मंगलवार, 27 मार्च 2012

क्या मायावती का दलित वोट बैंक खिसका है? एस. आर. दारापुरी आई. पी.एस. (से. नि.)

क्या मायावती का दलित वोट बैंक खिसका है?
एस. आर. दारापुरी आई. पी.एस. (से. नि.)

हाल में उत्तर प्रदेश में असेम्बली के चुनाव परिणाम घोषित होने पर मायावती ने अपनी हार के कारण गिनाते हुए यह दावा किया था कि बेशक वह यह चुनाव हार गयी हैं परन्तु उसका दलित वोट बैंक बिलकुल बरकरार है. अब अगर चुनाव परिणामों का विश्लेषण किया जाये तो मायावती का यह दावा बिलकुल खोखला साबित होता है.

आईये सब से पहले उत्तर प्रदेश में दलितों कि आबादी देखी जाये और फिर उसमें मायावती को मिले वोटों का आंकलन किया जाये. उत्तर प्रदेश में दलितों कि आबादी कुल आबादी का २१% है और उनमे लगभग ६६ उपजातियां हैं जो सामाजिक तौर पर बटी हुयी हैं. इन उप जातियों में जाटव /चमार - ५६.३%, पासी - १५.९%, धोबी, कोरी और बाल्मीकि - १५.३%, गोंड, धानुक और खटीक - ५% हैं. नौ अति- दलित उप जातियां - रावत, बहेलिया खरवार और कोल ४.५% हैं. शेष ४९ उप जातियां लगभग ३% हैं.
चमार/ जाटव आजमगढ़, आगरा, बिजनौर , सहारनपुर, मुरादाबाद, गोरखपुर, गाजीपुर, सोनभद्र में हैं. पासी सीतापुर, राय बरेली, हरदोई, और इलाहाबाद जिलों में हैं. शेष समूह जैसे धोबी, कोरी, और बाल्मीकि लोगों की अधिकतर आबादी बरेली, सुल्तानपुर, और गाज़ियाबाद जनपदों में है.
आबादी के उपरोक्त आंकड़ों के आधार पर अगर मायावती की बसपा पार्टी को अब तक बिभिन्न चुनावों में मिले दलित वोटों और सीटों का विश्लेषण करना उचित होगा. अब अगर वर्ष २००७ में हुए विधान सभा चुनाव का विश्लेष्ण किया जाये तो यह पाया जाता है कि इस चुनाव में
बसपा को ८९ अरक्षित सीटों में से ६२ तथा समाजवादी (सपा) पार्टी को १३, कांग्रेस को ५ तथा बीजेपी को ७ सीटें मिली थीं. इस चुनाव में बसपा को लगभग ३०% वोट मिला था. इस से पहले २००२ में बसपा को २४ और सपा को ३५ अरक्षित सीटों में विजय प्राप्त हुई थी. वर्ष २००४ में हुए लोक सभा चुनाव में बसपा को कुल आरक्षित १७ सीटों में से ५ और सपा को ८ सीटें मिली थी और बसपा का वोट बैंक ३०% के करीब था.

वर्ष २००९ में हुए लोक सभा चुनाव में बसपा को आरक्षित १७ सीटों में से २ , सपा को १० और कांग्रेस को २ सीटें मिली थीं. इस चुनाव में बसपा का वोट बैंक २००७ में मिले ३०% से गिर कर २७ % पर आ गया था. इसका मुख्य कारण दलित वोट बैंक में आई गिरावट थी क्योंकि तब तक मायावती के बहुजन के फार्मूले को छोड़ कर सर्वजन फार्मूले को अपनाने से दलित वर्ग का काफी हिस्सा नाराज़ हो कर अलग हो गया था. यह मायावती के लिए खतरे की पहली घंटी थी परन्तु मायावती ने इस पर ध्यान देने की कोई ज़रुरत नहीं समझी.

अब अगर २०१२ के विधान सभा चुनाव को देखा जाये तो इस में मायावती की हार का मुख्य कारण अन्य के साथ साथ दलित वोट बैंक में आई भारी गिरावट भी है. इस बार मायावती ८५ आरक्षित सीटों में से केवल १५  ही जीत पायी है जबकि सपा ५५  सीटें जीतने में सफल रही है. इन ८५ आरक्षित सीटों में ३५ जाटव/चमार और २५ पासी जीते हैं. इस में सपा के २१ पासी और मायावती के २ पासी ही जीते हैं मायावती की १६ आरक्षित सीटों में से २ पासी और १३ जाटव/चमार जीते हैं. इस विश्लेषण से स्पष्ट है कि इस बार मायावती की आरक्षित सीटों  पर हार का मुख्य कारण दलित वोटों में आई गिरावट भी है. इस बार मायावती का कुल वोट प्रतिशत २६% रहा है जो कि २००७ के मुकाबले में लगभग ४% घटा है.
मायावती दुआरा २०१२ में जीती गयी १५  आरक्षित सीटों का विश्लेषण करने से पाता चलता है कि उन्हें यह सीटें अधिकतर पशिचमी उत्तर प्रदेश में ही मिली हैं यहाँ पर उसकी जाटव उपजाति अधिक है. मायावती को पासी बाहुल्य क्षेत्र में सब से कम और कोरी बाहुल्य क्षेत्र में भी बहुत कम सीटें मिली हैं. पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश में यहाँ प़र चमार उपजाति का बाहुल्य है वहां पर भी मायावती को बहुत कम सीटें मिली हैं.  मायावती को पशिचमी उत्तर प्रदेश से ७ और बाकि उत्तार प्र्स्देस से कुल ८ सीटें मिली हैं. इस चुनाव में यह भी उभर कर आया है कि जहाँ एक ओर मायावती का पासी, कोरी, खटीक, धोबी और बाल्मीकि वोट खिसका है वहीँ दूसरी ओर चमार/जाटव वोट बैंक जिस में लगभग ७०% चमार (रैदास) और ३०% जाटव हैं में से अधिकतर चमार वोट भी  खिसक गया है. इसी कारण से मायावती को केवल पशिचमी उत्तर परदेश जो कि जाटव बाहुल्य क्षेत्र है में ही अधिकतर सीटें मिली हैं. एक सर्वेक्षण के अनुसार मायावती का लगभग ८% दलित वोट बैंक टूट गया है.

