शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2021

गुरु रविदास जन्मस्थान सीर गोवर्धनपुर बनारस मुक्ति संग्राम

          गुरु रविदास जन्मस्थान सीर गोवर्धनपुर बनारस मुक्ति संग्राम

      -    एस आर दारापुरी, आईपीएस (से. नि.)   

 


 

सभी लोग जानते हैं कि गुरु रविदास (रैदास) का जन्म काशी में हुआ था। कुछ विद्वानों के अनुसार गुरु रविदास का जन्म मंडवाडीह में हुआ था क्योंकि वहाँ पर उनका एक पुराना मंदिर भी है। संत कबीर का जन्म भी लहरतारा में हुआ था और वे गुरु रविदास के पड़ोसी थे परंतु पंजाब के लोगों का निश्चित मत है कि गुरु रविदास का जन्म बीएचयू के पास सीर गोवर्धनपुर में हुआ था। पंजाब में संत सरवन दास, डेरा सचखन्ड बललां (जालंधर) द्वारा सीर गोवर्धनपुर को गुरु रविदास का जन्मस्थान मानते हुए एक भव्य मंदिर का निर्माण करने का निर्णय लिया गया था। इसका नींव पत्थर संत हरी दास द्वारा रखा गया था और इसका निर्माण कार्य 1965 में शुरू हुआ था।

1979 में जब मेरी पोस्टिंग बनारस में हुई तो उस समय मंदिर का मामला झगड़े में पड़ा हुआ था। उस समय मंदिर का एक हाल तथा एक मुख्य कमरा जिसमें गुरु रविदास की मूर्ति रखी हुई थी का ही निर्माण हुआ था। झगड़े का मुख्य कारण यह था कि बंता राम घेढ़ा, अध्यक्ष आल इंडिया आदिधर्म मिशन (पंजाब) ने इस मंदिर पर इस आधार पर कब्जा कर लिया था कि संत सरवन दास ने उन्हें 1972 में एक अधिकार पत्र दे दिया था जिसमें यह लिखा था कि इस मंदिर के पूरे प्रबंध की जिम्मेदारी बंता राम घेढ़ा को दी जाती है। इसके आधार पर उन्होंने मंदिर पर कब्जा करके प्रबंध का पूरा काम स्थानीय निवासी शंकर दास तथा मेवा लाल आदि को दे दिया था। वे लोग मंदिर के मूर्ति वाले कमरे पर कब्जा करके बैठे थे और वहाँ पर दान पात्र में जो भी दान आता था निकाल कर खा जाते थे। बनारस में रविदास जयंती आदि मनाने की अनुमति लेने तथा उसमें मंदिर में चढ़ावा आदि पर भी उनका ही कब्जा था। एक दिन जब मैं सीर गोवर्धनपुर गया तो वहाँ पर मुझे डेरा की तरफ से भोला राम तथा संत सुरेन्द्र दास मिले। उन्होंने मुझे बताया कि शंकर दास वगैरा ने मंदिर के मुख्य कमरे पर कब्जा कर रखा है और वे उन्हें कोई काम नहीं करने नहीं दे रहे। उन्होंने मुझे उस पत्र की  प्रतिलिपि दिखाई जिसके आधार पर बंता राम घेढ़ा ने मंदिर पर कब्जा कर रखा था। जब मैंने उस पत्र को पढ़ा तो पाया कि उसमें लिखा हुआ था कि रविदास मंदिर का निर्माण डेरा बललां द्वारा करवाया जा रहा है और यह पूरी रविदासिया कौम की मलकीयत होगी। इसका पूरा प्रबंध आल इंडिया आदिधर्म मिशन द्वारा किया जाएगा और इसमें किसी का कोई दखल नहीं होगा। इस पर संत सरवन दास, भोला राम और  बंता राम घेढ़ा के हस्ताक्षर थे और यह आल इंडिया आदिधर्म मिशन के पैड पर था। मैंने इसके बारे में भोला राम से पूछा तो उसने बताया कि यह कागज तो सही है। संत सरवन दास ने यह लिख कर दिया था। इस पर मैंने भोला राम को कहा कि मंदिर बचाने के लिए आपको थोड़ा झूठ बोलना होगा। आपको यह कहना होगा कि उक्त पत्र पर मेरे हस्ताक्षर फर्जी हैं और संत सरवन दास जो उस समय तक वह ब्रह्मलीन हो चुके थे, के हस्ताक्षर भी फर्जी हैं। इस आधार पर हम लोग बंता राम के मंदिर पर कब्जे को चुनौती दे सकते हैं। इस पर भोला राम जो बललां के पास अहिमा काजी के रहने वाले थे, मेरे प्रस्ताव पर सहमत हो गए। इस के बाद मैंने भोला राम की तरफ से बंता राम के विरुद्ध अवैध ढंग से मंदिर पर कब्जा करने का शिकायती पत्र जिला प्रशासन को भिजवाया।

