झोले से माओवादी पर्चे और ३०,००० रुपए बरामद होना दिखाया. ये पर्चे उन्हें कानपुर से एक दिन पहले पकडे गए तथाकथित मायोवादियों  से जोड़ते थे. अब साधारण बुद्धि की बात है कि क्या सीमा आजाद और विशव विजय किसी ऐसे स्थान या परिस्थिति में पकडे गए थे यहाँ पर उनके के पर्स या बैग में प्रतिबंधित मायोवादी संघठन  के पर्चे होने की सम्भावना हो सकती है. सीमा तो विशव पुस्तक मेला देख कर प्रातः की गाड़ी से दिल्ली से वापस आ रही थी और विशव विजय उसे रेलवे स्टेशन से लेने गया था. इस से स्पष्ट है कि पुलिस द्वारा उनसे मायोवादी पर्चों की दिखाई गयी बरामदगी फर्जी है. वास्तव में पुलिस द्वारा ही उनपर यह पर्चे रख कर फर्जी बरामदगी दिखाई गयी है. इस बरामदगी के कोई में स्वंतत्र गवाह नहीं हैं बल्कि इसके पुलिस वाले ही गवाह हैं. मैं अपने पुलिस विभाग में ३२ साल की नौकरी के तजुर्बे से यह कह सकता हूँ कि यह बरामदगी बिलकुल फर्जी  है और यह पर्चे पुलिस द्वारा ही रोपित किये गए थे. इस का मकसद केवल उन्हें कानपुर से गिरफ्तार तथाकथित मायोवादियों से जोड़ना था. मेरा पूरा विश्वास है कि पुलिस अधिकतर इसी प्रकार की फर्जी बरामदगियां दिखा कर निर्दोष लोगों को झूठे केसों में फंसाती है.
सीमा की गिरफ्तारी के अगले  दिन जब हम लोगों ने  लखनऊ से सीमा के पी.यू. सी. एल. की कार्यकर्ता  और  उसके निर्दोष होने का ब्यान दिया तो तत्कालीन मायावती सरकार द्वारा हम लोगों को यह कह  कर धमकी दी गयी कि सरकार मायोवादियों के समर्थकों के विरुद्ध भी कड़ी कार्रवाही कर सकती है. इस के बाद जब हम लोगों ने सीमा के निर्दोष होने के बारे में तत्कालीन अप्पर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) से पी.यू. सी. एल. के प्रतिनिधि मंडल के रूप में मिलने का समय माँगा तो उन्होंने यह क़र मिलने से मना कर दिया कि आप लोग तो मायोवादियों के समर्थक हैं. इस से आप अंदाज़ा  लगा सकते हैं कि वर्तमान सरकारों का मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के प्रति कैसा रवैया है. तब से लेकर पी.यू. सी. एल. इलाहाबाद हाई कोर्ट में सीमा की ज़मानत के लिए बराबर कोशिश करती रही परन्तु उसे ज़मानत नहीं दी गयी.
अब अचानक कोर्ट द्वारा सीमा और विशव विजय को देश द्रोह और कुछ अन्य धारायों के अंतर्गत दोषी करार दे कर उम्र कैद की सजा सुना दी गयी है. कोर्ट में पुलिस द्वारा उन पर केवल मायोवादी पर्चों की बरामदगी के सिवाए कोई भी साक्ष्य पेश नहीं किया गया. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्यायालय ने भी पुलिस की फर्जी बरामदगी को साक्ष्य मान कर उन्हें उम्र कैद की सज़ा दी  है और उन पर ७०,००० रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है. अदालत के इस फैसले से तो पुलिस और अदालत के व्यवहार में कोई भी अंतर मालूम नहीं पड़ता है. यह मामला बिलकुल बिनायक सेन के मामले से मिलता जुलता है जिस में उसे भी इसी प्रकार के फर्जी दस्तावेजों  की बरामदगी के आधार पर  उम्र कैद की सजा दी गयी और वे बहुत मुश्किल से सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत प़र छूट पाए हैं.