मायावती के दलित वोट बैंक खिसकने का मुख्य कारण मायावती का भ्रष्टाचार, कुशासन, विकासहीनता, दलित उत्पीडन की उपेक्षा और तानाशाही रवैया  रहा है . मायावती दुआरा दलित समस्याओं को नज़र अंदाज़ कर अँधा धुंद मूर्तिकर्ण को भी अधिकतर दलितों ने पसंद नहीं किया है. सर्वजन को खुश रखने के चक्कर में मायावती दुआरा दलित उत्पीडन को नज़र अंदाज़ करना भी दलितों के लिए बहुत दुखदायी सिद्ध हुआ है. दलितों में एक यह भी धारणा पनपी है कि मायावती सरकार का सारा लाभ केवल मायावती की उपजाति खास करके चमारों/जाटवों को ही मिला है जो कि वास्तव में पूरी तरह सही नहीं है. इस से दलितों की गैर चमार/जाटव उपजातियां प्रतिक्रिया में मायावती से दूर हो गयी हैं. अगर गौर से देखा जाये तो यह उभर कर आता है की मायावती सरकार का लाभ केवल उन दलितों को ही मिला है जिन्होंने मायावती के व्यक्तिगत भ्रष्टाचार में सहयोग दिया है. इस दौरान यह भी देखने को मिला है की जो दलित मायावायी के साथ नहीं थे बसपा वालों ने उन को भी प्रताड़ित किया है. उनके उत्पीडन सम्बन्धी मामले थाने पर दर्ज नहीं होने दिए गए. कुछ लोगों का यह भी आरोप है कि मायावती ने अपने काडर के एक बड़े हिस्से को शोषक, भ्रष्ट और लम्पट बना दिया है जिसने दलितों का भी शोषण किया है. यही वर्ग मायावती के भ्रष्टाचार, अवसरवादिता और दलित विरोधी कार्यों को हर तरीके से उचित ठहराने में लगा रहता है. दलित काडर का भ्रष्टिकरण दलित आन्दोलन की सब से बड़ी हानि है.
 इस के अतिरिक्त बसपा कि हार का एक कारण यह भी है कि मायावती हमेशा यह शेखी बघारती रही है कि मेरा वोट  बैंक हस्तान्तार्नीय है. इसी कारण से मायावती अस्सेम्ब्ली और पार्लियामेंट के  टिकटों को धड़ल्ले से ऊँचे दामों में बेचती रही और दलित उत्पीड़क, माफिया और अपराधियों एवं धनबलियों को टिकेट देकर दलितों को उन्हें वोट  देने के लिए आदेशित करती रही. इस बार दलितों ने मायावती के इस आदेश को नकार दिया और बसपा को वोट  नहीं दिया. दूसरे दलितों में बसपा के पुराने मंत्रियों और विधायकों के विरुद्ध  अपने लिए  ही कमाने के सिवाय आम लोगों के लिए कुछ भी न करने के कारण प्रबल आक्रोश था और इस बार  वे उन्हें हर हालत में  हराने के लिए कटिबद्ध थे. तीसरे मायावती ने सारी सत्ता अपने हाथों में केन्द्रित  करके तानाशाही रवैय्या अपना रखा था जिस कारण उस के मंत्री और विधायक बिलकुल असहाय हो गए थे  और वे जनता के लिए कुछ भी न कर सके  जो उनकी  हार का कारण बना.