इस झगड़े के कारण निर्माण कार्य रुका हुआ था क्योंकि बंता राम का कहना था कि इसके निर्माण के लिए जो भी पैसा लगाना है वह हमें दिया जाए, निर्माण कार्य हम करवाएंगे, इसी लिए उन्होंने मंदिर में डेरा बललां के नाम से लगा हुआ पत्थर भी उखड़वा कर अपना पत्थर लगवा दिया था। शंकर दास वहाँ पर डेरे के रह रहे लोगों के साथ गाली गलौच करते थे और उन्हें नल से पानी नहीं लेने देते थे। एक बार तो मैंने औरतों को गाली देते हुए स्वयं सुना था। वास्तव में वे चाहते थे कि वहाँ पर पंजाब का कोई आदमी नहीं रुके। एक बार जब पंजाब के कुछ लोग वहाँ गए तो शंकर दास ने यह दरखास्त दे दी कि यह खालिस्तानी लोग हैं जो मंदिर  पर कब्जा करने के लिए आए हैं। इस पर मैंने जिला प्रशासन को

 बताया कि ये सब डेरा के लोग हैं। एक बार शंकर दास ने जिला प्रशासन से मिल कर मंदिर में पुलिस चौकी खुलवा दी थी जिसका मैंने विरोध करवाया और पुलिस चौकी हटवाई गई।

एक बार शंकर दास के आदमी मंदिर के हाल जिसमें भोला राम वगैरह रुकते थे, से काफी सामान दरी, बर्तन, पंखा आदि उठा कर ले गए। इस पर मैंने उनके विरुद्ध थाना लंका पर चोरी का केस दर्ज करवाया। शंकर दास ने मेरे विरुद्ध भी मुख्य मंत्री को शिकायत भेजी थी कि मैं मंदिर के मामले में दखल दे रहा हूँ। इस दौर में पैरवी का पूरा काम भोला राम देखते थे और उनके साथ संत सुरेन्द्र दास लगातार रहते थे। मेरा यह निश्चित मत है कि यदि भोला राम ने मंदिर को मुक्त कराने की इतनी पैरवी न की होती और उस समय मेरी वहाँ पर पोस्टिंग नहीं होती तो शायद मंदिर को मुक्त कराना संभव नहीं होता। बंता राम द्वारा मंदिर में लगाए गए झगड़े के कारण मंदिर निर्माण का काम बहुत सालों तक रुका रहा। यह काम 1991 जब मेरा बनारस से लखनऊ स्थानांतरण हुआ, तक भी शुरू नहीं हो सका था परंतु मंदिर डेरे के कब्जे में आ गया था। मेंरे विचार में डेरे से जुड़े सभी लोगों को श्री गुरु रविदास जन्मस्थान सीर गोवर्धनपुरा की मुक्ति के इस इतिहास को जरूर जानना चाहिए।

 