सीमा आजाद और विशव विजय को उम्र कैद की दी गयी सजा के बहुत गंभीर निहितार्थ हैं. एक तो यह है कि पुलिस किसी भी व्यक्ति को जो राज्य का किन्ही कारणों से विरोध कर रहा हो या निर्दोष लोगों को मायोवादी या आतंकवादी कह कर झूठे केसों में फंसाने के विरुद्ध आवाज़ उठा रहा हो उसे झूठे मामले में फंसा कर सजा दिलवा सकती है. दूसरे सब से बड़ी चिंता की बात अदालतों के व्यवहार और आचरण की  है जो कि किसी भी तरह पुलिस से भिन्न दिखाई नहीं देता है. यह देखा गया है कि अधिकतर अदालतें आंख बंद करके पुलिस द्वारा घडी गयी कहानी पर विश्वास करके निर्दोषों को दण्डित कर रही हैं. इस में तो काफी  हद तक राज्य, पुलिस और अदालतों में गठजोड़ की बू आती है. मैंने अपने पुलिस सेवा काल में इस को काफी अंदर  से देखा भी है. मैं जानता हूँ कि किस तरह साम, दाम और दंड भेद  के माध्यम से निचली अदालतों के निर्णय को  प्रभावित किया जाता है. मेरे विचार में  पुलिस  का सामंतवादी और जनविरोधी चरित्र तो सर्वविदित है परन्तु अदालतों का व्यवहार और चरित्र  न्याय और लोकतंत्र के लिए सब से बड़ा खतरा बन गया है. ऐसी परिस्थिति में हमें राज्य और पुलिस  की ज्यादितियों के साथ साथ न्यायपालिका के अन्याय के खिलाफ भी आवाज़ उठानी पड़ेगी वरना हम में से कोई भी राजद्रोह  का दोषी करार दे  कर उम्र कैद से दण्डित किया जा सकता है.

 हम लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ तो आज़ादी के लिए विद्रोह किया था और हमारे कई स्वतंत्रता सेनानी राजद्रोह के आरोप में दण्डित किये गए थे परन्तु अब तो हमारे देश में लोकतंत्र है फिर यहाँ पर राजद्रोह का अपराध कैसे हो सकता है. हमारे लोकतंत्र का यह  सब  से बड़ा दुर्भाग्य  है कि  हमारे वर्तमान शासकों ने सरकार की ज्यादतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाने को ही राजद्रोह का अपराध बना दिया है और उस कानून का खुले आम दुरूपयोग हो रहा है. डॉ. आंबेडकर ने ठीक ही कहा था, " मुझे डर है की स्वतन्त्र भारत में गोरे शासकों का स्थान काले शासक ले लेंगे." उनका यह डर बिलकुल सही साबत हुआ है. एक लोकतान्त्रिक देश में राजद्रोह के अपराध की कोई जगह नहीं हो सकती. इस उपनिवेशी कानून को जल्दी से जल्दी ख़त्म करने के लिए लाम बंद होने की ज़रूरत है.
आईये साथिये हम सब  लोग एक साथ खड़े हो कर पुलिस और अदालतों के अन्याय के विरुद्ध लाम बंद हों और सीमा आजाद और विशव विजय की ज़मानत  पर रिहाई के लिए जन आन्दोलन प्रारंभ करें. हम ने अगर ऐसा नहीं किया तो बशीर बदर के लफ़्ज़ों में "आज अगर खामोश रहे तो कल सन्नाटा छाएगा. हर बस्ती में आग लगेगी हर बस्ती जल जाएगी."

गुरुवार, 7 जून 2012

नव बौद्ध हिन्दू दलितों से बहुत आगे - डॉ. शूरा दारापुरी


नव बौद्ध हिन्दू दलितों से बहुत आगे
-डॉ. शूरा दारापुरी

डॉ. बाबा  साहेब भीम राव आंबेडकर  ने 31 मई ,  1936 को दादर (बम्बई ) में  "धर्म परिवर्तन क्यों? " विषय पर बोलते हुए अपने विस्तृत भाषण में कहा था , " मैं स्पष्ट शब्दों में कहना चाहता हूँ कि मनुष्य धर्म  के लिए नहीं बल्कि  धर्म मनुष्य के लिए है. अगर मनुष्यता की प्राप्ति करनी है तो धर्म परिवर्तन करो. समानता और सम्मान  चाहिए तो धर्म परिवर्तन करो. स्वतंत्रता से जीविका  उपार्जन करना चाहते हो धर्म परिवर्तन करो . अपने परिवार और कौम को  सुखी बनाना चाहते हो तो  धर्म परिवर्तन करो." इसी तरह  14 अक्टूबर, 1956 को धर्म परिवर्तन  करने के बाद बाबा साहेब ने कहा था, " आज मेरा नया जन्म हुआ है."