मायावती की अवसरवादी और भ्रष्ट राजनीति का दुष्प्रभाव यह है कि आज दलितों को यह नहीं पता है कि उन का दोस्त कौन है और दुश्मन कौन है. उनकी मनुवाद और जातिवाद के विरुद्ध लड़ाई भी कमज़ोर पड़ गयी है क्योंकि बसपा के इस तजुर्बे ने दलितों में भी एक भ्रष्ट और लम्पट वर्ग पैदा कर दिया है जो कि जाति लेबल का प्रयोग केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए ही करता है. उसे दलितों के व्यापक मुद्दों से कुछ लेना देना नहीं है. एक विश्लेषण के अनुसार उत्तर प्रदेश के दलित आज भी विकास की दृष्टि से बिहार, उड़ीसा और मध्य प्रदेश के दलितों को छोड़ कर भारत के शेष अन्य सभी राज्यों के दलितों की अपेक्षा पिछड़े हुए हैं. उतर प्रदेश के लगभग ६०% दलित गरीबी की रेखा से नीचे जी रहे हैं. लगभग ६०% दलित महिलाएं कुपोषण का शिकार हैं. एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार ७०% दलित बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. अधिकतर दलित बेरोजगारी और उत्पादन के साधनों से वंचित हैं. मायावती ने सर्वजन के चक्कर में भूमि सुधारों को जान बूझ कर नज़र अंदाज़ किया जो कि दलितों के सशक्तिकरण का सबसे बड़ा हथियार हो सकता था. मायावती के सर्वव्यापी भ्रष्टाचार के कारण आम लोगों के लिए उपलब्ध कल्याणकारी योजनायें जैसे मनरेगा, राशन वितरण व्यवस्था , इंदिरा आवास, आंगनवाडी केंद्र और वृद्धा, विकलांग और विधवा पेंशन आदि भ्रष्टाचार का शिकार हो गयीं और दलित एवं अन्य गरीब लोग इन के लाभ से वंचित रह गए. मायावती ने अपने आप को सब लोगों से अलग कर लिया और लोगों के पास अपना दुःख/कष्ट रोने का कोई भी अवसर न बचा. इन कारणों से दलितों ने इस चुनाव में मायावती को बड़ी हद तक नकार दिया जो कि चुनाव नतीजों से परिलक्षित है.
कुछ लोग मायावती को ही दलित आन्दोलन और दलित राजनीति का प्रतिनिधि मान कर यह प्रशन उठाते हैं कि मायावती के हारने से दलित आन्दोलन और दलित राजनीति पर क्या असर पड़ेगा. इस संबंध में यह स्पष्ट कर देना उचित होगा कि मायावती पूरे  दलित आन्दोलन का प्रतिनधित्व नहीं करती है. मायावती केवल एक राजनेता है जो कि दलित राजनीति कर रही है वह भी एक सीमित क्षेत्र : उत्तर प्रदेश और उतराखंड में ही. इस के बाहर दलित अपने ढंग से राजनीति कर रहे हैं. वहां पर बसपा का कोई अस्तित्व नहीं है. दूसरे दलित आन्दोलन के अन्य पहलू सामाजिक और धार्मिक  हैं जिन पर दलित अपने आप आगे बढ़  रहे हैं. धार्मिक आन्दोलन के अंतर्गत दलित प्रत्येक वर्ष बौद्ध धम्म  अपना रहे हैं और सामाजिक स्तर में भे उनमें काफी नजदीकी आई है. यह कार्य अपने आप हो रहा है और होता रहेगा. इस में मायावती का न कोई योगदान  रहा है और न ही उसकी कोई ज़रुरत भी है. यह डॉ. आंबेडकर दुआरा प्रारम्भ किया गया आन्दोलन है जो की स्वत सफूर्त है.हाँ इतना ज़रूर है कि इधर मायावती ने एक आध बौद्ध विहार बना कर बौद्ध धम्म के प्रतीकों  का राजनीतक इस्तेमाल ज़रूर किया है. यह उल्लेखनीय है मायावती ने न तो स्वयं बौद्ध धम्म अपनाया है और न ही कांशी राम ने अपनाया था. उन्हें दर असल बाबा साहेब के धर्म परिवर्तन के जाति उन्मूलन में महत्व में कोई विश्वास ही नहीं है. वे  तो राजनीति में जाति के प्रयोग के पक्षधर हैं न कि उसे तोड़ने के.  उन्हें बाबा साहेब के जाति विहीन और वर्ग विहीन समाज कि स्थापना के लक्ष्य में कोई विश्वास नहीं है. वे दलितों का राजनीति में जाति वोट बैंक के रूप में ही प्रयोग करके जाति राजनीति को कायम रख कर अपने लिए लाभ  उठाना चाहते हैं.
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मायावती का यह दावा कि उसका दलित वोट बैंक बिलकुल नहीं खिसका है सत्यता से बिलकुल परे है. शायद मायावती अभी भी दलितों को अपना गुलाम समझ कर उस से ही जुड़े रहने की खुश फहमी पाल रही है. मायावती की यह नीति कोंग्रेस की दलितों और मुसलामानों के प्रति लम्बे समय तक अपनाई गयी नीति का ही अनुकरण  है. मायावती दलितों को यह जिताती रही है कि केवल मैं ही आप को बचा सकती हूँ कोई दूसरा नहीं. इस लिए मुझ से अलग होने की बात कभी मत सोचिये. दूसरे दलितों के उस से किसी भी  हालत में अलग न होने के दावे से वह दूसरी पार्टियों को दलितों से दूरी बनाये रखने की चाल भी चल रही है ताकि दलित अलगाव में पद उस के गुलाम बानर रहें. पर  अब दलित मायावती के छलावे से काफी हद तक  मुक्त हो गए हैं. अब यह पूरी सम्भावना है की उत्तर प्रदेश के दलित मायावती के बसपा प्रयोग से सबक लेकर एक मूल परिवर्तनकारी  अम्बेडकरवादी राजनीतिक विकल्प की तलाश करेंगे और जातिवादी राजनीति से बाहर निकल कर मुद्दा आधारित जनवादी राजनीति में प्रवेश करेंगे.  केवल इसी  से उनका राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक सशक्तिकर्ण एवं मुक्ति हो सकती है.

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

घोषणा पत्र: क्रांतिकारी समता पार्टी - जन संघर्ष मोर्चा का

विधान सभा चुनाव 2012


• माफिया, भ्रष्ट, जन विरोधी कारपोरेट राजनीति के खिलाफ, विष्वसनीय प्रगतिषील जन राजनीति के लिए!
• मंहगार्इ, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार बढ़ाने वाली सटटेबाज फर्जी अर्थव्यवस्था के खिलाफ कृषि और उधोग को बढ़ावा देने वाली उत्पादक अर्थव्यवस्था के लिए!
• विकास, सहभागिता और लोकतंत्र के लिए!