मंगलवार, 31 अगस्त 2021



हमारा गणराज्य कितना धर्म निरपेक्ष?
एस. आर. दारापुरी आई. पी. एस. (से.नि.)
 (इतिहास के झरोखे से)
हम सब लोग अवगत हैं कि हमारे देश के संविधान के अनुसार हमारा गणराज्य धर्म निरपेक्ष गणराज्य है जिस का अर्थ है कि राज्य का कोई भी धर्म नहीं है. इस कारण राज्य के काम काज में धर्म का कोई दखल नहीं होगा. इस से अपेक्षा की जाती है कि राज्य का काम करने वाली विधायका, कार्यपालिका और न्याय पालिका भी धर्म निरपेक्ष होगी और इन में कार्यरत्त व्यक्ति भी पूर्णतया धर्म निरपेक्ष आचरण करेंगे. परन्तु अब तक गणराज्य के व्यवहार से ऐसा होना नहीं पाया गया है. इस के कुछ ऐतहासिक उदाहरण निम्न हैं:-
1. 14 अगस्त, 1947 की रात को 12 बजे जब आज़ादी का झंडा फहराया गया था उस से तीन घंटा पहले नेहरु और उनके साथी दिल्ली में एक पवित्र अग्नि के इर्द गिर्द बैठे थे और इस कर्मकांड के लिए तंजौर से खास तौर पर बुलाये गए पुजारियों ने मन्त्र पढ़े थे और उन के ऊपर पवित्र जल छिड़का था. महिलाओं के माथे पर संधूर का तिलक लगाया गया था. इस के तीन घंटे बाद हिन्दू ज्योतिशियों द्वारा निर्धारित दिन और समय पर मध्य रात्रि में नेहरु ने राष्ट्र ध्वज फहरा कर ब्रोडकास्ट द्वारा देशवासियों को बताया था कि उन की भाग्य के साथ पूर्व निश्चित भेंट हो गयी है और भारत गणराज्य का जन्म हो गया है. ( सन्दर्भ: दा इंडियन आइडियोलॉजी – पैरी एंडरसन , पृष्ठ 103)
2. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बहुत धर्म भीरु हिन्दू थे. दुर्भाग्य से कायस्थ होने के कारण वे शूद्र वर्ग में आते थे. इस कारण उन का सामाजिक दर्जा निम्न था जिस के उच्चीकरण के लिए उन्हें काशी की विद्वत जन सभा से आशीर्वाद प्राप्त करना ज़रूरी था. अतः 1950 में राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद वे काशी गए. वहां पर उन्होंने विद्वत जनसभा के 200 ब्राह्मण सदस्यों के चरण धोये और उन्हें दक्षिणा दी.
डॉ. राजेद्र प्रसाद के इस कृत्य से दुखी हो कर डॉ. राम मनोहर लोहिया ने अपनी पुस्तक “ दा कास्ट सिस्टम “ के प्रारंभ में ही लिखा था, “भारतीय लोग इस पृथ्वी के सब से अधिक उदास लोग हैं........भारत गणराज्य के राष्ट्रपति ने बनारस शहर में शरेआम दो सौ ब्राह्मणों के चरण धोये. शरेआम दूसरे के चरण धोना भोंडापन है, इसे केवल ब्राह्मणों तक ही सीमित रखना एक दंडनीय अपराध होना चाहिए. इस विशेषाधिकार प्राप्त जाति में केवल ब्राह्मणों को बिना विद्वता और चरित्र का भेदभाव किये शामिल करना पूरी तरह से विवेकहीनता है और यह जाति व्यवस्था और पागलपन का पोषक है.
राष्ट्रपति का ऐसे भद्दे प्रदर्शन में शामिल होना मेरे जैसे लोगों के लिए निर्मम अभ्यारोपण है जो केवल दांत पीसने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते.” ( The Caste System- Lohia, page 1 & 2)