आइए अब देखा  जाये कि बाबा साहेब ने धर्म परिवर्तन के जिन उद्देश्यों और संभावनाओं का ज़िकर किया था, उन की पूर्ती किस हद तक हुयी है और हो रही है. सब  से पहले यह देखना  उचित होगा कि बौद्ध धर्म परिवर्तन कि गति कैसी है. सन 2001 की जन गणना के अनुसार भारत में बौद्धों की जनसँख्या लगभग ८० लाख है जो कि कुल जन संख्या का लगभग 0.8 प्रतिशत है. इस में परम्परागत बौद्धों की जन संख्या बहुत ही कम है और  यह हिन्दू दलितों में से धर्म परिवर्तन करके  बने  नव बौद्ध ही हैं. इस में सब से अधिक बौद्ध महाराष्ट्र में 58.38 लाख, कर्नाटक  में 4.00  लाख और उत्तर प्रदेश में 3.02 लाख हैं. सन 1991 से सन 2001 की अवधि में बौद्धों की जनसँख्या में 24.54% की वृद्धि हुयी है  जो कि बाकी सभी धर्मों में हुयी वृद्धि से अधिक है. इस से स्पष्ट है कि बौद्धों की जन संख्या  में भारी मात्रा में वृद्धि हुयी है.

अब अगर नव बौद्धों  में आये गुणात्मक परिवर्तन की तुलना हिदू दलितों से की जाये तो यह सिद्ध होता है कि नवबौद्ध हिन्दू दलितों से सभी  क्षेत्रों में  बहुत आगे बढ़ गए हैं जिस से बाबा साहेब के धर्म परिवर्तन के उद्देश्यों की पूर्ती होने की पुष्टि होती है. अगर सन 2001 की जन गणना से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर नव बौद्धों की तुलना  हिन्दू दलितों से की जाये तो नव बौद्ध निम्नलिखित क्षेत्रो में हिन्दू दलितों से बहुत आगे पाए जाते हैं:-

1. लिंग अनुपात :- नव बौद्धों में स्त्रियों और पुरुषों का अनुपात 953 प्रति हज़ार है जबकि हिन्दू दलितों में यह अनुपात केवल 936 ही है. इस से यह सिद्ध होता है कि नव बौद्धों में महिलायों की स्थिति हिन्दू दलितों से बहुत अच्छी है. नव बौद्धों में महिलायों का उच्च अनुपात बौद्ध धर्म में महिलायों के समानता के दर्जे के अनुसार ही है जबकि हिन्दू दलितों में महिलायों का अनुपात हिन्दू धर्म में महिलायों के निम्न दर्जे के अनुसार है. नव बौद्धों में महिलायों का यह अनुपात हिन्दुओं के 931, मुसलमानों के 936, सिक्खों के 893 और जैनियों के 940 से भी अधिक है.

2. बच्चों (0-6 वर्ष तकका लिंग अनुपात:- उपरोक्त जन गणना के अनुसार नव बौद्धों में 0-6 वर्ष तक के बच्चों में लड़कियों और लड़कों का लिंग अनुपात 942 है जब कि हिन्दू दलितों में यह अनुपात 935 है. यहाँ भी लड़के और लड़कियों का लिंग अनुपात धर्म में  उन के स्थान  के अनुसार ही है. नव बौद्धों में यह अनुपात हिन्दुओं के 931, मुसलामानों के 936, सिक्खों के 893 और जैनियों के 940 से भी ऊँचा है.

3. शिक्षा दर :- नव बौद्धों में शिक्षा दर 72.7% है जबकि हिन्दू दलितों में यह दर सिर्फ 54.7% है. नव बौद्धों का शिक्षा दर हिन्दुओं के 65.1% , मुसलमानों के 59.1% और सिक्खों के 69.7% से भी अधिक है. इस से स्पष्ट तौर से  यह सिद्ध होता है कि बौद्ध धर्म में ज्ञान और शिक्षा को अधिक महत्त्व देने के कारण  ही नव बौद्धों ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी तरक्की की है जो कि हिन्दू दलितों कि अपेक्षा बहुत अधिक है.