साथियो,
प्रदेष विधानसभा के चुनाव हमारे सामने हैं। डेढ़ दषकों की त्रिषंकु विधानसभाओं की अनिषिचतता से प्रदेष को निकालकर 2007 के चुनाव में जनता ने मायावती जी को निर्णायक जनादेष देते हुए बहुमत शासन की बागडोर सौंपी थी। यह मुलायम सिंह के भ्रष्ट-माफिया राज से निजात पाने तथा राजनीतिक अनिषिचतता से निकलकर विकास के रास्ते पर बढ़ने की जनाकांक्षा की अभिव्यकित थी। लेकिन मायावती सरकार ने न सिर्फ जनता की उम्मीदों पर पानी फेरने का काम किया है वरन आज फिर प्रदेष को उसी राजनीतिक असिथरता और त्रिषंकु विधानसभा की सम्भावना के द्वार पर ला खड़ा किया है।
मायावती शासन में पूरा प्रदेष पुलिस-माफिया राज में तब्दील हो गया। जनता के विकास और जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की आकांक्षा को रौंदा गया। इसने अपने चौथे कार्यकाल में भ्रष्टाचार के नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं। सरकार के लगभग आधे से अधिक मंत्री भ्रष्टाचार और अपराध के आरोप में हटाये जा चुके है, उनमें से कई जेल में हैं और अनेक के खिलाफ जांच चल रही है। लेकिन मायावती सरकार ने लोकायुक्त के आग्रह के बाद भी किसी भी मंत्री के खिलाफ आय से अधिक सम्पतित के मामले में आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं कराया। मायावती के परिवार और चहेतों की अकूत नामी-बेनामी सम्पत्ति के नित नये खुलासे सुर्खियों में हैं।
कानून के राज का आलम यह है कि राजधानी लखनऊ में दिन दहाड़े मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी की हत्या कर दी जाती है और जब भ्रष्टाचार के खुलासे की आषंका पैदा होती है तब सहायक स्वास्थ्य अधिकारी की जेल के अन्दर कत्ल की खबरें आती है।
मायावती सरकार ने प्रदेष में कारपोरेट-परस्त नीतियों को बढ़-चढ़कर लागू किया है। स्वाभाविक रूप से इन नीतियों से जुडे़ अथाह भ्रष्टाचार में जैसे केन्द्र की कांग्रेसी हुकूमत डूबी हुई है या कर्नाटक-उत्तराखण्ड आदि की भाजपाई सरकारें या मुलायम की पिछली सरकार लिप्त थी, ठीक वैसे ही प्रदेष की बहुमूल्य कृषि योग्य जमीन, सार्वजनिक उधोग और प्राकृतिक सम्पदा को कारपोरेट घरानों-माफिया बिल्डरों के हाथों कौडि़यों के दाम लुटाने और अरबों खरबों की अवैध कमाई में मायावती राज का पूरा सत्ता प्रतिष्ठान लिप्त रहा।
सत्ता में आते ही मायावती ने गंगा एक्सपे्रस वे और यमुना एक्सपे्रस वे के नाम पर गंगा यमुना बेसिन की बेहद उर्वरा लाखों एकड़ जमीन अपने चहेते जेपी समूह को सौंप दी। मायावती राज में सोनभद्र, मिर्जापुर, इलाहाबाद से लेकर बुन्देलखण्ड तक की बेषकीमती खदानों को पर्यावरण के सभी मानकों का खुला उल्लंघन करते हुए उसी तरह लूटा और उजाड़ा गया जैसा बेेल्लारी कर्नाटक में रेडडी बन्धुओं ने यदुरप्पा के राज में किया था।
प्रदेष में विष्वविधालयों, संस्थानों, कालेजों से निकलने वाले लाखों छात्रों के लिए योग्यतानुसार रोजगार के अवसर नदारद है, सरकारी क्षेत्रों में भी नौकरियों में कटौती हो रही है फलस्वरूप राज्य में बड़े पैमाने पर प्रतिभा पलायन हो रहा है। खेत मजदूर, बुनकर, ग्रामीण व शहरी गरीब जो हर वक्त भुखमरी की हालत में जी रहे हैं और उनकी बड़े पैमाने पर मौतें हो रही हैं। सरकारी मषीनरी के सहयोग से उनके राषन को भी लूट लिया गया और विदेष में बेच दिया गया। मुलायम सरकार के समय से ही चले आ रहे घोटाले इतने अधिक हैं कि सीबीआर्इ को भी कहना पड़ा कि इतने बड़े घोटाले की जांच कराने के लिए उसके पास क्षमता ही नहीं है। प्रदेष की जनता आज जो बिजली, पानी और स्वास्थ्य के संकट को झेल रही है उसकी मूल वजह भ्रष्टाचार है। आज भी यदि प्रदेष की अनपरा और ओबरा जैसी बिजली परियोजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म कर दिया जाए तो प्रदेष में बिजली के संकट से निपटा जा सकता है। दवाओं की खरीद में लूट की वजह से हुर्इ डाक्टरों की हत्याओं से पूरा प्रदेष दहल उठा। षिक्षा का और भी बुरा हाल है। इन संस्थाओं में जनता के पैसे की इतने बड़े पैमाने पर सरकारी तंत्र द्वारा लूट हुर्इ है कि मायावती और मुलायम पर आय से अधिक सम्पत्ति रखने के मामले में मुकदमे चल रहे हैं। इन मामलों में दोषियों को बचाने के लिए समय-समय पर केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप से सीबीआर्इ की जो पैतरेबाजी होती है उससे सुप्रीम कोर्ट भी हैरान है।
