मंगलवार, 14 मार्च 2017

उदारतावाद का विरोध करो – माओ त्सेतुंग


उदारतावाद का विरोध करो
– माओ त्सेतुंग
7 सितम्बर, 1937

(नोट: माओ त्सेतुंग का यह लेख यद्यपि पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए लिखा गया था परन्तु यह सामान्य जनजीवन के लिए भी उतना ही प्रासंगिक है. आज हमारे जनजीवन में जो व्याधियां व्याप्त हैं वे इसी उदारतावाद की ही देन हैं. इसी लिए मेरे विचार में हम सब लोगों को जो किसी भी क्षेत्र में हों को इस लेख को अवश्य पढ़ना चाहिए ताकि हम लोग उदारतावाद से उपजी बुराईयों पर काबू पा सकें.
दलितों को यह लेख अवश्य पढना चाहिए क्योंकि वर्तमान में वे राजनितिक क्षेत्र में उदारतावाद का सबसे बड़ा शिकार हैं. )

हम सक्रिय विचारधारात्मक संघर्ष का समर्थन करते हैं क्योंकि यह एक ऐसा हथियार है जो हमारे संघर्ष के हित में पार्टी की एकता और क्रन्तिकारी संगठनों की एकता की गारंटी कर देता है. हर कम्युनिस्ट और क्रांतिकारी को चाहिए कि वह इस हथियार का उपयोग करे. लेकिन उदारतावाद विचारधारात्मक संघर्ष से इनकार करता है और सिद्धान्तहीन शांति का समर्थन करता है; इस तरह यह एक सड़े-गले, अधकचरे रुख को जन्म देता है और पार्टी व क्रांतिकारी संगठनों की कुछ इकाईयों और व्यक्तियों को राजनीतिक पतन की ओर ले जाता है.
उदारतावाद विभिन्न रूपों में सामने आता है.
यह मालूम होते हुए भी सम्बंधित व्यक्ति स्पष्टत: गलत है, लेकिन चूँकि वह पुराणी जान-पहचान का है, एक ही इलाके का है, स्कूली दोस्त है, घनिष्ठ मित्र है, प्रियजन है, पुराना सहकर्मी है या पहले मातहत रह चुका है, इसलिए उससे सिद्धांत के आधार पर तर्क न करना, बल्कि शांति और मित्रता बनाये रखने के लिए मामले को घिसटने देना. या फिर मामले को महज़ उपरी तौर पर छू देना, उसका पूरी तरह समाधान न करना जिससे कि अच्छे सम्बन्ध बने रहें. नतीजे के तौर पर संगठन तथा सम्बंधित व्यक्ति दोनों को नुक्सान पहुंचाना. यह पहली किस्म का उदारतावाद है. संगठन के सामने सक्रिय रूप से अपने विचार पेश न करके एकांत में गैर-जिम्मेदारी के साथ आलोचना करना. लोगों के मुंह पर तो कुछ न कहना लेकिन पीठ पीछे बुराई करना, या सभा में तो चुप्पी साधे रहना लेकिन बाद में अनाप-शनाप बकना. सामूहिक जीवन के सिद्धांतों को कतई नज़रंदाज़ करते हुए खुद अपनी मर्ज़ी के मुताबिक चलना. यह दूसरी किस्म का उदारतावाद है.
किसी बात से अगर सीधा ताल्लुक न हो, तो फिर उसकी तरफ से उदासीन हो जाना; यह अच्छी तरह से भी जानते हुए भी कि क्या गलत है, उस बारे में कम बोलना; दुनियादारी से काम लेना और अपनी चमड़ी बचाने की कोशिश करना तथा सिर्फ यह कोशिश करते रहना कि कहीं इलज़ाम अपने सर पर न आ जाये. यह तीसरी किस्म का उदारतावाद है.
आदेशों का पालन न करना बल्कि खुद अपनी राय को सर्वोपरी रखना. संगठन से अपने प्रति विशेष व्यवहार की मांग करना. यह चौथी किस्म का उदारतावाद है.
एकता बढ़ाने, प्रगति करने या काम सुचारू रूप से चलाने के उद्देश्य से गलत विचारों के विरुद्ध संघर्ष या वाद- विवाद करने के बजाए व्यक्तिगत आक्षेप करना, झगड़ा मोल लेना. व्यक्तिगत शिकवे-शिकायतों को सामने लाना, या बदला लेना. यह पांचवीं किस्म का उदारवाद है.
गलत विचारों को सुनकर भी उनका विरोध न करना और यहाँ तक आगे बढ़ जाना कि क्रांति-विरोधी बातों को सुनकर भी उनके बारे में नेतृत्व को खबर न देना, बलि उन्हें चुपचाप बर्दाश्त कर लेना, मानो कुछ हुआ ही न हो. यह छठी किस्म का उदारतावाद है.
जनता के बीच रहकर भी प्रचार और आन्दोलन न करना, अथवा भाषण न देना या जांच-पड़ताल और पूछताछ न करना, बल्कि जनता से कोई वास्ता ही न रखना, उसकी सुख-सुविधायों की तरफ कतई ध्यान न देना: यह भूल जाना कि वह एक कम्यूनिस्ट है और इस तरह व्यवहार करना मानों वह कोई मामूली सा गैर-कम्युनिस्ट हो. यह सातवीं किस्म का उदारतावाद है.
यह देख कर भी कि कोई जनता के हितों को नुक्सान पहुंचा रहा है. क्रोध अनुभव न करना, ऐसे आदमी को मना न करना या न रोकना, अथवा उसे न समझाना-बुझाना, बल्कि उसे यह सब करने देना. यह आठवीं किस्म का उदारतावाद है.
