चार्वाक दर्शन क्या है?
एस आर दारापुरी आईपीएस (से.नि.)
चार्वाक दर्शन, जिसे लोकायत के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन भारतीय भौतिकवादी और नास्तिक दार्शनिक स्कूल है जो 7वीं-6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास उभरा था। यह आत्मा, कर्म, पुनर्जन्म और अलौकिक संस्थाओं जैसी आध्यात्मिक अवधारणाओं को खारिज करता है, और अनुभवजन्य अवलोकन और संवेदी धारणा को ज्ञान के एकमात्र स्रोत के रूप में महत्व देता है। यहाँ एक संक्षिप्त अवलोकन दिया गया है:
मूल सिद्धांत:
1. भौतिकवाद: ब्रह्मांड में केवल पदार्थ (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु) हैं। चेतना भौतिक शरीर से उत्पन्न होती है और मृत्यु पर समाप्त हो जाती है।
2. ज्ञानमीमांसा: केवल प्रत्यक्ष धारणा (प्रत्यक्ष) ही ज्ञान का एक वैध साधन है। अनुमान (अनुमान) और गवाही (शब्द) को तब तक खारिज कर दिया जाता है जब तक कि अनुभवजन्य रूप से सत्यापित न हो।
3. तत्वमीमांसा की अस्वीकृति: देवताओं, आत्माओं, परलोक या किसी भी गैर-भौतिक संस्थाओं के अस्तित्व को नकारता है। वैदिक अनुष्ठानों और धार्मिक सिद्धांतों को निराधार बताकर खारिज कर दिया जाता है।
4. नैतिकता और सुखवाद: सुख (काम) और दर्द से बचना जीवन के प्राथमिक लक्ष्य हैं। नैतिक व्यवहार इस दुनिया में व्यक्तिगत खुशी को अधिकतम करने पर आधारित है, न कि दैवीय या नैतिक निरपेक्षता पर।
5. संदेहवाद: पवित्र ग्रंथों (जैसे, वेद) के अधिकार को चुनौती देता है और अप्रमाणित दावों पर सवाल उठाता है।
मुख्य मान्यताएँ:
- जीवन का उद्देश्य सांसारिक सुखों का आनंद लेना है, क्योंकि कोई परलोक नहीं है।
- मृत्यु अंत है; शरीर अपने भौतिक तत्वों में वापस चला जाता है।
- धार्मिक प्रथाएँ और तप व्यर्थ हैं, क्योंकि वे अप्रमाणित मान्यताओं पर निर्भर हैं।
उल्लेखनीय विशेषताएँ:
- धर्म की आलोचना: चार्वाक पुजारियों और अनुष्ठानों को शोषक मानते थे, उनका तर्क था कि वे काल्पनिक परिणामों के डर को बढ़ावा देकर लाभ कमाते हैं।
- व्यावहारिकता: तर्क और संवेदी अनुभव द्वारा निर्देशित वर्तमान में जीने की वकालत की।
- सामाजिक प्रभाव:
हाशिए पर होने के बावजूद, इसने रूढ़िवादिता को चुनौती देकर और तर्कसंगत जांच को बढ़ावा देकर भारतीय विचारों को प्रभावित किया।
ऐतिहासिक संदर्भ:
बृहस्पति जैसे विचारकों को इसका श्रेय दिया जाता है (हालाँकि ग्रंथों पर बहस होती है)। कुछ मूल चार्वाक ग्रंथ बचे हैं; अधिकांश ज्ञान प्रतिद्वंद्वी विद्यालयों (जैसे, न्याय, वेदांत) द्वारा की गई आलोचनाओं से आता है। आस्तिक दर्शन और सामाजिक कलंक के प्रभुत्व के कारण इसका पतन हुआ, लेकिन इसने भारतीय संशयवाद में एक विरासत छोड़ी। भौतिकवाद और अनुभववाद पर चार्वाक का ध्यान इसे भारत की आध्यात्मिक परंपराओं के लिए एक अद्वितीय प्रतिरूप बनाता है, जो एपिक्यूरियनवाद जैसे पश्चिमी दर्शन के समान है।
साभार:Grok.com
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