जनता का जीना दूभर करने वाली आसमान छूती महंगार्इ के लिए जहां केन्द्र की कांग्रेस हुकूमत की कारपोरेट घरानों के मुनाफे के लिए बनायी गयी नीतियां जिम्मेदार हैं, वहीं प्रदेष सरकार द्वारा जमाखोरों-सटोरियों को लूट की छूट, प्रदेष सरकार द्वारा लिया जा रहा बढ़ा हुआ टैक्स और भ्रष्टाचार का भी भारी योगदान है।
पांच साल शासन करने के बाद प्रदेष के विभिन्न अंचलों की जनता के विकास की उम्मीदों को पूरा करने में नाकाम मायावती ने आसन्न चुनाव में अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती देख उत्तर प्रदेष के बंटवारे का शिगूफा छोड़ा है। एक सुविचारित आधार पर, जनहित में-प्रषासनिक सुविधा और विकास के लिए-यदि राज्य पुनर्गठन वांछित हो तो उसूली तौर पर कोई भी जनवादी व्यकित उससे सहमत होगा। इस संदर्भ में दूसरे राज्य पुनर्गठन आयोग का निर्माण आज एक वाजिब मांग है। बहरहाल मायावती के लिए यह राजनैतिक बरतरी हासिल करने की कवायद से अधिक कुछ नहीं है। जाहिर है मायावती जैसे हुकमरानों के राज में छोटे राज्य कारपोरेट माफिया के हाथों और नंगी लूट का षिकार बनने के लिए ही अभिषप्त होंगे।
सामाजिक न्याय की लड़ाई आज भी अधूरी है: जाति व्यवस्था का विनाष तथा उत्पीडि़त समुदायों के आखिरी तबकों तक सामाजिक न्याय पहुचाने के लक्ष्य की जगह जात-पात और सामंती रोब-दाब की संस्कृति ही मायावती सरकार के दौर में परवान चढ़ी है। दलितों के ऊपर हमलों के मामलों में, विषेषकर महिलाओं के उत्पीड़न में उत्तर प्रदेष नम्बर एक पर पहुंच गया। इस उत्पीड़न में सरकार के मंत्री तक संलिप्त रहे। मेहनतकषों को चाहे वह जिस भी जाति या सम्प्रदाय के हो उन्हे संकट के दौर से गुजरना ही पड़ रहा है। लेकिन आरक्षण व्यवस्था से उत्पीडि़त समुदाय के जो हिस्से लाभ उठा सकते थे या विकास में जिनकी बेहतर हिस्सेदारी हो सकती थी उन्हें भी मुलायम सरकार की ही तरह मायावती सरकार में भी वंचित रहना पड़ा। यही वजह है कि दलितों में अतिदलित या महादलितों की बात उठने लगी, पिछड़े मुसलमानों के आरक्षण के प्रष्न को लेकर भाजपा पूरे मुíे का साम्प्रदायीकरण करने में लग गयी है। दलितों के अन्य हिस्सों पर मायावती सरकार की सम्वेदनहीनता को इसी बात से समझा जा सकता है कि आज भी वालिमकी दलित स्वच्छकार समुदाय की तमाम मां, बहनें आजीविका के लिए मैला ढ़ोने के अमानवीय एवं बर्बर काम में लगे रहने के लिए अभिषप्त है। अपने को दलित की बेटी कहने वाली महिला मुख्यमंत्री के राज के लिए इससे बड़ा कलंक का धब्बा और क्या हो सकता है। उन्हें वैकलिपक रोजगार मुहैया कराकर इस अमानवीय त्रासदी से मुक्त करने हेतु स्वच्छकार विमुकित योजना के 100 करोड़ रूपये का उपयोग महज इसलिए नहीं हो सका क्योंकि मायावती सरकार ने केन्द्र को गारन्टी देने से इन्कार कर दिया। इसी तरह सूडा ने झूठा दावा कर दिया कि शुष्क शौचालयों को जल प्रवाहित शौचालयों में तब्दील करने का काम उत्तर प्रदेष में संतृप्त हो चुका है। ठीक इसी तरह मायावती राज में दलित पासी, मुसहर समुदाय के तमाम नौजवानों की अपराधी बताकर फर्जी मुठभेड़ों में हत्यायें हुई। राजभर, बिन्द, बियार जाति अभी भी पिछड़ी जाति की श्रेणी में आते है। उन्हें अनुसूचित जनजाति का लाभ नहीं मिलता है। राजभरों को, विमुकित जाति के लाभ से भी वंचित होना पड़ा है। आदिवासी-वनवासी समाज आज भी सामाजिक न्याय के अधिकार से वंचित है।
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का सवाल तो बना ही हुआ है, उनकी तरक्की के सवाल पर सरकार के रूख का नमूना यह है कि पूरे सूबे में मदरसोंमकतबों के विकास के लिए महज 50 करोड़ रूपए आंवटित किए गए। रंगनाथ मिश्र आयोग की संस्तुतियों के अनुरूप मुसलमानों के लिए कोई पहल मायावती सरकार ने नहीं की।