3. (क ) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने जब राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्रपति में प्रवेश किया तो उन्होंने सब से पहले राष्ट्रपति भवन में कार्यरत सभी मुस्लिन खानसामों (रसोईयों) को हटा दिया. नेहरु इस से बहुत नाराज़ हुए. इस पर उन्होंने आदेश दिया कि सभी मुस्लिम खानसामों को हिन्दू खानसामों की जगह प्रधान मंत्री के निवास पर लगा दिया जाये जब कि इस से सुरक्षा अधिकारी नाखुश थे.
3.(ख) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की एक अन्य हरकत से नेहरु बहुत नाराज़ थे जब वह राष्ट्रपति के रूप में सोमनाथ मंदिर, जिस का जीर्णोद्धार किया गया था, में शिवलिंग की स्थापना समारोह में भाग लेने गए थे. नेहरु को यह पता चला था कि खाद्य और कृषि मंत्री ने सरदार पटेल से मिल कर चीनी का मूल्य बढ़ाया था और उस बढ़ी कीमत में से आधा पैसा चीनी मिल वालों ने रख लिया था और आधा पैसा सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार में लगाया गया था. नेहरु को यह सूचना काफी देर से मिली थी जबकि इस सम्बन्ध में कुछ भी करना संभव नहीं था. यह भी ज्ञातव्य है कि नेहरु ने राजेन्द्र प्रसाद जी को वहां पर जाने से लिखित रूप में मना किया था परन्तु वह नहीं माने. (सन्दर्भ: Reminiscences of the Nehru Age – M.O.Mathai , p- 71))
4.डॉ. राजेन्द्र प्रसाद हनुमान भक्त थे. इसी लिए जब वे राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो उन्होंने राष्ट्रपति भवन में कई लंगूर रख लिए जिन्हें वे अपने हाथ से खिलाते थे. जल्दी ही इन लंगूरों की जन संख्या में काफी वृद्धि हो गयी. ये लंगूर आस पास के रिहाइशी इलाकों के घरों में घुस कर सामान उठा लाते थे और नार्थ ब्लाक तथा साऊथ बलाक में घुस कर पत्रावलियां तथा टिफिन आदि उठा लाते थे परन्तु इन के उत्पात के विरुद्ध कुछ भी करना संभव नहीं था. राष्ट्रपति भवन के पास रहने वाले लोगों तथा सचिवालय के कर्मचारियों को तब राहत मिली जब राजेन्द्र प्रसाद जी राष्ट्रपति के पद से मुक्त हो गए और वे सभी लंगूर पकड़ कर दिल्ली के चिड़िया घर में पहुंचा दिए गए.
5. पंडित मदन मोहन मालवीय एक कट्टर सनातनी हिन्दू थे जो मुसलमानों, ईसाईयों और विदेशियों को अछूत मानते थे. वह जब भी इंगलैंड जाते थे तो अपने गंगा जल के कई लोटे ले जाते थे. वहां पर जब भी कोई अँगरेज़ या निम्न जाति का हिन्दू उन के कमरे में मिलने के लिए आता था तो वह उस के जाने के बाद कमरे को गंगा जल छिड़क कर पवित्र करते थे. कट्टर हिन्दू आज भी पञ्च गव्या; गाय का पेशाब, गोबर, मक्खन और दूध का मिश्रण बना कर मंदिर और तालाब का शुद्धिकरण करते हैं. (सन्दर्भ: Thus Spoke Ambedkar Vol. IV pages 101 & 102)
6. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद कट्टर सनातनी हिन्दू थे. जब डॉ. आंबेडकर ने कानून मंत्री के रूप में नेहरु जी की सहमती से लोक सभा हिन्दू कोड बिल पेश किया था तो डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने हिन्दू कोड बिल का विरोध किया था जैसाकि अन्य कट्टर हिन्दू सदस्य और संगठन कर रहे थे. परिणाम स्वरूप हिन्दू कोड बिल पास नहीं हो सका और इस से नाराज़ हो कर डॉ. आंबेडकर ने नेहरु मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था.
...........जारी है.