. महिलायों का शिक्षा दर:- नव बौद्धों में  महिलायों का शिक्षा दर 61.7% है जब कि हिन्दू दलितों में यह दर  केवल 54.7%  ही है. नव बौद्धों में महिलायों का शिक्षा दर हिन्दू महिलायों के 52.3%, और मुसलमानों के 50.1% से भी अधिक है. इस से यह सिद्ध होता है कि नव बौद्धों में महिलायों की शिक्षा की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है.

5. कार्य सहभागिता दर (नियमित रोज़गार):- नव बौद्धों में कार्य सहभागिता दर 40.6% है जब कि हिन्दू दलितों में यह दर 40.4% हैनव  बौद्धों का  कार्य सहभागिता दर हिन्दुओं के  40.4%, मुसलमानों के  31.3%, ईसाईयों के  39.7%, सिखों के  37.7% और जैनियों के  32.7% से भी अधिक है. इस से यह सिद्ध होता है कि नव बौद्ध बाकी  सभी वर्गों के मुकाबले में नियमित नौकरी करने वालों की  श्रेणी में सब से आगे हैं जो कि उनकी उच्च शिक्षा दर के कारण ही संभव हो सका है. इस कारण वे हिन्दू दलितों से आर्थिक तौर पर भी अधिक संपन्न हैं.

उपरोक्त तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट है कि नव बौद्धों में लिंग अनुपात, शिक्षा दर, महिलायों का शिक्षा दर और कार्य सहभागिता  की दर केवल हिन्दू दलितों बल्कि हिन्दुओं, मुसलमानों, सिक्खों और जैनियों से भी आगे है. इस का मुख्य  कारण उन का धर्म परिवर्तन  करके मानसिक गुलामी से मुक्त हो कर प्रगतिशील होना ही है.
इस के अतिरिक्त अलग अलग शोधकर्ताओं द्वारा किये गए अध्ययनों में यह पाया गया है  कि दलितों के जिन जिन परिवारों और उप जातियों ने डॉ. आंबेडकर और बौद्ध  धर्म को अपनाया है उन्होंने हिन्दू दलितों की अपेक्षा अधिक तरक्की की है. उन्होंने ने पुराने गंदे पेशे छोड़ कर नए साफ सुथरे पेशे अपनाये हैं. उन में शिक्षा की ओर अधिक झुकाव पैदा हुआ है. वे भाग्यवाद से मुक्त हो कर अपने पैरों पर खड़े हो गए हैं. वे जातिगत  हीन भावना से मुक्त हो कर अधिक स्वाभिमानी हो गए हैं. वे धर्म के नाम पर होने वाले आर्थिक शोषण से  भी मुक्त हुए हैं और उन्होंने अपनी आर्थिक हालत सुधारी है. उनकी महिलायों और बच्चों की हालत हिन्दू दलितों से बहुत अच्छी है.

उपरोक्त संक्षिप्त विवेचन से यह सिद्ध होता है कि बौद्ध धर्म ही वास्तव में दलितों के कल्याण और मुक्ति का सही मार्ग है . नव बौद्धों ने थोड़े से समय में हिन्दू दलितों के मुकाबले में बहुत तरक्की की है, उन की नव बौद्धों के रूप में एक नयी पहिचान बनी है. वे पहिले की अपेक्षा अधिक स्वाभिमानी और प्रगतिशील बने हैंउन का दुनिया और धर्म के  बारे में नजरिया  अधिक तार्किक  और विज्ञानवादी बना है. नव बौद्धों में  धर्म परिवर्तन के माध्यम से आये परिवर्तन और उन द्वारा की गयी प्रगति से हिन्दू दलितों को प्रेरणा लेनी चाहिए. उन को  हिन्दू धर्म की  मानसिक गुलामी से मुक्त हो कर नव बौद्धों की तरह  आगे बढ़ना चाहिए. वे एक नयी पहिचान प्राप्त कर जातपात के नरक से बाहर निकल कर समानता और स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं. इस के साथ ही नव बौद्धों को भी अच्छे बौद्ध बन कर हिन्दू दलितों के सामने अच्छी उदाहरण पेश करनी चाहिए ताकि बाबा साहेब का भारत को  बौद्धमय बनाने का सपना जल्दी से जल्दी साकार हो सके.





200 साल का विशेषाधिकार 'उच्च जातियों' की सफलता का राज है - जेएनयू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ने किया खुलासा -

    200 साल का विशेषाधिकार ' उच्च जातियों ' की सफलता का राज है-  जेएनयू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ने किया खुलासा -   कुणाल कामरा ...