सपा अपनी पुनर्वापसी के लिए जी तोड़ कोषिष कर रही है, लेकिन जनता के मन में मुलायम सिंह के पिछले पुलिस गुण्डा राज और कारपोरेट परस्त नीतियों की स्मृतियां अभी धूमिल नहीं हुई हैं। लोकतंत्रिक मूल्यों को तिलांजलि देकर राजनीति में वंषवाद और परिवारवाद का बदतरीन नमूना बन चुकी सपा हर नाजुक मौके पर केन्द्र में कांग्रेस सरकार की संकटमोचक बनी रही है, चाहे वह अमेरिका के साथ न्यूकिलयर डील का मामला हो या पेट्रोलियम पदाथोर्ं को बाजार के हवाले कर जनता पर मंहगाई थोपने का फैसला रहा हो या मतदान के समय लोकसभा से बहिर्गमन कर सरकारी लोकपाल पास करवाने में मदद करने का ताजा प्रकरण हो-बेषक इसका इनाम कांग्रेस ने आय से अधिक सम्पतित मामले में मुलायम सिंह को बचाकर दिया है। आज सपा हर दृषिट से कांग्रेस की बी टीम बन चुकी है और उसकी मदद से अगली सरकार बनाने का प्रयास कर रही है।
कांग्रेस राहुल गांधी के मिषन 2012 को सफल बनाकर यू.पी. चुनाव को राहुल के राज्याभिषेक का लांचिंग पैड बनाना चाहती है। राहुल गांधी यू.पी. को स्वर्ग बनाने का वायदा कर रहे है। लेकिन प्रदेष की जनता यह समझ नही पा रही है कि केन्द्र में शासन करने वाली उनकी पार्टी जब पूरे देष को भ्रष्टाचार, मंहगार्इ और बेरोजगारी से तबाह किए हुए है तो वह उत्तर प्रदेष का अलग से भला कैसे कर देगी। प्रदेष की जनता यह भी जानती है कि आजादी के बाद से, कुछ वषोर्ं को छोड़ दिया जाय तो लगातार चार दषकों तक कांग्रेस ने ही यू.पी. में राज किया और पचास के दषक में जो उत्तर प्रदेष विकास के पैमाने पर राष्ट्रीय औसत के आस-पास था वह कांग्रेसी राज में लगातार पिछडता चला गया और बीमारू राज्य की श्रेणी में पहुंच गया।
चुनाव के मददेनजर आनन-फानन में कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के लिए 4.5 प्रतिषत आरक्षण की जो घोषणा की है, वह अल्पसंख्यकों के सामाजिक न्याय की लम्बे समय से लमिबत मांग के संदर्भ में खानापूर्ति जैसा ही है। सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग ने अल्पसंख्यकों के भयावह पिछडे़पन की तस्वीर देष के सामने रखते हुए उनके लिए 15 प्रतिषत आरक्षण तथा अल्पसंख्यक समुदाय के दलितों को भी अनुसूचित जाति का दर्जा देने की जोरदार वकालत की थी। इसके अभाव में अल्पसंख्यक लोकसभा की 130 तथा विधान सभाओं की 22.5 प्रतिषत आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने के लोकतांत्रिक अधिकार से भी वंचित है। कांग्रेस ने इस बेहद जरूरी और जायज मांग को अनसुना कर दिया है। आरक्षण भी उनकी जनसंख्या के अनुपात तथा सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की अनुषंसाओं के विपरीत महज 4.5 प्रतिषत दिया है।
प्रदेष में बाबू सिंह कुषवाहा प्रकरण ने एक बार पुन: यह स्थापित कर दिया कि भाजपा फर्जी, सटटेबाज, परजीवी, भ्रष्ट, कारपोरेट पूजी की सबसे बर्बर, भ्रष्टतम राजनीतिक पार्टी है और भ्रष्टाचार विहीन राजनीतिक जीवन, राजनीति में शुचिता और नैतिकता महज उसकी लफ्फाजी है। चुनाव के दौर में यह मुददे और नेतृत्व के अभाव में इधर-उधर भटक रही है। हाल फिलहाल पिछड़े मुसलमानों के आरक्षण के सवाल को उठाकर वह साम्प्रदायीकरण में लगी हुई है। लोकपाल मुददे पर हो-हल्ला करके वह स्वच्छ होने का जो नाटक कर रही थी, मायावती सरकार के सबसे बदनाम मंत्री को पार्टी में शामिल करके उसने अपना असली चेहरा जनता को दिखा दिया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पुराने कैडर और भाजपा के पूर्व षिक्षा मंत्री ने सरेआम मुरली मनोहर जोषी जैसे नेता पर यह आरोप लगाया है कि उन्होंने पैसा लेकर माफिया को टिकट दिलाया है। बहरहाल केन्द्र में पुनर्वापसी का सपना संजो रही भाजपा उत्तर प्रदेष में बसपा की पीठ पर सवार होकर सत्ता में भागेदारी की कोषिष पुन: कर सकती है।
कुछ नये छोटे दल और उनके रोज बनते बिगड़ते मोर्चे न केवल अवसरवादी हैं बलिक अपराधी माफियाओं की नई शरणस्थली बन गये हैं। इस तरह की ताकतें कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा से सत्ता में हिस्सेदारी के नाम पर मोल तोल तो करती ही हैं, परदे के पीछे इनका लेन-देन भी चलता है। खूंखार माफिया इनके हीरो होते हैं और ये राजनीति को धन्धा के रूप में लेते हैं। सामाजिक न्याय के नाम पर सत्ता में हिस्सेदारी को अपना मुददा बनाकर जाति बिरादरी के नाम पर ये मालामाल होते रहते हैं। इनके चंगुल से जनता को बचाने के लिए इनका भंडाफोड़ करना बेहद जरूरी है क्योंकि कारपोरेट राजनीति के ही ये भोडे़ और विकृत रूप हैं।