 

शनिवार, 31 जुलाई 2021

दलित बच्चों के अविकसित होने की संभावना अधिक

 

         दलित बच्चों के अविकसित होने की संभावना अधिक

-                                             हिमांशी धवन 

                   

यह सर्वविदित हैभारत में दुनिया में सबसे अधिक अविकसित बच्चे हैं, (एनएफएचएस के आंकड़ों के अनुसार 40.6 मिलियन बच्चे) जो पांच साल से कम उम्र के कुल अविकसित बच्चों के वैश्विक कुल का एक तिहाई प्रतिनिधित्व करते हैं, । अब, अशोका यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इकोनॉमिक डेटा एंड एनालिसिस द्वारा प्रकाशित एक डेटा नैरेटिव से पता चलता है कि जिन क्षेत्रों में जाति-आधारित अस्पृश्यता अधिक है, वहां दलित बच्चों में स्टंटिंग की संभावना अधिक है, जैसे कि बीमारू राज्य (बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) )

इससे पता चलता है कि खराब स्वच्छता या मां की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी जैसी भेदभावपूर्ण प्रथाएं बच्चे की ऊंचाई और स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती हैं।

एनएफएचएस के आंकड़ों के अनुसार, उप-सहारा अफ्रीका (एसएसए) के 30 देशों के औसत की तुलना में भारत में स्टंटिंग की औसत घटना 13% अधिक है। स्टंटिंग को कई कारणों से जिम्मेदार ठहराया गया था जैसे कि जन्म क्रम और बेटे की पसंद (पहले जन्मों के बौने होने की संभावना कम होती है, लेकिन फिर स्टंटिंग किक खासकर अगर अन्य बच्चे लड़कियां हैं) रोग प्रसार (खुले में शौच और साफ पानी की कमी) और आनुवंशिक अंतर।

द मिसिंग पीस ऑफ़ द पज़ल: कास्ट डिस्क्रिमिनेशन एंड स्टंटिंग नामक अपने पेपर में, लेखक अश्विनी देशपांडे और राजेश रामचंद्रन ने पाया कि एससी / एसटी, ओबीसी, यूसी (Upper caste) मुसलमानों की तुलना में उच्च जाति के हिंदुओं में स्टंटिंग की दर बहुत कम है। एसएसए में 31% बच्चों की तुलना में उच्च जाति के हिंदुओं के बच्चों के लिए स्टंटिंग की घटनाएं 26% थीं। इसकी तुलना में, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के 40% बच्चे स्टंटिंग से पीड़ित हैं, 36% ओबीसी समुदाय से और 35% उच्च जाति मुस्लिम समुदाय से हैं।

देशपांडे ने कहा, "हिंदुओं की 23% तुलना में अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के 58 फीसदी के घरों में शौचालय की सुविधा नहीं है, और उच्च जाति के हिंदुओं के लिए मातृ साक्षरता 83 फीसदी है, जबकि एससी-एसटी के लिए यह 51 फीसदी है।"

(अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद: एस आर दारापुरी)

साभार: टाइम्स आफ इंडिया

बुधवार, 28 जुलाई 2021

बौद्ध धर्म अपनाने से दलितों में साक्षरता, लैंगिक समानता और कल्याण आया

 

बौद्ध धर्म अपनाने से दलितों में साक्षरता, लैंगिक समानता और कल्याण आया

-     मनु मौदगिल 

 

भारत में 84 लाख से अधिक बौद्ध हैं और उनमें से 87% अन्य धर्मों से धर्मान्तरित हैं, ज्यादातर दलित जिन्होंने हिंदू जाति के उत्पीड़न से बचने के लिए धर्म बदल दिया। शेष 13% बौद्ध उत्तर-पूर्व और उत्तरी हिमालयी क्षेत्रों के पारंपरिक समुदायों के हैं।

2011 की जनगणना के आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार, आज ये बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए हैं (जिन्हें नव-बौद्ध भी कहा जाता है) अनुसूचित जाति हिंदुओं की तुलना में बेहतर साक्षरता दर, अधिक कार्य भागीदारी और लिंग अनुपात का आनंद लेते हैं।