बिना किसी निश्चित योजना या निर्देशन के बेमन से काम करन; लापरवाही से किसी न किसी तरह अपनी डयूटी पूरी करते जाना और जैसे तैसे दिन बिता देना-“जब तक मैं बौद्ध भिक्षु हूँ, घंटी बजाता रहूँगा.” यह नवीं किस्म का उदारतावाद है.
अपने बारे में ऐसा समझना कि मैंने क्रांति के लिए भारी योगदान किया है, बहुत तजरबेकार होने की शेखी बघारना, बड़े काम करने के योग्य होना मगर फिर भी छोटे कामों को हिकारत की नज़र से देखना, काम के प्रति लापरवाह होना और अध्ययन में ढील आने देना. यह दसवीं किस्म का उदारतावाद है.
अपनी गलतियों को जानते हुए भी उन्हें सुधरने का प्रयास न करना और खुद अपने प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाना. यह ग्यारहवीं किस्म का उदारतावाद है.
हम उदारतावाद के और भी अनेक रूप गिना सकते हैं. लेकिन ये ग्यारह मुख्य हैं. ये सब उदारतावाद के ही रूप हैं.
क्रांतिकारी संगठनों के लिए उदारतावाद अत्यंत हानिकारक होता है. उदारतावाद एक ऐसा घुन है जो एकता को खा जाता है, भाईचारे को कमज़ोर बनाता है, काम में निष्क्रियता ला देता है और मतभेद पैदा कर देता है. यह क्रांतिकारी पांतों को ठोस संगठन व कठोर अनुशासन से वंचित कर देता है, नीतियों को पूर्णतया लागू होने से रोक देता है और पार्टी के नेतृत्व में चलने वाली जनता को पार्टी-संगठनों से अलग कर देता है. यह एक हद्द दर्जे की एक बुरी प्रवृति है.
उदारतावाद का जन्म निम्न-पूंजीपति वर्ग की स्वार्थपरता से होता है. यह व्यक्तिगत हितों को सर्वोपरी रखता है और क्रांति के हितों को दूसरा स्थान देता है, और यह स्थिति विचारधारात्मक, राजनीतिक व संगठनात्मक उदारतावाद को उत्पन्न कर देती है.
उदारतावादी लोग मार्क्सवाद के सिद्धांतों को महज़ खोखले जड़सूत्रों के रूप में देखते हैं. वे मार्क्सवाद को स्वीकार तो करते हैं, लेकिन उस पर अमल करने या पूर्णतया अमल करने के लिए तैयार नहीं होते. ऐसे लोगों के पास मार्क्सवाद होता तो है, किन्तु साथ ही साथ उनके पास उदारतावाद भी होता है- वे बातें तो मार्क्सवाद की करते हैं पर अमल उदारतावाद पर करते है; वे दूसरों पर तो मार्क्सवाद लागू करते हैं, और खुद अपने लिए उदारतावाद बरतते हैं. उनके झोले में दोनों ही तरह का माल रहता है, जहाँ जैसा मौका देखा वहां उस तरह का भिड़ा दिया. कुछ लोगों का दिमाग इसी तरह काम करता है.
उदारतावाद अवसरवाद का ही एक रूप है और मार्क्सवाद का उससे बुनियादी विरोध है. उसका स्वरूप नकारात्मक है और वस्तुगत रूप में वह शत्रु के लिए सहायक बन जाता है; यही कारण है कि शत्रु हमारे बीच उदारतावाद के बने रहने का स्वागत करता है. जब उसका स्वरूप इस तरह का है, तो फिर क्रांतिकारी पांतों में उसे कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए.
उदारतावाद पर, जो एक नकारात्मक भावना है, विजय पाने के लिए हमें मार्क्सवाद का, जो एक सकारात्मक भावना है, इस्तेमाल करना चाहिए. एक कम्युनिस्ट का हृदय विशाल होना चाहिए, और उसे निष्ठावान व सक्रिय होना चाहिए, क्रांति के हितों को उसे अपने प्राणों से भी ज्यादा मूल्यवान समझना चाहिए और अपने व्यक्तिगत हितों को क्रांति के हितों के अधीन रखना चाहिए; उसे हर जगह और हमेशा सही सिद्धांतों पर डटे रहना चाहिए और सभी गलत विचारों और कामों के विरुद्ध अथक संघर्ष `चलाना चाहिए ताकि पार्टी की सामूहिक जिंदगी और अधिक ठोस बने तथा पार्टी और जन-समुदाय के बीच की कड़ियाँ और अधिक मज़बूत हों; उसे किसी व्यक्ति-विशेष से अधिक पार्टी और जन-समुदाय की चिंता होनी चाहिए और अपने से अधिक दूसरों का ध्यान रखना चाहिए. सिर्फ तभी उसे कम्यूनिस्ट माना जायेगा.
तमाम वफादार, ईमानदार, सक्रिय व सच्चे कम्युनिस्टों को चाहिए कि वे एकताबद्ध होकर हमारे बीच कुछ लोगों के अन्दर पैदा हुयी उदारतावादी प्रवृतियों का विरोध करें और उन्हें सही रास्ते पर ले आयें. यह विचारधारात्मक मोर्चे पर हमारे कार्यों में से एक है.


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