प्रिय प्रदेष वासियों,
आज प्रदेष की जनता के सामने यक्ष प्रष्न यह है कि उत्तर प्रदेष सपा, बसपा कांग्रेस, भाजपा के दुष्चक्र से निकल कर विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा अथवा बीमारू राज्य बने रहने के लिए ही अभिषप्त रहेगा। दरअसल उत्तर प्रदेष के विकास की कुंजी है-भूमि सुधार और कृषि का चौतरफा विकास, बुनकरी समेत तमाम लघु उधमों को संकट से निकालने एवं विकास के लिए नई नीतियां तथा भारी सरकारी प्रोत्साहन, रोजगार, षिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी की गारंटी, प्रदेष की प्राकृतिक सम्पदा और सरकारी खजाने की लूट पर रोक तथा तेज औधोगिक विकास। लेकिन कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा जैसी कारपोरेट परस्त पार्टियों के एजेण्डे मे यह सब नदारद है। जाहिर है इन पार्टियों के पास प्रदेष के विकास का कोई रास्ता नहीं है।
सत्ता की दोनों प्रमुख दावेदार पार्टियां सपा और बसपा आज कांग्रेस के चंगुल में है। अधिक से अधिक यह हो सकता है कि चुनाव बाद कांग्रेस से छिटक कर उनमें से कोई भाजपा की शरण में चला जाए। आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में सी.बी.आई. का इस्तेमाल करके मनमोहन सरकार ने दोनो को बचाया है और हर नाजुक मौके पर केन्द्र सरकार को बचाने के लिए ये दोनों प्रत्यक्षपरोक्ष कांग्रेस के पाले में खड़े हुए हैं। कांग्रेस, भाजपा से इनका न नीतियों के स्तर पर फर्क है न ही राजनैतिक संस्कृति के स्तर पर। यूपीए-एनडीए की सरकारों ने जिन कारपोरेट परस्त नीतियों को देष के पैमाने पर लागू किया है, उन्हीं नीतियों को बढ़ चढ़कर इन्होंने प्रदेष में लागू किया। राजनैतिक जीवन मेंं भ्रष्टाचार, माफिया, अपराधियों को संरक्षण और भाई भतीजा वादवंषवाद की लोकतंत्र विरोधी संस्कृति को प्रोत्साहन देने में इन्होंने सबको पीछे छोड़ दिया है।
यदि आप चाहते हैं कि किसानों की जमीन छीनकर कारपोरेट घरानों को सौंपने वाली, नौजवान को रोजगार से वंचित करने वाली नीतियों, लूट, महगाई, भ्रष्टाचार, एफ.डी.आई. द्वारा देष के बाजारों को विदेषी सामानों से पाटकर किसानों उधमियों को तबाह करने वाली हुकूमतों, लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचल कर दलितों, महिलाओं, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के हक सुरक्षा और सम्मान को रौंदने वाले माफिया पुलिस राज से निजात मिले तथा हमारा प्रदेष लोकतंत्र और विकास के रास्ते पर आगे बढ़े तो आज इसके लिए जरूरत है विष्वसनीय प्रगतिषील जन राजनीति और कारपोरेट परस्त नीतियों के विरूद्ध वैकलिपक रास्ते की ताकतों की एकता। जन संघर्ष मोर्चा इसी कार्यभार के लिए समर्पित है। हमें खुषी है कि उत्तर प्रदेष विधान सभा 2012 में कम्युनिस्ट धारा, सोषलिस्ट धारा, किसान आंदोलन, मुसिलम संगठन और सामाजिक न्याय व नागरिक आंदोलन की तमाम प्रगतिषील ताकतें चुनावी तालमेल करके चुनाव मैदान में हैं और निष्चय ही उन्हें सफलता मिलेगी।
हम काले धन और भ्रष्टाचार के विरूद्ध स्वतंत्र निष्पक्ष एवं प्रभावी लोकपाल के लिए आंदोलन के सहभागी हैं। हम सरकार द्वारा कारपोरेट घरानों के हित में अंधाधुन्ध भूमि अधिग्रहण को सुगम बनाने के लिए संसद में प्रस्तावित नये विधेयक को रदद कर नयी राष्ट्रीय भूमि उपयोग नीति के लिए लड़ने हेतु कृतसंकल्प हैं।
हमारा एजेंडा है