यह देखते हुए कि भारत में बौद्ध आबादी में 87% धर्मांतरित हैं और उनमें से अधिकांश दलित हैं, हमारा विश्लेषण इस धारणा के साथ जाता है कि समुदाय में विकास का लाभ ज्यादातर दलितों को मिलता है।

जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, बौद्धों की साक्षरता दर 81.29% है, जो राष्ट्रीय औसत 72.98 % से अधिक है। हिंदुओं में साक्षरता दर 73.27% है जबकि अनुसूचित जातियों की साक्षरता दर 66.07% कम है।

5 मई, 2017 की सहारनपुर हिंसा के आरोपी सक्रिय संगठन भीम आर्मी के नेता सतपाल तंवर ने कहा, "प्रशासन के वरिष्ठ स्तर पर अधिकांश दलित बौद्ध हैं।" "ऐसा इसलिए है क्योंकि बौद्ध धर्म उन्हें जाति व्यवस्था की तुलना में आत्मविश्वास देता है जो बुरे कर्म जैसी अस्पष्ट अवधारणाओं के माध्यम से उनकी निम्न सामाजिक स्थिति को युक्तिसंगत बनाती है।"

बेहतर साक्षरता दर

यह केवल पूर्वोत्तर के पारंपरिक समुदायों में है, विशेष रूप से मिजोरम (48.11%) और अरुणाचल प्रदेश (57.89%) में, बौद्धों की साक्षरता दर जनसंख्या औसत से कम है।

दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ (87.34%), महाराष्ट्र (83.17%) और झारखंड (80.41%) में साक्षर बौद्धों की संख्या सबसे अधिक है। धर्मांतरण आंदोलन महाराष्ट्र में सबसे मजबूत रहा है, इसके बाद मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश का स्थान है। (स्रोत: जनगणना 2011; नोट: जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में आंकड़े)

महाराष्ट्र की कहानी अद्वितीय है क्योंकि अन्य भारतीय राज्यों की तुलना में इसकी आबादी में बौद्धों का अनुपात (5.81%) सबसे अधिक है – 65 लाख  से अधिक। यह बी आर अंबेडकर का गृह राज्य था जहां उन्होंने 1956 में 6 लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। जातिवाद के खिलाफ विरोध का यह रूप आज भी जारी है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 17 जून, 2017 की रिपोर्ट में बताया है कि ऐसे धर्मांतरणों की वृद्धि दर में गिरावट है

उत्तर प्रदेश में, 68.59% बौद्ध साक्षर हैं, जो कुल जनसंख्या औसत (67.68%) से अधिक है और अन्य अनुसूचित जातियों (60.88%) के आंकड़े से लगभग आठ प्रतिशत अंक अधिक है।

बेहतर लिंग अनुपात

भारत में बौद्धों के बीच महिला साक्षरता भी कुल जनसंख्या औसत (64.63%),  की तुलना में काफी अधिक (74.04%) है। नव-बौद्ध राज्यों में, केवल उत्तर प्रदेश (57.07%) और कर्नाटक (64.21%) में महिला साक्षरता दर कुल जनसंख्या औसत से कम है, लेकिन ये अभी भी इन दोनों राज्यों में अनुसूचित जातियों की तुलना में काफी अधिक हैं।(स्रोत: जनगणना 2011)

महिला जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में आंकड़े

2011 में, कुल अनुसूचित जातियों के लिए 945 की तुलना में बौद्धों में लिंग अनुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 965 महिलाएं हैं। राष्ट्रीय औसत लिंगानुपात 943 था। बौद्धों में भी कम बच्चे होते हैं।

2011 की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि बौद्धों के बीच 0-6 वर्ष आयु वर्ग में 11.62% बच्चे हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 13.59% है। इसका अर्थ यह हुआ कि प्रत्येक सौ जनसंख्या पर बौद्धों के औसत से दो बच्चे कम हैं।

लेकिन क्या यह कहा जा सकता है कि नव-बौद्धों का झुकाव दलितों से ज्यादा शिक्षा की ओर है? या क्या इस बात की अधिक संभावना है कि दलित शिक्षा प्राप्त करने के बाद बौद्ध धर्म की ओर मुड़ें?