• सभी नेताओं, अधिकारियों, कर्मचारियों, न्यायाधीषों की चल अचल सम्पतितयों की जांच हो और जिसकी सम्पतित आय से अधिक हो उसे जब्त किया जाय और उन्हें जेल भेजा जाए।
• संसद में पेष भूमि अधिग्रहण कानून को वापस लिया जाए और राष्ट्रीय भूमि उपयोग आयोग का गठन किया जाए और जब तक यह न हो तब तक जमीन की खरीद-फरोख्त पर रोक लगायी जाए। कृषि लागत व मूल्य आयोग को वैधानिक दर्जा दिया जाए।
• महंगार्इ, बेरोजगारी पर रोक लगे। रोजगार को मौलिक अधिकार बनाया जाए और हर नौजवान को रोजगार न देने की सिथति में जीवन निर्वाह हेतु बेकारी भत्ता दिया जाए।
• सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत प्रति व्यकित के हिसाब से अनाज, दाल, खाने का तेल, चीनी आदि की गारंटी की जाए। रोजगार गारंटी कानून में मजदूरी 300 रू0 की जाए।
• मुसलमानों, अतिपिछड़ों, आदिवासियाें के सामाजिक न्याय की गारंटी हो। उ0 प्र0 में इन समुदायों के विकास के लिए सबप्लान घोषित होे। रंगनाथ मिश्र आयोग तथा सच्चर कमेटी की संस्तुतियों को लागू किया जाए। अति पिछड़े हिन्दू और पिछड़े मुसलमानों का आरक्षण कोटा अलग किया जाए। दलित मुसलमानों व इसाइयों को भी अनुसूचित जाति में षामिल किया जाए। कोल, मुसहर, राजभर जैसी अन्य जातियों को जनजाति में षामिल किया जाए। गोड़, खरवार जैसी आदिवासी का दर्जा पायी जातियों के लिए चुनाव में सीट आरक्षित की जाए।
• छोटे-मझोले किसानों, बुनकरों एवं सभी गरीबों के कर्जे माफ किया जाय।
• किसानों को सस्ते दर पर खाद, बीज और कर मुक्त डीजल उपलब्ध कराया जाए। बाढ़-सुखाड़ से निपटने की प्रदेष में स्थायी व्यवस्था की जाए।
• प्राकृतिक संसाधनों की लूट पर रोक लगाई जाय। बिना पर्यावरणीय अनुमति के जिन लोगों ने खनन के आदेष दिए है उनकी जबाबदेही तय हो और उन्हे दणिडत किया जाए।
• 150 रूपए तक कमाने वाले को बीपीएल सूची में दर्ज किया जाय और उनके उचित इलाज की मुफ्त व्यवस्था की जाए।
• पंचायत मित्रों, षिक्षामित्रों, पषुधन अधिकारी, आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों व सहायिकाओं, आषा बहू को राज्य कर्मचारी का दर्जा दो व संविदा श्रमिकों को नियमित किया जाय!
• प्रदेष में विभिन्न औधोगिक प्रतिष्ठानों, खदानों, सरकारी संस्थानों में कार्यरत संविदा, दैनिक और अनियमित श्रमिकों की मजदूरी का भुगतान चेक द्वारा किया जाए। उन्हें र्इपीएफ, हाजरी कार्ड, वेतन पर्ची, बोनस की हर हाल में गारंटी की जाए।
• प्रदेष में लोकतंत्र की हर हाल में गारंटी की जाए और छात्रसंघ की बहाली की जाए। आंदोलन के कार्यकत्र्ताओं पर लादे मुकदमे वापस लिए जाए।
• वनाधिकार कानून को लागू किया जाय और विस्थापितों से हुए समझौतों को लागू किया जाए।
• बढ़े हुए वैट टैक्स द्वारा व्यापारियों का उत्पीड़न बन्द किया जाए और खुदरा व्यापार में एफ.डी.आई. को अनुमति देने सम्बंधी केन्द्र सरकार के फैसले को रदद किया जाए तथा इस क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों एवं बड़े कारपोरेट घरानों के प्रवेष पर रोक लगायी जाये।
• मजबूत लोकपाल बिल पास कर कारपोरेट घरानों समेत सभी सर्वोच्च पदों को उसके अधीन लाया जाये।
• विदेषों में जमा धन हर हाल में वापस लाया जाये। 
• 1984 के सिख दंगा पीडि़तों को जितनी सरकारी सहायता मिली है, उसी अनुपात में सहायता 1984 के बाद के सारे ही दंगा पीडि़तों को दी जाए।
• षिक्षा एवं स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार मान कर हर नागरिक को सी. जी. एस. एच. कार्ड बनाया जाए तथा हर बच्चे को मुफ्त षिक्षा उच्च श्रेणी तक दी जाए। समान षिक्षा प्रणाली व पड़ोस के विधालय की अवधारणा लागू की जाए।
• माफियाओं को सरकारी ठेकाें से दूर रखने के लिए कड़ा कानून बनाया जाए।
• ऐसा कानून बनाया जाए कि मतदाता सूची, बी.पी.एल.सूची, विधवा एवं वृद्धा सूची व अन्य सूचियाँ बनाने वाले अधिकारी - कर्मचारी यदि जानबूझकर गलत सूची बनाते है तो उन्हे कड़ा से कड़ा दण्ड दिया जाए।

• कांग्रेस-भाजपा, बसपा-सपा की जन विरोधी, लोकतंत्र विरोधी कारपोरेट राजनीति को षिकस्त दो।
• माफिया राजनीति, कालेधन तथा पतित नौकरषाहों के वाहक बने कथित छोटे दलों के बनते बिगड़ते मोर्चों की खरीदफरोख्त और अवसरवाद की राजनीति पर चोट करो।
• क्रानितकारी समता पार्टी, सीपीएम, राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य वाम-जनवादी दलों के प्रत्याषियों को जिताओ।
• जन संघर्ष मोर्चा की राह चलो।

200 साल का विशेषाधिकार 'उच्च जातियों' की सफलता का राज है - जेएनयू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ने किया खुलासा -

    200 साल का विशेषाधिकार ' उच्च जातियों ' की सफलता का राज है-  जेएनयू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ने किया खुलासा -   कुणाल कामरा ...