कुल जनसंख्या औसत 31% की तुलना में लगभग 43 % बौद्ध शहरी क्षेत्रों में रहते हैं, जिससे उनके शिक्षित होने की संभावना भी बढ़ जाती है। लेकिन वास्तविकता इतनी सरल नहीं है।

लगभग 80% बौद्ध महाराष्ट्र से हैं, जिसमें राष्ट्रीय औसत से बेहतर साक्षरता और शहरी अनुपात है। महाराष्ट्र के भीतर, बौद्धों के बीच साक्षरता दर, शहरीकरण स्तर और बाल अनुपात अन्य समूहों की तुलना में थोड़ा बेहतर है।

महाराष्ट्र की कहानी: कैसे महारों ने बेहतर जीवन पाया

महाराष्ट्रीयन बौद्धों के बीच विकास को अम्बेडकर की शिक्षा और कुछ सामाजिक परिस्थितियों के आह्वान के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

अम्बेडकर महार समुदाय से थे, जिनके पास बहुत कम कृषि भूमि थी और ग्रामीण समाज में कोई निश्चित पारंपरिक व्यवसाय नहीं था। वे अक्सर अपने गांवों की परिधि में रहते थे और चौकीदार, दूत, दीवार की मरम्मत करने वाले, सीमा विवाद के निर्णायक, सड़क पर सफाई करने वाले आदि के रूप में काम करते थे।

पेशे के इस लचीलेपन ने सुनिश्चित किया कि महार दूसरों की तुलना में अधिक मोबाइल थे। अम्बेडकर के पिता सहित उनमें से कई ब्रिटिश सेना में शामिल हो गए। अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म ग्रहण करने से पहले ही दलितों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए कहा था।

महाराष्ट्र के नव-बौद्धों की आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने वाले सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर नितिन तगाड़े  ने कहा, "खेत भूमि की कमी या पारंपरिक व्यवसाय ने महारों के लिए शिक्षा को लाभकारी रोजगार के साधन के रूप में लेना आसान बना दिया है।" "इसलिए, शिक्षा प्राप्त करने और शहरों में जाने के लिए अन्य समुदायों की तुलना में उनकी शुरुआत हुई।"

2011 की जनगणना के अनुसार, महाराष्ट्र राज्य के औसत 45.22% की तुलना में लगभग 47.76% बौद्ध शहरों में रहते हैं। ग्रामीण महाराष्ट्र में, अधिकांश कामकाजी बौद्ध कृषि मजदूर (67%) हैं, जो ग्रामीण जनसंख्या औसत से बहुत अधिक है। 41.50% का।

शिक्षा के माध्यम से उनकी बेहतर सामाजिक स्थिति ने नव-बौद्धों को अनुसूचित जातियों की तुलना में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अधिक योगदान देने में मदद की है। उनका कार्य भागीदारी अनुपात (43.15 %) कुल अनुसूचित जातियों (40.87%) से अधिक है और राष्ट्रीय औसत (39.79%) से भी अधिक है।

(मौदगिल एक स्वतंत्र पत्रकार और भारत सरकार के मॉनिटर के संस्थापक-संपादक हैं, जो जमीनी स्तर और विकास पर एक वेब पत्रिका है।)

(अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद: एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट)

साभार: इंडियास्पेन्ड, 1 जुलाई , 2017

 

200 साल का विशेषाधिकार 'उच्च जातियों' की सफलता का राज है - जेएनयू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ने किया खुलासा -

    200 साल का विशेषाधिकार ' उच्च जातियों ' की सफलता का राज है-  जेएनयू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ने किया खुलासा -   कुणाल कामरा ...